नए शहर में, किसे सुनाएँ
अपने मन का हाल
कामकाज में उलझें हैं दिन
जीना हुआ सवाल
कभी धूप है, कभी छाँव है
कभी बरसता पानी
हर दिन नई समस्या लेकर,
जन्मी नयी कहानी
बदले हैं मौसम के तेवर
टेढ़ी मेढ़ी चाल
घर की दीवारों को सुंदर
रंगों से नहलाया
बारिश की, चंचल बूँदों ने
रेखा चित्र बनाया
सीलन आन बसी कमरों में
सूरज है ननिहाल
समयचक्र की, हर पाती का
स्वागत गान किया है
खट्टे, मीठे, कडवे, फल का
भी, रसपान किया है
हर माटी से रिश्ता जोड़ें
जीवन हो खुशहाल
- शशि पुरवार
18/07/14