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Friday, July 27, 2012
Thursday, July 12, 2012
अकेला आदमी
अधुनातन लम्हो में
स्वतः ही खनकती
हंसी को टटोलता
अकेला आदमी .
लोलुपता की चाह में
बिखर गए रिश्ते
छोड़ अपनी रहगुजर
फलक में
उड़ चला आदमी .
उपलब्धियो के
शीशमहल में
सुभिताओं से
लैस कोष्ठ में ,
खुद को छलता ,
दुनिया से
संपर्क करता ,
पर एक कांधे को
तरसता आदमी .
उतंग पर खड़ा ,
कल्पित अवहास
अभिवाद करता
अज्ञात मुखड़ो
को तकता ,
भीड़ में भी
इकलंत आदमी .
----- शशि पुरवार
Saturday, July 7, 2012
माँ उदास ....!
माँ उदास
मारती रही औलाद
तीखे संवाद ,
भयी कोख उजाड़ .
बरसा सावन तो
पी गए नयन
दबी सिसकियां
शिथिल तन
उजड़ गयी कोख
तार तार दामन .
खून से सने हाथ
भ्रूण न ले सके सांस
चित्कारी आह
हो रहा गुनाह
माँ की रूह को
छलनी कर
सिर्फ पुत्र चाह .
जिस कोख से जन्मे देव
उसी कोख के
अस्तित्व का सवाल
सृष्टि की सृजक नारी
आत्मा जार जार
हो रहा कत्लोआम
परिवर्तन की पुकार .
माँ उदास ......भयी कोख उजाड़ ....!
------- शशि पुरवार