Friday, July 12, 2013

अभी कुछ और करिश्मे गजल के देखते है






चलो नज़ारे यहाँ आजकल के देखते है
अजीब लोग है कितने ये चल के देखते है

गली गली में यहाँ पाप कितना है फैला
खुदा के नाम से ईमान छल के देखते है

ये लोग कितने  गिरे आबरू से जो खेले
झुकी हुई ये निगाहों को मल के देखते है

ये जात पात के मंजर तो कब जहाँ से मिटे  
बनावटी ये जहाँ से निकल के देखते है

कलम कहे कि जिधर प्यार का जहाँ हो ,चलो

अभी कुछ और करिश्मे गजल के देखते है .
---- शशि पुरवार

14 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन रुस्तम ए हिन्द स्व ॰ दारा सिंह जी की पहली बरसी - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. ये जात पात के मंजर तो कब जहाँ से मिटे
    बनावटी ये जहाँ से निकल के देखते है

    कलम कहे कि जिधर प्यार का जहाँ हो ,चलो
    अभी कुछ और करिश्मे गजल के देखते है .



    बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको . कभी यहाँ भी पधारें ,कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

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  3. ये जात पात के मंजर तो कब जहाँ से मिटे
    बनावटी ये जहाँ से निकल के देखते है

    वाह खूबसूरत गजल, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  4. वाह ! वाह !!! बहुत सुंदर बेहतरीन गजल ,क्या बात है,बधाई शशि जी ,,,

    RECENT POST ....: नीयत बदल गई.

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  5. चलो नज़ारे यहाँ आजकल के देखते है
    अजीब लोग है कितने चल के देखते है
    Ye shuruati ashar bahut hee sundar hain....pooree gazal bahut pasand aayi hai...

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  6. अजीब लोग है कितने ये चल के देखते हैँ " होना चाहिये ऊपर शायद 'ये" लिखना छूट गया ।

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  7. ये लोग कितने गिरे आबरू से जो खेले
    झुकी हुई ये निगाहों को मल के देखते है

    बहुत सुंदर गजल, शुभकामनाये

    यहाँ भी पधारे ,


    http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_909.html

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  8. sabhi mitro ka tahe dil se dhanyavad jinhone apni anmol tipni se rachna ko sahara .

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  9. वाह ... बेहतरीन गज़ल ... अंतिम शेर कमाल का है ...

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  10. बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है आपने!
    चुन-चुनकर शब्दों से सटीक प्रहार किया है इस नज़्म में!

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  11. बेहद लाजवाब ग़ज़ल की प्रस्तुति । दिल को छू गयी । बधाई । सस्नेह

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