क्षणिकाएँ
1कर्म का पथ
प्रथम है प्रयास
नींद के बाद .
जख्मी है वृक्ष
रीत गए झरने
अम्बर रोए .
बासंती गीत
प्रकृति ने पहनी
धानी चुनर .
श्वेत धवल
बसंती सा नाजुक
हरसिंगार .
शिउली सौन्दर्य
लतिका पे है खिला
गुच्छो मे लदा.
हरसिंगार
ईश्वरीय सृजन
श्वेत कमल .
श्वेत चांदनी
धरा की चुनरिया
झरे प्राजक्त .
-------------
छोटी कविता
१ सजा बंधनवार
ढोलक की थाप
झनक उठी पैजनिया
गूंज उठी शहनाई
स्नेहिल अंगना ,
सजी है डोली
कन्यादान का अवसर
झर झर झरे आशीष
और नैनो से झरे
हरसिंगार .
२ बहाओ पसीना
उठा लो मशाल
राहों मे बिछे कांटे
जाना है पार
भोर का न करो,
इन्तजार
खिलेंगे फूल तो
यह जीवन हरसिंगार .
३ न छोड़ो हिम्मत
जज्बा हो बुलंद
गहरे गर्त मे भी
झरने सा छन्द
कर्म विलक्षण ,तो
महके सुवास
जैसे हरसिंगार .
--- शशि पुरवार
बहुत प्यारा संयोजन..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !!!
ReplyDeleteहरसिंगार...
शब्दों से झरे ,दिल में उतरे...
सस्नेह
अनु
बहुत उम्दा सुन्दर प्रस्तुति ,,,,
ReplyDeleteRecent Post: सर्वोत्तम कृषक पुरस्कार,
बहुत ही सार्थक हाइकू और कविता,आभार.
ReplyDeleteआपकी बेहतरीन रचना कल नयी पुरानी हलचल पर
ReplyDeleteकृपया पधारे......राय दें
सार्थक हाइकू ...
ReplyDeleteहरसिंगार की कल्पना की कविता है अपने आप में ...
सार्थक और
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
बधाई
मनमोहक सुवास..
ReplyDelete