परछाईयों से है,
नाता पुराना
साथ चलती,
परछाईयाँ
दिखाती हैं ,
क़दमों के निशां .
चांदनी रात में
छुपती - छुपाती
परछाईयाँ,
उजागर करती है
अतीत के पन्नों को .
चंचल हिरनी सी
चपल , लजाती ,
अपने अस्तित्व का ,
अहसास कराती .
सुख - दुःख का मेरा
सच्चा साथी ,
मेरी हर तस्वीर का
आइना है , ये
परछाईयाँ .
बचपन में " चंचल "
जवानी में " अल्हड "
बुढ़ापे में " तठस्थ "
हर पल रूप ,
बदलती " परछाईयाँ".
कभी नजदीक है आती
कभी दूर हो जाती ,
ढूँढो , इनको ,तो
खुद का ही ,
प्रतिबिम्ब दिखाती .
पलभर में गुम
पलभर में पास ,
ख़ामोशी से कहती
सदा एक ही बात ,
हम तो जीवन भर
साथ निभाती .
हमकदम , हमनशीं
हमसफ़र , मेरे
अन्तःस का
आइना
" परछाईयाँ "
:- शशि पुरवार
डायरी के पन्नों से -
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