shashi purwar writer

Thursday, February 22, 2018

भोर सुहानी

 
1

भोर सुहानी सुरमयी, पीत वर्ण श्रृंगार
हल्दी के थापे लगे, फूलों खिली बहार

2
भोर नर्तकी आ गयी, जगा धूप गॉँव
स्वर्ण मोहिनी गुनगुनी, सिमटी बैठी छाँव


सुबह ठुमकती आ गयी, तम से करे किलोल
पंख पसारे रश्मियाँ, स्वर्ण कुण्ड निर्मोल

4

भोर रचाये लालिमा, कलरव का अधिमान
दूर देश से आ रहा, किरणों का यजमान

5

कुहरे में लिपटी हुई, सजकर आई भोर
धूप चिट्ठियाँ बाँचती, कोमल कमसिन डोर

6
स्वर्णिम किरणों ने लिखा, स्याह भोर पर नाम
राहें पथरीली मगर, मंजिल का पैगाम
7

बाँच रहा है धुंध को, किरणों का संसार
ओढ़ रजाई प्रीत की, सर्दी आयी द्वार

8

पत्र ख़ुशी के लिख रहा, सर्दी का त्यौहार
रंग गुलाबी बाग़ में, गंधो का उपहार

9

कुहरे में लिपटी हुई छनकर आयी भोर
नुक्कड़ पर मचने लगा, गर्म चाय का शोर
10

तन को सहलाने लगी, मदमाती सी धूप
सरदी हंटर मारती,हवा फटकती सूप

11

भोर स्वप्न वह देखकर, भोरी हुई विभोर
फूलों का मकरंद पी, भौरा है चितचोर
12
भोर सुहानी आ गयी ,लिये टमाटर लाल
धरती रक्तिम हो गयी ,देख गुलाबी थाल।
13
घिरा हुआ है मेघ से ,सूरज का रंग - रूप
रही स्वर्ण किरणें मचल, कैसे बिखरे धूप

14
धूप चिरैया ने लिए, अपने पंख पसार
पात पात भी कर रहे, किरणों से अभिसार। 
१५ 
भोर रचाये लालिमा, कलरव का अधिमान
दूर देश से आ रहा, किरणों का यजमान
१६ 
ओढ़ चुनरिया प्रीत की, सजकर आई भोर 
 
धूप रंगोली द्वार पर, मन है आत्मविभोर . 
 
शशि पुरवार

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