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Wednesday, June 27, 2012
Thursday, June 21, 2012
ख्वाब ,..........!
ख्वाब ,
दिल के प्रांगण में
सदा लहलहाते
पलकों की छाँव तले
ख्वाबों के परिंदे
कभी उड़ते ,कभी थमते
दिल के कल्पवृक्ष
पे सदा चहचहाते
गुलशन महकाते .
वक्त से पहले
नसीब से ज्यादा
नहीं भरता
जिंदगी का प्याला ,
आशाओं के बीज
रोपते ,नहीं रूकते
वृक्ष ख्वाबों के
फलते फूलते
दिल के प्रांगण को
सदा महकाते .
झिलमिलाती आशाएं
खिलखिलाते सपने
हिंडोले लेता मन मयूर
कर्म की भूमि पर
हाथों की लकीर के
आगे नतमस्तक ,
फिर भी ख्वाब ,
कभी नहीं हारते .
ख्वाब, दिल के प्रांगण
सदा लहलहाते ,
खिलखिलाते ......!
:--शशि पुरवार
दोस्तों ,आज मेरेसपने , मेरे ब्लॉग को एक वर्ष पूरा हो गया और आप सभी का बहुत स्नेह मिला ......! अपना स्नेह बनाये रखें .
कल का दिन खास है , आप सभी के साथ यह पल और अनमोल होगा ,सपने और उड़न भरेंगे और कलम में नया रंग भी ......:)
Tuesday, June 19, 2012
मेरी संगिनी ......!
1 )मन का हठ
दिल की है तड़प
रूठी कलम .
2)कहाँ से लाऊं
विचारो का प्रवाह
शब्द है ग़ुम.
3)कैसे मनाऊं
कागज कलम को
हाथ से छुठे .
4)मेरी संगिनी
कलम तलवार
पक्की सहेली
5)
प्यासा मन
साहित्य की अगन
ज्ञानपिपासा .
6)
प्यासी धरती
है तपती रेत सी
मेघ बरसो .
7) समंदर के
बीच रहकर भी
रहा मै प्यासा .
8 )
अश्क आँखों से
अश्क आँखों से
सुख गए है जैसे
है रेगिस्तान .
9)
प्यासी ममता
तड़पता आँचल
गोदभराई .
:--शशि पुरवार
Monday, June 18, 2012
तपती जून में.........
चिलचिलाती धूप
चुभती गर्मी
तन मन की
प्यास बढाए.
जलती आँखें
चुभती साँसें
पपड़ाये होठ
बहता घाम
तेज वारा
पवन भी
भरमाए.
जलती धरा पे
पड़ी जो बूंद
भाप बन
उड़ जाए
पथिक को
मिले न चैन
उमस तो
घिर -घिर आए.
बरसो हे ,इन्द्र
रिमझिम -रिमझिम
तपती जून में
थोड़ी सी माटी
की खुशबु
हवा में घुल जाए
बदले जो रूख
हवा का जरा
मौसम खुशगवार
बन जाए
फिजा की
बदली करवट
तन मन की
प्यास बुझाये ...!
:-- शशि पुरवार
Saturday, June 16, 2012
उड़े चिरैया
उड़े चिरैया
पंख फडफडाए
सूख रहे पात
भानू जलाए
जोहे है वाट
बदरा बुलाए...!
बहे न नीर
सूखे झरने ,तालाब
मचा हाहाकार
बंजर होते खेत
किसान बेहाल
फसल कैसे उगाये
घटाएँ जल्दी आ जाएँ ..!
तप रही भू
पवन भी जले
लू के थपेड़े
पंछी , प्राणी पे पड़े
सूखे कंठ
जल को तरसे
तके नभ ,
मेघ बुलाए..!
बदरा जल्दी आ जाए ...!
:_-शशि पुरवार
Tuesday, June 5, 2012
..गंगा स्वर्ग से आई .....!
हुई विदाई
गंगा स्वर्ग से आई
बहे निर्मल .
गंगा का जल
गुणकारी अमृत
पाप नाशक .
शीतल जल
मन हो जाये तृप्त
है गंगाजल .
रोये है गंगा
मैली हुई चादर
मानवी मार .
सिमटी गंगा
मानव काटे अंग
जल बेहाल .
है पुण्य कर्म
किये पाप मिटाओ
गंगा बचाओ .
गंगा पावन
अभियान चलाओ
स्वच्छ बनाओ .
निर्मल गंगा
खुशहाल जीवन
हरी हो धरा .
:------ शशि पुरवार
Saturday, June 2, 2012
शिशु सा मन ....!
आँखों का पानी
बनावट के फूल
कच्चे है धागे .
घना कोहरा
नजरो का है फेर
गहरी खाई .
रूई सा फाहा
नजरो में समाया
उतरी मिस्ट .
कोई न जाने
दर्द दिल में बंद
बेटी पराई .
अकेलापन
मन की उतरन
अँधेरी रात .
सफ़र संग
छटती हुई धुंध
कटु सत्य .
चटक लाल
प्राकृतिक खुमार
अमलतास .
तीखी चुभन
घुमड़ते बादल
तेज रफ़्तार .
खारा लवण
कसैला हुआ मन
समुद्री जल .
उड़ता पंछी
पिंजरे में जकड़ा
है परकटा .
तेज हवा में
सुलगता है दर्द
जमती बर्फ .
उफना दर्द
जख्म बने नासूर
स्वाभिमान के .
शिशु सा मन
ढूंढता है आँचल
प्यार से भरा .
:--शशि पुरवार