१
बहता पानी
विचारो की रवानी
हसीं ये जिंदगानी
सांझ बेला में
परिवार का साथ
संस्कारों की जीत .
२
बरसा पानी
सुख का आगमन
घर संसार तले
तप्त ममता
बजती शहनाई
बेटी हुई पराई .
३
हाथों में खेनी
तिरते है विचार
बेजोड़ शिल्पकारी
गड़े आकार
आँखों में भर पानी
शिला पे चित्रकारी .
४
जग कहता
है पत्थर के पिता
समेटे परिवार
कुटुंब खास
दिल में भरा पानी
पिता की है कहानी .
--------- शशि पुरवार
१३ ,७ .१ ३
आपने लिखा....हमने पढ़ा....
ReplyDeleteऔर लोग भी पढ़ें; ...इसलिए शनिवार 20/07/2013 को
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
पर लिंक की जाएगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र
लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद!
सुन्दर प्रस्तुति ....!!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज बृहस्पतिवार (18-07-2013) को में” हमारी शिक्षा प्रणाली कहाँ ले जा रही है हमें ? ( चर्चा - 1310 ) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
संवेदनपूर्ण अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुती ,आभार।
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति साधुवाद
ReplyDeleteसुंदर भाव...
ReplyDeleteएक नजर इधर भी...
यही तोसंसार है...
बहुत ही सुंदर.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत उम्दा,संवेदनशील सृजन,,,वाह !!!
ReplyDeleteRECENT POST : अभी भी आशा है,
बिखरे हुए चिन्तन क्षण अपने शब्दों में समा लिए आपने और कविचा रच गई!
ReplyDeleteखुबसूरत रचना.....
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