मन के तार ...........
1
बन जाऊं में
शीतल पवन ,तो
तपन मिटे
2
बन जाऊं में
बहती जल धारा
प्यास बुझाऊं
3
दूर हो जाए
जहाँन से अँधेरा
दीप जलाऊं
4
तेरे लिए तो
जान भी हाजिर है
मै वारि जाऊं
5
खुदा लेता है
पल पल परीक्षा
क्यूँ मै डरूं
6
अडिग रहूँ
पहाड़ो सी अचल
हूँ संरक्षक .
7
मन के तार
सरगम से बजे
खिला मौसम
---- शशि पुरवार
आपने लिखा....हमने पढ़ा....
ReplyDeleteऔर लोग भी पढ़ें; ...इसलिए शनिवार 27/07/2013 को
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
पर लिंक की जाएगी.... आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है ..........धन्यवाद!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज शुक्रवार (26-07-2013) को खुलती रविकर पोल, पोल चौदह में होना: चर्चा मंच 1318 पर "मयंक का कोना" में भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आस और विश्वास जगाती पंक्तियाँ..
ReplyDeletepadhne waalaa prafullit huaa
ReplyDeleteबहुत ही गहन और सार्थक हाइकू.
ReplyDeleteरामराम.
पांचवें हाइकू में 5 8 4 अक्षर हो गये हैं, देखियेगा.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteवाह बहुत खूब
ReplyDeletebhaut khub...
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