रफ्ता -रफ्ता.....
रफ्ता -रफ्ता यादो के बादल छाते है
हम तेरे शहर से दूर अब जाते है .
वक्त का सितम तो कुछ कम नहीं है
पर तेरी बेरूखी से हम तो मरे जाते है .
ज़माने में रुसवा न हो जाये प्यार मेरा
चुपके से नजरे झुका के निकल जाते है .
इन्तिहाँ है यह सच्चे प्यार व इंतजार की
तेरी खातिर हम झूठी मुस्कान दिखाते है .
सदैव खुश रहे तू यही दुआ है मेरी
तेरी खातिर हम खुदा के दर भी जाते है .
रफ्ता -रफ्ता .......!
:---शशि पुरवार
बहुत ख़ूबसूरत रचना...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति है ।
ReplyDeleteबेहतरीन!
ReplyDeleteसादर
सुन्दर .....
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ReplyDeleteraftaa raftaa ham padhte jaate hein
ReplyDeletekhud bhee yaadon mein kho jaate hein
raftaa raftaa......
बहुत खूब
ReplyDeleteyahi to piyar hai.....bahut accha...
ReplyDeletebahut sundar .badhai
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अनुपम भाव लिए बहुत सुंदर रचना...बेहतरीन पोस्ट,...शशि जी...
ReplyDelete.
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....
वक्त का सितम कुछ भी नहीं ................क्या बात है अच्छा शेर मुबारक हो
ReplyDeleteतुस्सी ना जाओ.................
ReplyDeleteइतनी प्यारी रचनाएँ कौन लिखेगा???
:-)
sunil ji , rajendra ji anu ji , yashwant ji , ansaari ji dheerendra ji , nisha ji , verma ji ..........aap sabhi ka hardik abhar aapne bahumulye tipni se nawaja .rachna ko
Deletewaah !!! poori tarah samrpit,,,pyar ke liye bas jiye chale jaate hai'n....behad jazbaati rachna....
ReplyDeleteसुंदर भावों से सजी खूबसूरत रचना !
ReplyDeleteसुंदर रचना...
ReplyDeleteसादर।
वाह......
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