Wednesday, April 20, 2016

कुण्डलियाँ -- प्रेम से मिटती खाई



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अच्छाई की राह पर, नित करना तुम काज 
सच्चाई मिटटी नहीं, बनती है सरताज  
बनती है सरताज, झूठ की परतें खोले 
मिट  जाए संताप, मौन सी सरगम  डोले
कहती शशि यह सत्य, प्रेम से मिटती खाई
दंभ, झूठ का हास, चमकती है सच्चाई। 


दलदल ऐसा झूठ का, राही  धँसता जाय
एक बार जो फँस गया, निकल कभी ना पाय
निकल कभी ना पाय,  मृषा के रास्ते खोटे
मति पर परदा डाल, लोभ के चशमें मोटे
कहाँ साँच को आँच, चित्त को देता संबल
कर देता  बर्बाद, झूठ का ऐसा दलदल 
                --- शशि पुरवार 

7 comments:

  1. प्रेम और सत्य की राह दिखाती सुन्दर कुंडलियाँ ...

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 21 अप्रैल 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  3. नीतिपरक कुंडलियाँ शशि जी। बस दूसरी रचना में... मृषा के रास्ते के खोटे... वाली पद में विधान व लय बाधित हो गयी है... 'के' हटा दें

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  4. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 21 - 04 - 2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2319 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  5. बहुत सुंदर कुंडलि‍यां

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  6. सुन्दर कुण्डलियाँ

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