Monday, July 22, 2013

एक मुक्तक --


धरा खिलती है अंबर खिलता है
पौधे रोपिये जीवन मिलता है
उजियारा फैलता है कण कण में
धूप निकली जब सूरज जलता है .

- शशि पुरवार

19 comments:

  1. प्रकाश फैलाने के लिये किसी न किसी को जलना ही पड़ता है।

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  2. बहुत सुंदर संदेश.

    रामराम.

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  3. बहुत सार्थक सन्देश...

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  4. सार्थक सन्देश लिए हुए.... खूबसूरत रचना......

    शब्दों की मुस्कुराहट पर .... हादसों के शहर में :)

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  5. Kitna sach farmaya! Jab koyi jalta hai tabhi ujala hota hai...sooraj ho ya shama!

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  6. आपकी इस शानदार प्रस्तुति की चर्चा कल मंगलवार २३/७ /१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है सस्नेह ।

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  7. बहुत सुंदर,

    यहाँ भी पधारे
    गुरु को समर्पित
    http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_22.html

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  8. वृक्षे-वृक्षे वेणुधारी ,पत्रे-पत्रे चतुर्भुजः -वनस्पतियाँ सर्वविधि हमारा कल्याण करती हैं .

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  9. ापने लिखा... हमने पढ़ा... और भी पढ़ें...इस लिये आपकी इस प्रविष्टी का लिंक 26-07-2013 यानी आने वाले शुकरवार की नई पुरानी हलचल पर भी है...
    आप भी इस हलचल में शामिल होकर इस की शोभा बढ़ाएं तथा इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और नयी पुरानी हलचल को समृद्ध बनाएं.... आपकी एक टिप्पणी हलचल में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान और रचनाकारोम का मनोबल बढ़ाएगी...
    मिलते हैं फिर शुकरवार को आप की इस रचना के साथ।



    जय हिंद जय भारत...


    मन का मंथन... मेरे विचारों कादर्पण...


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  10. बधाई! यहाँ भी पधारें
    http://www.rajeevranjangiri.blogspot.in/

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  11. बहुत खूब ... लाजवाब मुक्तक .. सूरज आशा ले कर आता है ...

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  12. खूबसूरत रचना.

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  13. खुबसूरत रचना

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