Thursday, November 29, 2018

पानी जैसा खून




पानी जैसा हो गया, संबंधों में खून
धड़कन पर लिखने लगे, स्वारथ का कानून
स्वारथ का कानून, बसी नैनों में माया
अब जी का जंजाल, लगे अपना ही साया
कहती शशि यह सत्य, लुफ्त बिसरे गुड़ धानी
बोतल में हैं बंद, आज पीने का पानी

जीवन तपती रेत सा, अंतहीन सी प्यास
झरी बूँद जो प्रेम की, ठहर गया मधुमास
ठहर गया मधुमास, गजब का दिल सौदागर
बूँद बूँद भरने लगा,  प्रेम अमरत्व की गागर
कहती शशि यह सत्य, उधेड़ों मन की सीवन
भरो सुहाने रंग, मिला है सुन्दर जीवन

सत्ता में होने लगा, जंगल जैसा राज
गीदड़ भी आते नहीं, तिड़कम से फिर बाज
तिड़कम से फिर बाज, भूल बैठे मर्यादा
सिर पर रक्खा ताज, कुटिलता पहनी ज्यादा
कहती शशि यह सत्य, गली में भौंका कुत्ता
रंग बदलती रोज, फरेबी दुनिया सत्ता

एक सुहानी शाम का,दिलकश हो अंदाज
मौन थिरकता ही रहे, हृदय बने कविराज
हृदय बने कविराज, कलम भावों से खेले
लाल गुलाबी रंग, सुलगती पीर अकेले
कहती शशि यह सत्य, नहीं है बात पुरानी
हर धड़कन पर साज, शाम हो एक सुहानी

शशि पुरवार 

Saturday, November 17, 2018

बूढ़ा हुआ अशोक

बरसों से जो खड़ा हुआ था 
बूढ़ा हुआ अशोक 

हरी भरी शाखों पर इसकी 
खिले हुए थे फूल 
लेकिन मन के हर पत्ते पर 
जमी हुई थी धूल
आँख समय की धुँधली हो गई 
फिर भी ना कोई शोक 

मौसम की हर तपिश सही है 
फिर भी शीतल छाँव  
जो भी द्वारे उसके आया 
लुटा नेह का गॉँव 
बारिश आंधी लाख सताए 
पर झरता आलोक 

आज शिराओं में बहता है 
पानी जैसा खून 
अब शाखों को नोच  रहें हैं 
अपनों के नाखून 
बूढ़े बाबा की धड़कन में 
ये ही अपना लोक 

बरसों से जो खड़ा हुआ था
बूढ़ा हुआ अशोक

शशि पुरवार 


नारी! तुम केवल श्रद्धा हो

जय शंकर प्रसाद "फूलों की कोमल पंखुडियाँ बिखरें जिसके अभिनंदन में। मकरंद मिलाती हों अपना स्वागत के कुंकुम चंदन में। कोमल किसलय मर्मर-रव...

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