Sunday, April 15, 2012

अहंकार - पतन का मार्ग

आत्मा से चिपका
प्रयासों में घुसा
परिग्रह
... हुआ " मै "!
" मै " जब ठहरा
विस्तार हुआ ...
जागृत रूप में " मेरा ".
"मेरा " कब " अहं" बना ..?
अपरिग्रह .
अहंकार - पतन का मार्ग
आत्मा - निराकार
वस्तु - भोग विलास
"मै " , "अहं " !
अशांति , हिंसा की
प्रथम शुरुआत .
नहीं इसके संग
जीवन , शांति ,
विकास ,प्रगति का मार्ग .
जीने की राह ...!
आत्मसाध .
सरल सादा अंदाज
सभी निराकार .
              :- शशि पुरवार
जब मै का भाव  आत्मा से चिपक जाता है वक्त का सितम  शुरू  हो जाता है  एवम व्यक्ति इसके लिए खुदा को दोष देता है ......पर अहं हमारे भीतर प्रवेश करता है तो क्या अच्छा क्या बुरा सिर्फ "मै " ही दिखता है और यही से  पतन की  शुरुआत होती है    व  मानव खुद को ही सर्वोपरि मानता है ..........
                                           शशि पुरवार

12 comments:

  1. मौजूदा दौर में यही स्थिति है....सही चित्रण शशि जी

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  2. mai aur meraa
    hee jab hotaa hai sab kuchh
    patan nischit...

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  3. जहां ‘मैं‘ है, वहां अहंकार है।
    अच्छी पंक्तियां।

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  4. जब मैं दिखने लगता है तो तुम दिखना बंद हो जाता है.......
    पतन तो होगा ही..........

    बहुत सुंदर रचना शशि जी..
    बधाई.

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  5. निश्चित ही अहंकार पतन का मार्ग है
    बहुत सुंदर रचना...शशि जी

    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....

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  6. मैं' और अहम' ..
    अंतरद्वंद चित्रण

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  7. अहंकार - पतन का मार्ग का मार्ग है ....जिसने किया अहंकार ...उस-उस का हुआ विनाश ....सुंदर अभिव्यक्ति ..........Shashi ji ..

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  8. कभी कभी लगता है ये पतन का मार्ग भी इश्वर ही दिखाता है ...
    मैं भी तभी तो आता है ...

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  9. जीवन में अपनाने की जरूरत है मंथन करने योग्य सार्थक पोस्ट आभार

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  10. वाह शशि जी,बहुत खूब...आपकी रचना.
    "जब मै था तब हरि नहीं अब हरि हैं मै नाहि"
    बहुत ही गहन रचना आपकी कलम से...बधाई स्वीकारें :)))

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