चलो नज़ारे यहाँ आजकल के देखते है
अजीब लोग है कितने ये चल के देखते है
गली गली में यहाँ पाप कितना है फैला
खुदा के नाम से ईमान छल के देखते है
ये लोग कितने गिरे आबरू से जो खेले
झुकी हुई ये निगाहों को मल के देखते है
ये जात पात के मंजर तो कब जहाँ से मिटे
बनावटी ये जहाँ से निकल के देखते है
कलम कहे कि जिधर प्यार का जहाँ हो ,चलो
अभी कुछ और करिश्मे गजल के देखते है .
---- शशि पुरवार
वाह, बहुत बहती गज़ल..
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन रुस्तम ए हिन्द स्व ॰ दारा सिंह जी की पहली बरसी - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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ReplyDeleteबहुत सुन्दर ग़ज़ल शशि जी !
latest post केदारनाथ में प्रलय (२)
ReplyDeleteये जात पात के मंजर तो कब जहाँ से मिटे
बनावटी ये जहाँ से निकल के देखते है
कलम कहे कि जिधर प्यार का जहाँ हो ,चलो
अभी कुछ और करिश्मे गजल के देखते है .
बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको . कभी यहाँ भी पधारें ,कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
nice one mam
ReplyDeleteये जात पात के मंजर तो कब जहाँ से मिटे
ReplyDeleteबनावटी ये जहाँ से निकल के देखते है
वाह खूबसूरत गजल, शुभकामनाएं.
रामराम.
वाह ! वाह !!! बहुत सुंदर बेहतरीन गजल ,क्या बात है,बधाई शशि जी ,,,
ReplyDeleteRECENT POST ....: नीयत बदल गई.
ReplyDeleteचलो नज़ारे यहाँ आजकल के देखते है
अजीब लोग है कितने चल के देखते है
Ye shuruati ashar bahut hee sundar hain....pooree gazal bahut pasand aayi hai...
अजीब लोग है कितने ये चल के देखते हैँ " होना चाहिये ऊपर शायद 'ये" लिखना छूट गया ।
ReplyDeleteये लोग कितने गिरे आबरू से जो खेले
ReplyDeleteझुकी हुई ये निगाहों को मल के देखते है
बहुत सुंदर गजल, शुभकामनाये
यहाँ भी पधारे ,
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_909.html
sabhi mitro ka tahe dil se dhanyavad jinhone apni anmol tipni se rachna ko sahara .
ReplyDeleteवाह ... बेहतरीन गज़ल ... अंतिम शेर कमाल का है ...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है आपने!
ReplyDeleteचुन-चुनकर शब्दों से सटीक प्रहार किया है इस नज़्म में!
बेहद लाजवाब ग़ज़ल की प्रस्तुति । दिल को छू गयी । बधाई । सस्नेह
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