Tuesday, June 5, 2012

..गंगा स्वर्ग से आई .....!



हुई विदाई
गंगा स्वर्ग से आई
बहे निर्मल .

गंगा का जल
गुणकारी अमृत
पाप नाशक .

शीतल जल
मन हो जाये तृप्त
है गंगाजल .

रोये है गंगा
मैली हुई चादर
मानवी मार .

सिमटी गंगा
मानव काटे अंग
जल बेहाल .

है पुण्य कर्म
किये पाप मिटाओ
गंगा बचाओ .

गंगा पावन
अभियान चलाओ
स्वच्छ बनाओ .

निर्मल गंगा
खुशहाल जीवन
हरी हो धरा .

:------ शशि पुरवार

9 comments:

  1. सुन्दर .. संदेशपरक रचना

    ReplyDelete
  2. गंगा सिर्फ एक नदी नही है , अपितु ये हमारी युगों लम्बी सभ्यता और संस्कृति की निशानी है। उस सुरसरि का अस्तित्व आज खतरे में है। इस परिपेक्ष्य में आप की ये रचना बहुत समीचीन प्रतीत होती है
    आभार

    ReplyDelete
  3. मन मोहक प्रेरक सुंदर प्रस्तुति ,,,,,बेहतरीन हाइकू

    MY RESENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: स्वागत गीत,,,,,

    ReplyDelete
  4. बहुत बढ़िया हायेकु ......
    सुंदर.सार्थक.....

    सस्नेह.

    आपका स्वागत है...
    :-)

    ReplyDelete
  5. गंगा माँ कों लेकह्र सार्थक हाइकू की संरचना है ...
    आज की जरूरत कों कुछ ही शब्दों में गहराई से लिखा है ...

    ReplyDelete
  6. वाह बहुत बढिया

    ReplyDelete
  7. shashi ji bahut sunder haiku hai .badhai aapko
    rachana

    ReplyDelete

आपकी प्रतिक्रिया हमारे लिए अनमोल है। हमें अपने विचारों से अवगत कराएं। सविनय निवेदन है --शशि पुरवार

आपके ब्लॉग तक आने के लिए कृपया अपने ब्लॉग का लिंक भी साथ में पोस्ट करें
.