Friday, December 2, 2016

बूझो तो जाने। ..

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१ 
सुबह सवेरे रोज जगाये 
नयी ताजगी लेकर आये 
दिन ढलते, ढलता रंग रूप 
क्या सखि साजन ?
नहीं सखि  धूप
२ 

साथ तुम्हारा सबसे प्यारा 
दिल चाहे फिर मिलूँ दुबारा 
हर पल बूझू , एक पहेली 
क्या सखि साजन ?
नहीं सहेली।
३ 

रोज,रात -दिन, साथ हमारा  
तुमको देखें दिल बेचारा  
पल जब ठहरा, मैं, रही खड़ी 
क्या सखि साजन ?
ना सखी घडी।
४ 

तुमसे ही संसार हमारा  
ना मिले तो दिल बेचारा
पाकर तुमको हुई धनवान  
क्या सखि साजन ?
नहीं सखि ज्ञान।

शशि पुरवार 

10 comments:

  1. बहुत सुन्दर

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (04-12-2016) को "ये भी मुमकिन है वक़्त करवट बदले" (चर्चा अंक-2546) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. शुभ प्रभात
    अच्छी कहमुकरी
    पर ये रचना श्री रमेशराज जी अलीगढ़ वालो की है
    इसके कुछ अंश मैने मेरी धरोहर मे प्रकाशित किया था
    कृपया देखेंं
    गहरे जल में झट लै जाय............रमेशराज
    निवेदन...
    कृपया रचनाकार का नाम संशोधित करें
    सादर

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  4. नमस्कार
    यशोदा जी मुझे इस सन्दर्भ में कुछ ज्ञात नहीं है , मैंने उन्हें कल लिखा था और पोस्ट किया, मैंने रमेश जी या अन्य किसी की कहमुकरी नहीं पढ़ी हैं , कई बार ऐसा हो जाता है कि दो लोगों के विचार एक जैसे आये हैं ऐसा मेरे गीत के साथ हो चुका था , मेरे ही गीत की पंक्तियाँ अन्य किसी के गीतों में मिली और मेरा गीत पहले रचा गया था , आपने जानकारी दी आभार। हम किसी की रचना से मेल होते हुए भाव लिखना पसंद नहीं करतें हैं
    सादर
    शशि पुरवार
    kripaya mukhe link den .

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    Replies
    1. मैं कभी किसी के भाव नहीं लेती
      यह मेरी कलम कीसत्यता की बात है
      यदि ऐसा है तो मैं ब्लॉग पोस्ट हटा दूँगी
      यह कह मुकरी मैंने गत वर्ष फेसबुक पर शेयर की थी

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    2. यशोदा जी आपने डरा ही दिया , कहमुकरी इसी प्रकार लिखी जाती हैं रमेश राज जी के भाव और कहमुकरी अलग है मेरी अलग कृपया आप देखें।
      http://4yashoda.blogspot.in/2016/09/blog-post_12.html
      आपके इस प्रश्न में मेरे ऊपर प्रश्नचिन्ह लगाया है यह गरिमा का सवाल है। यह उचित नहीं है, आप तो शुरुआत में मुझे पढ़ रही है

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  5. शुभ प्रभात दीदी
    सादर नमन
    दुबारा फिर से पढ़ी मैं
    दोनो रचनाएँ
    अंतर जाना
    मैंं मात्र पाठिका हूँ...लेखन का मर्म कम ही समझती हूँ
    किसी ने कहा है..कि एक अच्छा पाठक भी लिख सकता है
    सो पढ़ती ही हूँ...लिखने की प्रत्याशा में
    क्षमा याचना सहित..
    यशोदा

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