विकलांगता ख्याल आते ही
मन में सहानुभूति जन्म लेती है
कहीं वितृष्णा, कहीं लापरवाही
कहीं बेचारगी, कभी दुत्कार।
यह अपरिपक्व मन के विकार है
शरीर या मन का विकृत अंग जिसे
काट नहीं सकतें, सहला सकतें है
अपने नर्म हाथों से, प्रेम भरी बातों से।
जीवन की खूबसूरती पर
उनका भी हक है।
उनका भी हक है।
विकलांगता,
अभिशाप नहीं, मन का छोटा सा विकार है।
अभिशाप नहीं, मन का छोटा सा विकार है।
जो तन से परे मन को विक्षिप्त करता है।
जीवन लाचार नहीं, वरदान है।
भीख मत मांगो जिंदगी से ,
लड़ो अपने मन की अपंगता से।
बेचारगी तोड़ देगी सम्बल तुम्हारा
पर मत लड़ो खुद से,
लड़ो मन की परतों में छुपे हुए भय से,
लड़ो मन की परतों में छुपे हुए भय से,
गिर पड़े गर अपनी नजर में तो
फिर कैसे उठोगे ।
कुछ कर गुजरने की चाह गर दिल में है
तो छू लो आसमान को
पाँव तले होगी जमीं
पाँव तले होगी जमीं
तुम्हारे मजबूत इरादों की,
जीत लोगे जंग हालातों से
विकलांगता अभिशाप नहीं है। अपितु
प्रेम की नरम छुअन बदल देगी
किसी एक का जीवन
शशि पुरवार
किसी एक का जीवन
शशि पुरवार