दर्द जब बढ़ जाये
एक नशा बन कर
तन को पीता जाये
इस बेदर्द दुनिया से
दर्द कभी न बांटा जाये.
सुख के सभी होते है साथी
दुःख में कभी काम न आये
हमेशा नेकी ही डूबे दरियां में
हाँथो में सिर्फ पत्थर नजर आये .
कांच के शीशमहल में
सुन्दर ऊँची दीवारों में
दिखती है सिर्फ चमक
लाश तो किसी को भी
नजर ही न आये .
यह वक़्त भी बड़ा बेदर्द
अच्छाई को सदा छुपा जाये
कर्म किसी को भी न दिखे
जनाजा निकल जाने के बाद ही
हवा के रूख में थोड़ी नमी आये .
घूमते है महल में लाश बनकर
शरीर दफनाने पे अब तो
हँसी भी न आये .
बेदर्द दुनिया में ,
नजर आते है सिर्फ बंकर
प्यारा सा सीधा साधा दिल
कभी भी किसी को
नजर न आये .
-------- शशि पुरवार
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ReplyDeleteसुन्दर भावों का पिरोया है आपने ,और खुबसूरत सी रचना हमे पढ़ने को मिली ...
ReplyDeleteumda prastuti ....saadar
ReplyDeleteबहुत ही शानदार और सराहनीय प्रस्तुति....
ReplyDeleteबधाई
इंडिया दर्पण पर भी पधारेँ।