अहंकार - पतन का मार्ग
आत्मा से चिपका
प्रयासों में घुसा
परिग्रह
... हुआ " मै "!
" मै " जब ठहरा
विस्तार हुआ ...
जागृत रूप में " मेरा ".
"मेरा " कब " अहं" बना ..?
अपरिग्रह .
अहंकार - पतन का मार्ग
आत्मा - निराकार
वस्तु - भोग विलास
"मै " , "अहं " !
अशांति , हिंसा की
प्रथम शुरुआत .
नहीं इसके संग
जीवन , शांति ,
विकास ,प्रगति का मार्ग .
जीने की राह ...!
आत्मसाध .
सरल सादा अंदाज
सभी निराकार .
:- शशि पुरवार
जब मै का भाव आत्मा से चिपक जाता है वक्त का सितम शुरू हो जाता है एवम व्यक्ति इसके लिए खुदा को दोष देता है ......पर अहं हमारे भीतर प्रवेश करता है तो क्या अच्छा क्या बुरा सिर्फ "मै " ही दिखता है और यही से पतन की शुरुआत होती है व मानव खुद को ही सर्वोपरि मानता है ..........
शशि पुरवार
bahut hi sarthak rachna
ReplyDeleteमौजूदा दौर में यही स्थिति है....सही चित्रण शशि जी
ReplyDeletemai aur meraa
ReplyDeletehee jab hotaa hai sab kuchh
patan nischit...
जहां ‘मैं‘ है, वहां अहंकार है।
ReplyDeleteअच्छी पंक्तियां।
जब मैं दिखने लगता है तो तुम दिखना बंद हो जाता है.......
ReplyDeleteपतन तो होगा ही..........
बहुत सुंदर रचना शशि जी..
बधाई.
निश्चित ही अहंकार पतन का मार्ग है
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना...शशि जी
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....
मैं' और अहम' ..
ReplyDeleteअंतरद्वंद चित्रण
अहंकार - पतन का मार्ग का मार्ग है ....जिसने किया अहंकार ...उस-उस का हुआ विनाश ....सुंदर अभिव्यक्ति ..........Shashi ji ..
ReplyDeleteअच्छी रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर
कभी कभी लगता है ये पतन का मार्ग भी इश्वर ही दिखाता है ...
ReplyDeleteमैं भी तभी तो आता है ...
जीवन में अपनाने की जरूरत है मंथन करने योग्य सार्थक पोस्ट आभार
ReplyDeleteवाह शशि जी,बहुत खूब...आपकी रचना.
ReplyDelete"जब मै था तब हरि नहीं अब हरि हैं मै नाहि"
बहुत ही गहन रचना आपकी कलम से...बधाई स्वीकारें :)))