निति नियमो को
ताक पर रखकर
संरक्षक बना है भक्षक
ये कैसी हार
नोच लिए रूह के तार
भेड़िया बन खींची है खाल
थमा के मीठी गोली
खेली है खूनी होली
टूट गयी विश्वास की डोर
बिखरा है लहु चारो ओर
अपने जिय के टुकड़ों का
ये कैसा संहार
टूट रही लज्जा की गागर
फट रहा जिय का सागर
कैसे छुपाये नाजुक काया
पीछे पड़ा है एक साया
बीच बाजार बिकती साख
भेद रही गिद्ध की आंख
खतरा फैला है चहुँ और
सफेदपोश है निशाचर
ये कैसा आधार
निति नियमो को
ताक पे रखकर हुआ
ये कैसा व्यवहार.
---शशि पुरवार