चुभन - एक सत्य कथा
मनोज और डिंपल दोनों उच्चशिक्षित थे. दोनों के मन में समाज के लिए कुछ करने का जज्बा था. मनोज विधि सेवा अधिकारी थे. धनी व्यक्तिव के स्वामी, थोड़े अंतर्मुखी, शांत और काम के लिए समर्पित जीवन . अक्सर गाँव गाँव जाकर लोगों को उनके अधिकारों के लिए जागरूक करते थे. अक्सर अनाथालय व अस्पताल भी जाया करते थे. इसी सिलसिले में एक बार रविवार को वृद्धाआश्रम ये और वहां 4 घंटे व्यतीत किये. शाम को घर पर आकर शांत बैठे थे और थोड़े व्यथित लग रहे थे . डिम्पल ने मनोज को चाय दी और वहीँ पास में ही बैठ गयी . वार्तालाप शुरू करने के उदेश्य से बोली --
" क्या हुआ .. , कैसा रहा प्रोग्राम , बहुत थके भी लग रहे ....? "
" हाँ अच्छा रहा , पर देखो ज़माना कितना ख़राब हो गया है "
" हाँ ... वह तो है ...... पर क्या हुआ आश्रम में सब ठीक था न ..? " एक डर था डिंपल की आवाज में .
" हाँ , आज जिस आश्रम में गया था,वह गाँव के बाहर है. दूर दूर तक कोई बस्ती नहीं हैं ,सुनसान सी जगह थी . जब आश्रम गया तो वहां अजीब सी शांति थी, जैसे उस शांति के पीछे कोई तूफ़ान छुपा हो. उनको उनके अधिकारों को जानकारी देने के बाद उनसे बातचीत के लिए रुका, फिर सभी को खाने पीने का सामान दिया तो सभी बुजुर्ग खुश हो गए और बोले --- कितने महीनों बाद कोई आया है, जो हमारे बीच बैठ कर हमसे बात कर रहा है, वर्ना यहाँ तो अपने भी नहीं आते हैं और हम भी बाहर नहीं जाते हैं, हमारी जिंदगी कैद सी हो गयी है. सभी ने अपने अपने दुःख मेरे साथ बाँटें, मुझे चाय बनाकर पिलायी "
बोलते बोलते कुछ क्षणों के लिए रुक गए, आँखों में वेदना साफ़ नजर आ रही थी
पुनः बोले ----
" पता है डिंपल एक दो लोग ऐसे है जो इसी शहर के है. जिनका काफी बड़ा बंगला है, लम्बा चौड़ा कारोबार फैला हुआ है, पर आज घर वालो को बड़े बुजुर्ग बोझ लग रहे है, एक दम्पति तो ऐसे हैं, जिनका सिर्फ एक ही पुत्र है, बहुत तम्मना से उसकी शादी की, आशाएँ बाँधी, परन्तु एक दिन बेटे ने सारी सम्पति अपने नाम करवा ली और उन्हें आश्रम भेज दिया। बहु उनके साथ नहीं रहना चाहती थी, 2 वर्ष हो गए है कभी कोई मिलने भी नहीं आया . वह दोनों बहुत दुखी थे कि उन्होंने अपने पुत्र के लिए इतना कुछ किया, हर सुख सुविधा का पूरा ध्यान रखा फिर भी वह आज उन्हें इस हाल में छोड़ गया है. ......... उनकी पीड़ा आँखों से झर झर बहाने लगी, वह तड़प ह्रदय में चुभ सी रही है, देखा नहीं जा रहा था ...... " चुभन मनोज की आँखो में साफ़ नजर आ रही थी.
" ओह, कोई अपने माता पिता के साथ ऐसा कैसे कर सकता है ......, उसकी आत्मा उसे धिक्कारती नहीं है ...." डिंपल की आवाज में रोष भरा हुआ था .
" क्या करें आजकल परिवार बनते ही कहाँ है, कैसी लड़की बहु बनकर आएगी कोई नहीं जानता , आजकल की लड़कियों को सिर्फ पति से ही मतलब होता है, परिवार उनके लिए गौण रहता है . एक लड़की ही घर बना सकती है और वही घर को बिगाड़ भी सकती है "
"हाँ वह तो है , पर वह बेटा कैसा, जिसे सही गलत कुछ नहीं दीखता ...."
" अब क्या कर सकते है ........आजकल शादी के बाद लड़के भी साथ कहाँ रहते है ."
" हाँ वह तो है "
" आज मुझे ऐसा लग रहा है जो होता है अच्छे के लिए होता है . ऊपर वाले ने हमें बेटी का अनमोल तोहरा देकर भविष्य में मिलने वाली बेटे - बहु की इस मौन पीड़ा को सहने से बचा लिया है . हम हमारी बेटी को ही अच्छे संस्कार देंगे . उसे अच्छी शिक्षा और एक दिशा प्रदान करेंगे . हमें बेटा नहीं चाहिए ".........कहकर मनोज ने एक दीर्घ सांस ली .
" हाँ, आपकी बात से सहमत हूँ ......." डिंपल ने कहा और फिर कमरे में गहन सन्नाटा छा गया. कर्ण सिर्फ साँसों के चलने की दीर्घ आवाज सुन रहे थे .
------शशि पुरवार