तपती जून में.........
चिलचिलाती धूप
चुभती गर्मी
तन मन की
प्यास बढाए.
जलती आँखें
चुभती साँसें
पपड़ाये होठ
बहता घाम
तेज वारा
पवन भी
भरमाए.
जलती धरा पे
पड़ी जो बूंद
भाप बन
उड़ जाए
पथिक को
मिले न चैन
उमस तो
घिर -घिर आए.
बरसो हे ,इन्द्र
रिमझिम -रिमझिम
तपती जून में
थोड़ी सी माटी
की खुशबु
हवा में घुल जाए
बदले जो रूख
हवा का जरा
मौसम खुशगवार
बन जाए
फिजा की
बदली करवट
तन मन की
प्यास बुझाये ...!
:-- शशि पुरवार
अरे बरसेंगे .........
ReplyDeleteज़रूर बरसेंगे.........
तन मन की प्यास भी बुझेगी..............
सुन्दर रचना.
आज तो दिल्ली का मौसम खुशगवार हो गया है . आपके आह्वान का असर है शायद.
ReplyDeleteबारिश की पहली फुहार ने मौसम को खुशगवार बना दिया,,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST ,,,,,पर याद छोड़ जायेगें,,,,,
बेहतरीन अभिव्यक्ति शशि जी
ReplyDeleteइंद्र को बुलाने का खूबसूरत अंदाज़ ...
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteसादर
तपती गर्मी में तुमसे
ReplyDeleteदो बात हो जाए
दिल को ठंडक
मन को सुकून मिल जाए
फ़िज़ा में बरखा का
अहसास हो जाए
मिट्टी की भीनी सुगंध
साँसों में बस जाए
मन झूम झूम प्रेम
गीत गाये
तपती गर्मी में तुमसे
दो बात हो जाए
बहुत ही खूबसूरती से जून की तपन को अभिव्यक्त किया है...
ReplyDeleteबस मेघ छने वाले ही हैं ..... धरा की प्यास बुझाने वाले हैं .... सुंदर प्रस्तुति
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