सुलग रहे थे ख्वाब
वक़्त की
दहलीज पर
और
लम्हा लम्हा
बीत रहा था पल
काले धुएं के
बादल में।
सीली सी यादें
नदी बन बह गयी ,
छोड़ गयी
दरख्तों को
राह में
निपट अकेला।
फिर
कभी तो चलेगी
पुरवाई
बजेगा
निर्झर संगीत
इसी चाहत में
बीत जाती है सदियाँ
और
रह जाते है निशान
अतीत के पन्नो में।
क्यूँ
सिमटे हुए पल
मचलते है
जीवंत होने की
चाह में।
न कोई ठोर
न ठिकाना
न तारतम्य
आने वाले कल से।
फिर भी
दबी है चिंगारी
बुझी हुई राख में।
अंततः
बदल जाते है
आवरण,
पर
नहीं बदलते
कर्मठ ख्वाब,
कभी तो होगा
जीर्ण युग का अंत
और एक
नया आगाज।
------ शशि पुरवार
nice creation congratulation.
ReplyDeletenice creation congratulation.
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ReplyDeleteबहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति
सच है....दबी होती है चिन्गारी कहीं,बुझी हुई आग में.
ReplyDeleteबेहद सुन्दर रचना शशि..
सस्नेह
अनु
sidhi nd sacchi bat km shabdon ke madham se.....
ReplyDeleteआगाज़ होगा ... ख्वाब सच में बदलेंगे ... कर्मठ हैं ये ख्वाब ...
ReplyDeleteलाजवाब ...
अलग अंदाज में बिलकुल अनोखी कविता |आभार शशि जी |
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि कि चर्चा कल मंगलवार 12/213 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है
ReplyDeleteसच कहा, न जलती है, न बुझती है।
ReplyDeleteउम्मीद बनी रहे ॥ सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeletebahut sunder rachna
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
बहुत सुन्दर भावनायें लिए बेहतरीन प्रस्तुति.
ReplyDeletesundar bhao behtarin abhivyakti
ReplyDeleteनहीं बदलते कर्मठ ख्वाब ... सच कहा आपने
ReplyDeleteबेहतरीन प्रस्तुति।
अर्थपूर्ण रचना बेहतरीन प्रस्तुति !
ReplyDeleteएक और बधाई स्वीकारें !
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteक्या कहने
bhavpoorn sundar rachna..
ReplyDeleteभाव पूर्ण रचना..बधाई शशि जी
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत एवं आत्मीय सी प्रस्तुति ! सच इस नये आगाज़ की सभी को प्रतीक्षा है ! शुभकामनायें !
ReplyDeleteBeautiful.
ReplyDeletesabhi mitro ka hraday se abhaar , jinhone apni sakaratmak pratikriya se kalam ko protsaahan pradaan kiya . sneh banaye rakhen mitro .
ReplyDeletenishchit hi jeern yug ka ant hoga.
ReplyDeleteअद्भुत , अति उत्तम हर शब्द - शब्द में अंतर मन का समावेश बहुत खूब
ReplyDeleteमेरी नई रचना
खुशबू
प्रेमविरह