Monday, February 11, 2013

सीली सी यादें .....!



सुलग रहे थे ख्वाब
वक़्त की
दहलीज पर
और
लम्हा लम्हा
बीत रहा था पल
काले धुएं के
बादल में।
सीली सी यादें
नदी बन बह गयी ,
छोड़ गयी
दरख्तों को
राह में
निपट अकेला।
फिर
कभी तो चलेगी
पुरवाई
बजेगा
निर्झर संगीत
इसी चाहत में
बीत जाती है सदियाँ
और
रह जाते है निशान
अतीत के पन्नो में।
क्यूँ
सिमटे हुए पल
मचलते है
जीवंत होने की
चाह में।
न कोई  ठोर
न ठिकाना 

न तारतम्य
आने वाले कल से।
फिर भी
दबी है चिंगारी
बुझी हुई राख में।
अंततः
बदल जाते है
आवरण,
पर

नहीं बदलते
कर्मठ ख्वाब,
कभी तो होगा
जीर्ण युग का अंत
और एक
नया आगाज।
------ शशि पुरवार 





24 comments:


  1. बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति

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  2. सच है....दबी होती है चिन्गारी कहीं,बुझी हुई आग में.
    बेहद सुन्दर रचना शशि..
    सस्नेह
    अनु

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  3. sidhi nd sacchi bat km shabdon ke madham se.....

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  4. आगाज़ होगा ... ख्वाब सच में बदलेंगे ... कर्मठ हैं ये ख्वाब ...
    लाजवाब ...

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  5. अलग अंदाज में बिलकुल अनोखी कविता |आभार शशि जी |

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  6. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि कि चर्चा कल मंगलवार 12/213 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है

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  7. सच कहा, न जलती है, न बुझती है।

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  8. उम्मीद बनी रहे ॥ सुंदर प्रस्तुति

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  9. बहुत ही बढ़िया


    सादर

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  10. बहुत सुन्दर भावनायें लिए बेहतरीन प्रस्तुति.

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  11. नहीं बदलते कर्मठ ख्‍वाब ... सच कहा आपने
    बेहतरीन प्रस्‍तुति।

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  12. अर्थपूर्ण रचना बेहतरीन प्रस्तुति !
    एक और बधाई स्वीकारें !

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  13. बहुत सुंदर रचना
    क्या कहने

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  14. भाव पूर्ण रचना..बधाई शशि जी

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  15. बहुत खूबसूरत एवं आत्मीय सी प्रस्तुति ! सच इस नये आगाज़ की सभी को प्रतीक्षा है ! शुभकामनायें !

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  16. sabhi mitro ka hraday se abhaar , jinhone apni sakaratmak pratikriya se kalam ko protsaahan pradaan kiya . sneh banaye rakhen mitro .

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  17. nishchit hi jeern yug ka ant hoga.

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  18. अद्भुत , अति उत्तम हर शब्द - शब्द में अंतर मन का समावेश बहुत खूब
    मेरी नई रचना
    खुशबू
    प्रेमविरह

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