Sapne (सपने )
हिंदी कविताओं गीतों कहानियों की अभिव्यक्ति, अनुभूति व संवेदनाओं का अनूठा संसार ..
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Monday, July 11, 2016
मौसम से अनुबंध
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१ लहक उठी है जेठ की, नभ में उड़ती धूल कालजयी अवधूत बन, खिलते शिरीष फूल। २ चाहे जलती धूप हो, या मौसम की मार हँस हँस कर कहते सिरस, हिम्म...
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Thursday, July 7, 2016
क्यों न बहाएं उलटी गंगा....
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क्यों न बहाएं उलटी गंगा भाई कलयुग है। सीधा चलता हुआ मानव हवा में उड़ने लगा है। टेढ़े मेढ़े रस्ते सीधे लगने लगे है।...
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Friday, May 27, 2016
मज़बूरी कैसी कैसी --
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मज़बूरी कैसी कैसी ---- मज़बूरी शब्द कहतें ही किसी फ़िल्मी सीन की तरह, हालात के शिकार मजबूर नायक –नायिका का दृश्य नज़रों के सम्मुख मन के...
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Wednesday, April 20, 2016
कुण्डलियाँ -- प्रेम से मिटती खाई
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1 अच्छाई की राह पर, नित करना तुम काज सच्चाई मिटटी नहीं, बनती है सरताज बनती है सरताज, झूठ की परतें खोले मिट जाए सं...
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Monday, April 18, 2016
कुण्डलियाँ -- दिन गरमी के आ गए
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दिन गरमी के आ गए , लेकर भीषण ताप धरती से पानी उड़ा, नभ में बनकर भाप नभ में बनकर भाप, तपिश से दिन घबराये लाल लाल तरबूज, कूल, ऐसी मन भ...
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Tuesday, April 12, 2016
कुण्डलियाँ भरे कैसी यह सुविधा ?
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1 सुविधा के साधन बहुत, पर गलियाँ हैं तंग भीड़ भरी सड़कें यहाँ, है शहरों के रंग है शहरों के रंग, नजर ना पंछी आवे तीस मंजिला...
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Friday, April 8, 2016
कुण्डलियाँ
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मँहगाई की मार से, खूँ खूँ जी बेहाल आटा गीला हो गया, नोंचे सर के बाल नोचे सर के बाल, देख फिर खाली थाली महँगे चावल दाल, लाल ...
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Monday, April 4, 2016
रात में जलता बदन अंगार हो जैसे।
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जिंदगी जंगी हुई , तलवार हो जैसे पत्थरों पर घिस रही , वो धार हो जैसे। निज सड़क पर रात में ज...
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Friday, April 1, 2016
मूर्खता का रिवाज
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मूर्ख दिवस मनाने का रिवाज काफी पुराना है, लोग पलकें बिझाये १ अप्रैल की राह देखते हैं. वैसे तो हम लोग साल भर मूर्ख बनते रहतें है क...
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