Tuesday, July 16, 2013

प्रकृति ने दिया है अपना जबाब ,



प्रकृति की
नैसर्गिक चित्रकारी पर
मानव ने खींच दी है
विनाशकारी लकीरें,
सूखने लगे है जलप्रताप, नदियाँ
फिर
एक जलजला  सा
समुद्र  की गहराईयों में
और  प्रलय का नाग
लीलने  लगा
मानव निर्मित कृतियों को.
धीरे  धीरे
चित्त्कार उठी धरती
फटने  लगे बादल
बदल गए मौसम
बिगड़ गया  संतुलन, 
ये जीवन, फिर
हम किसे दोष दे ?
प्रकृति  को ?
या मानव को ?
जिसने 
अपनी
महत्वकांशाओ तले
प्राकृतिक सम्पदा का
विनाश किया।
अंततः  
रौद्र रूप  धारण करके
प्रकृति ने दिया है
अपना जबाब ,
मानव की
कालगुजारी का,
लोलुपता  का,
विध्वंसता का,
जिसका
नशा मानव से
उतरता ही नहीं .
और 
प्रकृति उस नशे को
ग्रहण  करती नहीं .

 --शशि पुरवार
१२ -७ - १ ३
१२ .५ ५ am









17 comments:

  1. बेहतरीन रचना.

    रामराम.

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  2. बहुत सच कहा आपने शशि जी...बहुत सुन्दर.!!

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  3. बहुत ही सुन्दर रचना है @शशि जी हार्दिक बधाई

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

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  5. मानव की
    कालगुजारी का,
    लोलुपता का,
    विध्वंसता का,
    जिसका
    नशा मानव से
    उतरता ही नहीं .
    और
    प्रकृति उस नशे को
    ग्रहण करती नहीं

    यही सच है -बढ़िया प्रस्तुति
    latest post सुख -दुःख

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  6. बहुत उम्दा,सुंदर सृजन,,,वाह !!! क्या बात है

    RECENT POST : अभी भी आशा है,

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  7. बहुत सुंदर, शुभकामनाये

    यहाँ भी पधारे
    दिल चाहता है
    http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_971.html

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  8. एकदम सच बात कही शशिजी । मानव प्रकृति के साथ जो अन्याय कर रहा है उसका बदला मिलेगा ही । बधाई । सस्नेह

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  9. एकदम सच बात कही शशिजी । मानव प्रकृति के साथ जो अन्याय कर रहा है उसका बदला मिलेगा ही । बधाई । सस्नेह

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  10. सटीक रचना ...सच भी है

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  11. बेहद सुन्दर प्रस्तुतीकरण ....!!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बुधवार (17-07-2013) को में” उफ़ ये बारिश और पुरसूकून जिंदगी ..........बुधवारीय चर्चा १३७५ !! चर्चा मंच पर भी होगी!
    सादर...!

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  12. प्रकृति ने दे दिया अपना जवाब , इशारे में समझाया बहुत था !

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  13. आपकी यह रचना कल गुरुवार (18-07-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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  14. प्रकृति का नाद स्पष्ट सुनायी पड़ता है।

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