..गंगा स्वर्ग से आई .....!
हुई विदाई
गंगा स्वर्ग से आई
बहे निर्मल .
गंगा का जल
गुणकारी अमृत
पाप नाशक .
शीतल जल
मन हो जाये तृप्त
है गंगाजल .
रोये है गंगा
मैली हुई चादर
मानवी मार .
सिमटी गंगा
मानव काटे अंग
जल बेहाल .
है पुण्य कर्म
किये पाप मिटाओ
गंगा बचाओ .
गंगा पावन
अभियान चलाओ
स्वच्छ बनाओ .
निर्मल गंगा
खुशहाल जीवन
हरी हो धरा .
:------ शशि पुरवार
बहुत सुंदर
ReplyDeleteक्या कहने
सुन्दर .. संदेशपरक रचना
ReplyDeleteगंगा सिर्फ एक नदी नही है , अपितु ये हमारी युगों लम्बी सभ्यता और संस्कृति की निशानी है। उस सुरसरि का अस्तित्व आज खतरे में है। इस परिपेक्ष्य में आप की ये रचना बहुत समीचीन प्रतीत होती है
ReplyDeleteआभार
मन मोहक प्रेरक सुंदर प्रस्तुति ,,,,,बेहतरीन हाइकू
ReplyDeleteMY RESENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: स्वागत गीत,,,,,
बहुत बढ़िया हायेकु ......
ReplyDeleteसुंदर.सार्थक.....
सस्नेह.
आपका स्वागत है...
:-)
sundar rachna
ReplyDeleteगंगा माँ कों लेकह्र सार्थक हाइकू की संरचना है ...
ReplyDeleteआज की जरूरत कों कुछ ही शब्दों में गहराई से लिखा है ...
वाह बहुत बढिया
ReplyDeleteshashi ji bahut sunder haiku hai .badhai aapko
ReplyDeleterachana