सृजित हुए छंद .....
तांका --
पीरा मन की
तपता रेगिस्तान
बिखरे ख्वाब
पतझड़ समान
बसंत भी रुलाए .
तुम हो मेरे
भाव सखा सजन
तुम्हारे बिन
व्यथित मेरा मन
बतलाऊं मै कैसे ?
चंचल हवा
मदमाती सी फिरे
सुन री सखी
महका है बसंत
पिय का आगमन
शीतल हवा
ये अलकों से खेले
मनवा डोले
बजने लगे चंग
सृजित हुए छंद
29.05.13
-- शशि पुरवार
बहुत सुन्दर सृजन..
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति
ReplyDelete....शुभकामनायें :)
ReplyDeletenice creation
ReplyDeleteबहुत उम्दा,लाजबाब रचना ,,
ReplyDeleteRecent post: ओ प्यारी लली,
सुंदर अभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteसटीक शब्द , गहराई और सूक्ष्मता से भारतीय नारी की आकांक्षओं का दुर्लभ वर्णन .
ReplyDeleteहार्दिक बधाई .मंगल कुशल और शुभ कामनाएं .
अनुपम काव्य धारा ... बधाई ...
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति
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