Monday, September 16, 2013

मन के भाव। ….




मन के भाव
शांत उपवन में 
पाखी से उड़े .

उड़े है  पंछी
नया जहाँ बसाने
नीड़ है खाली।

मन की पीर
शब्दों की अंगीठी से
जन्मे है गीत।

सुख औ दुःख
नदी के दो किनारे
खुली किताब।

मै कासे कहूँ
सुलगते है भाव
सूखती जड़े।

मोहे न जाने
मन का सांवरिया
खुली पलकें

मन चंचल
बदलता मौसम
सर्द रातों में।

मन उजला
रंगों की चित्रकारी
कलम लिखे।

 
-- शशि पुरवार


Saturday, September 14, 2013

भारत की पहचान है हिंदी

भारत की पहचान है हिंदी
हर दिल का सम्मान है हिंदी

जन जन की है मोहिनी भाषा
समरसता की खान है हिंदी

छन्दों के रस में भीगी ,ये
गीत गजल की शान है हिंदी

ढल जाती भावो में ऐसे
कविता का सोपान है हिंदी

शब्दों  का अनमोल है सागर
सब कवियों की जान है हिंदी

सात सुरों का है ये संगम
मीठा सा मधुपान  है हिंदी

क्षुधा ह्रदय  की मिट जाती है
देवों का वरदान  है  हिंदी

वेदों की गाथा है समाहित
संस्कृति की धनवान है हिंदी

गौरवशाली भाषा है यह
भाषाओं का ज्ञान है हिंदी

भारत के  जो रहने वाले  
उन सबका अभिमान है हिंदी।
--- शशि पुरवार


Friday, September 13, 2013

अक्स लगा पराया




मेरा  ही अंश
मुझसे ही  कहता
मै हूँ तोरी ही छाया
जीवन भर
मै तो प्रीत निभाऊँ
क्षणभंगुर माया।


जीवन संध्या
सिमटे हुए पल
फिर तन्हा डगर
ठहर गयी
यूँ दो पल नजर
अक्स लगा पराया


शांत जल में
जो मारा है कंकर
छिन्न भिन्न लहरें
मचल गयी
पाषाण बना हुआ
मेरा ही प्रतिबिम्ब .


चंचल रवि
यूँ मुस्काता आया
पसर गयी धूप
कण कण में
विस्मित है प्रकृति
चहुँ और है छाया।


चांदनी रात
छुपती परछाईयाँ
खोल रही है पन्ने
 महकी यादें
दिल की घाटियों मे
घूमता बचपन।

 ६
जन्म से  नाता
मिली परछाईयाँ
मेरे ही अस्तित्व की
खुली तस्वीर
उजागर करती
सुख दुःख की छाँव।


नन्हे   कदम
धीरे से बढ़ चले
चुपके से पहने
पिता के जूते
पहचाना सफ़र
बने उनकी छाया। 

---- शशि  पुरवार





Wednesday, September 11, 2013

ये नया जहाँ। .



 
पुलकित है
खिलखिलाते शिशु
हवा के संग।


बेकरारी सी
भर लूँ निगाहों में
ये नया जहाँ।


मै भी तो चाहूँ
एक नया जीवन
खिलखिलाता


साथ साथ ये

बढ़ रहे कदम
छू लूं आसमां।


मुस्कुरा रही
ये नन्ही सी गुडिया
थाम लो मुझे


प्रफुल्लित है
नन्हे प्यारे से पौधे
छूना न मुझे


दुलार करूँ
भर लूँ आँचल में
मेरा ही अंश


हरे भरे से
रचे नया संसार
रा का स्नेह

-- शशि पुरवार

Thursday, September 5, 2013

हृदय की तरंगो ने गीत गाया है। ।



हृदय की तरंगो ने गीत गया है
खुशियों का पैगाम लिए
मनमीत आया है

जीवन में बह रही
ठंडी हवा
सपनो को पंख मिले
महकी दुआ

मन में उमंगो का
शोर छाया है
भोर की सरगम ने  ,मधुर
नवगीत गाया  है।


भूल गए पल भर में
दुख की निशा
पलकों को मिल गयी
नयी दिशा

सुख का मोती नजर में
झिलमिलाया है
हाँ ,रात से ममता  भरा
नवनीत पाया  है।

तुफानो की कश्ती से
डरना नहीं
सागर की मौजों में
खोना नहीं

पूनों के चाँद ने
मुझे बुलाया है
रोम  रोम सुभितियों में
संगीत आया है।
ह्रदय की तरंगो ने गीत गया है।
 ------- शशि पुरवार