Wednesday, September 11, 2013

ये नया जहाँ। .



 
पुलकित है
खिलखिलाते शिशु
हवा के संग।


बेकरारी सी
भर लूँ निगाहों में
ये नया जहाँ।


मै भी तो चाहूँ
एक नया जीवन
खिलखिलाता


साथ साथ ये

बढ़ रहे कदम
छू लूं आसमां।


मुस्कुरा रही
ये नन्ही सी गुडिया
थाम लो मुझे


प्रफुल्लित है
नन्हे प्यारे से पौधे
छूना न मुझे


दुलार करूँ
भर लूँ आँचल में
मेरा ही अंश


हरे भरे से
रचे नया संसार
रा का स्नेह

-- शशि पुरवार

13 comments:

  1. आपकी यह प्रस्तुति 12-09-2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत है
    कृपया पधारें
    धन्यवाद

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  2. हरे भरे से
    रचे नया संसार
    धरा का स्नेह

    बेह्तरीन अभिव्यक्ति …!!गणेशोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें.
    कभी यहाँ भी पधारें।
    सादर मदन

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  3. बहुत सुन्दर क्षणिकायें।

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  4. बहुत सुंदर क्षणि‍काएं

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  5. sabhi mitro ka tahe dil se abhaar , apna sneh banaye rakhen , aapki samiksha anmol hai hamare liye

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  6. कोमल क्षणिकाएँ।

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