Sunday, June 30, 2013

ठूंठ सा वन



ठूंठ ---

१ 


ठूंठ सा तन

पपड़ाया यौवन


पंछी भी उड़े .

२ 


सिसकती सी

ठहरी है जिंदगी

राहों में आज



शुलो सी चुभन 



दर्द भरा जीवन   
मौन रुदन .
सिमटी जड़ें
हरा भरा था कभी
वो बचपन

को से मै कहूं
पीर पर्वत हुई
ठूंठ सी खड़ी

झरते पत्ते
बेजान होता तन
ठूंठ सा वन

राहो में खड़े
देख रहे बसंत
बीता यौवन

जीने की आस
महकने की प्यास
जिंदगी खास .

हिम पिघले
पहाड़ ठूंठ बन
राहो में खड़े.
१०
ठूंठ बन के
सन्नाटे भी कहते
पास न आओ .
११
चीखें बेजान
तड़पती है साँसे
ठूंठ सी लाशें .
1२
मृत विचार
लोलुपता की प्यास
ठूंठ सा मन .


----शशि पुरवार

 

Tuesday, June 25, 2013

एक तोहफा आशीष भरा --

यह शब्दों का प्यारा सा तोहफा मुझे मिला रूपचंद्र शाश्त्री जी से --- आप सबके साथ शेयर कर रही हूँ .
 इस आभासी संसार में
 चर्चा मंच की चर्चाकार 
"शशि पुरवार" का जन्मदिन है।
उपहारस्वरूप कुछ शब्द सजाये हैं!
जन्मदिन पुरवार शशि का आज आया।
आज बिटिया के लिए, आशीष का उपहार लाया।।
मन नवल उल्लास लेकर, नृत्य आँगन में करें,
धान्य-धन परिपूर्ण होवे, जगनियन्ता सुख भरें,
आपके सिर पर रहे, सौभाग्य का अनमोल साया।
आज बिटिया के लिए, आशीष का उपहार लाया।।
शशि तुम्हारी रौशनी से, हो रहा पुलकित हो गगन,
जब कली खिलती, तभी खुशबू लुटाता है चमन,
जगमगाते तारकों ने, आज मंगलगान गाया।
आज बिटिया के लिए, आशीष का उपहार लाया।।
बाँटता खुशियाँ सदा, आभास का संसार है,
घन खुशी के तब बरसते, जब सरसता प्यार है,
डोर नातों की बँधी तो, नेह ने अधिकार पाया।
आज बिटिया के लिए, आशीष का उपहार लाया।।

Saturday, June 22, 2013

सदा साथ होंगे हम ........शब्दों के माध्यम से।

सपनो को लगा के पंख 
कुछ यूँ  मुस्काये 
जज्बात
जैसे ठहर गयी हो 
चांदनी मन की
 घाटियों में
कैसे कहूँ ,
मन के भावो को 
घुमड़ रहे 
अनगिनत विचार ,
व 
खेल रहे सपने 
शब्दों के सूरज से,
और 
बना रहे 
एक नया
आकाश,
एक ब्रह्मांड 
मेरे सपनो की 
घाटियों में .
कल हो न हो 
पर महकेंगे  मेरे

भावो के फूल
जीवन बन कर 
सपनो की 
इन्ही यादों में 
फिर 
सदा साथ होंगे हम
गीत ,गजल ,या छंद
नहीं ,बस 
एक खूबसूरत सा 
एःसास और 
प्यार बन के 
शब्दों के 

माध्यम से
इन्ही वादियों में ...... शशि पुरवार 







आज से तीन साल पहले मैंने  मेरे जन्मदिन पर मेरे प्यारे ब्लॉग सपने  को एक आकर दिया था और  किताबों में बंद रचनाये कब यहाँ खेलने लगी और समय पंख लगा के उड़ने लगा पता ही नहीं चला  .आज मेरे ब्लॉग सपने का ३ रा जन्मदिन है , जिसे आप सभी ने बहुत प्यार दिया ,आज मुझे अंतरजाल पर भी प्यारा सा परिवार मिला ,जिसका प्यार अनमोल है , और साथ यहाँ अमर रहेगा , एक खूबसूरत एअह्साह है जो हमें सदा महकता रहेगा ,हम हमारे शब्दों में सदा जीवंत रहेंगे .------- आज खुद को खुद से मिला रही हूँ .
मेरे पूरे  परिवार और मित्रो को धन्यवाद कह के पराया नहीं करना चाहूंगी सभी का स्नेह मेरे लिए अनमोल है .    :)  ---- शशि पुरवार

Tuesday, June 11, 2013

फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया .........!


फूल राहों खिला उठा लाया
नाम अपना दिया जिला लाया


भीड़ जलने लगी बिना कारण
बात काँटों भरी विदा लाया


लुट रही थी शमा तमस में फिर
रौशनी का दिया बना लाया


शर्म आती नहीं लुटेरों को
पाठ हित का उसे पढ़ा लाया

बैर की आग जब जली दिल में
आज घर अपना वो जला लाया 


गिर गया आज फिर मनुज कितना
नार को कोख में मिटा लाया


प्यार से सींचा फिर जिसे मैंने
उसका घर आज मै बसा लाया


खुश रहे वो सदा दुआ मेरी
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया .

-- शशि पुरवार 
 26.05.13



नमस्ते मित्रो --- मेरे जीवनसाथी की तबियत नासाज है इसीलिए लेखन और अंतरजाल से दूर हूँ , बहुत परेशान  हूँ ..... सब ठीक होने के बाद पुनः आपसे आपके ब्लॉग पर मिलूंगी , अपना स्नेह बनाये रखें .

Thursday, June 6, 2013

हर मौसम में खिल जाता है ..... नीम





     हर मौसम में खिल जाता है नीम की ही ये माया है
     राही को छाया देता है नीम का ही वो साया है ।

     बिन पैसे की खान है ये तो तोहफ़ा है इक क़ुदरत का,
     महिमा देखी नीम की जब से आम भी कुछ बौराया है ।

     जब से नीम है घर में आया , जीने की मंशा देता,
     मोल गुणों का ही होता है नीम ने ही बतलाया है ।

     कड़वा स्वाद नीम का लेकिन गुणकारी तेवर इसके,
     हर रेशा औषध है इससे रोग भी अब घबराया है ।

     निंबोली का रस पीने से तन के सारे  रोग मिटें
     मन मोहक छवि ऐसी नीम ने लाभ बहुत पहुँचाया है


      गाँव की वो गलियाँ भी छूटी ,छूटा घर का आँगन भी,
     शहर में फैला देख प्रदूषण नीम भी अब मुरझाया है .
                      ---  शशि पुरवार 

अनुभूति नी विशेषांक में प्रकाशित यह गजल .

Monday, June 3, 2013

दिल का पैगाम साहिबा लाया ..........



दिल का पैगाम साहिबा लाया
छंद भावो के फिर सजा लाया।

बात दिल की कही अदा से यूँ
प्यार उनका मुझे लुभा लाया।
 
भाग  का खेल जब करे बिछडन 
ये कहाँ प्यार में सजा  लाया।

सात वचनों जुडा था ये बंधन
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया।

प्यार मरता नहीं कभी दिल में
याद तेरी सदा जिला लाया।

धूप में जल रहे ज़माने की
याद उनकी नर्म दवा लाया।

कल्पना में सदा रहोगे तुम
रात ये चाँद से हवा लाया।

आज जीने का रास्ता पाया 
चाँद उनसे मुझे मिला लाया।
--------- शशि पुरवार

२५ .० ५ .१ ३