मूर्ख
दिवस
आज
सुबह से मन उतावला हो रहा था।
बच्चों की ऊधम पट्टी से यह
समझ आ गया कि कल १ अप्रैल
हैं। भला हो बच्चों का,
नहीं
तो अपनी बैंड बजना तय थी। बच्चे
ऐसा मौका हाथ से नहीं जाने
देतें हैं। घर वाले घर में
भी टोपी पहनाना नहीं भूलतें
हैं। आज शर्मा जी बड़े जोर
शोर से टहल कदमी कर रहे थे।
भाई बचपन में खूब अप्रैल
फूल बनाया और बने भी,
पर
कहतें हैं कि इंसान
कितना भी बड़ा हो जाये बच्चों
वाली हरकतें करना कभी नहीं
छोड़ता,
पहले
हाफ निक्कर पहनकर मूर्ख
बनाते थे ,अब
फुल पेंट पहनकर मूर्ख बनाएंगे,
यह
बात अलग है मुख में पान गिल्लोरी
दबाए मियां कैसे नजर आतें है।
बच्चे
तो बच्चे,
बाप
रे बाप बड़ो को भी चस्का लगा
हुआ है। शर्मा जी यही सोचन
रहे का करें कछु तो करन ही पड़े,
इस
बार मोबाइल से अंतरजाल पर
बेबकूफ बनाएंगे,
कौन
ससुरा हमें जानत है जो हमरे
घर कदम ताल करके आवेगा। वइसन
भी आजकल सबरे त्यौहार सिमट
कर कमरे में बंद हो गएँ हैं बस
उँगलियाँ,
मोबाइल
और लैपटॉप पर चलते -
चलते
सभी त्यौहार मना लेती हैं।
मूर्ख
दिवस मनाना भला किसे पसंद
नहीं होगा। व्यस्त जिंदगी
में रस घोलती अनुभूतियाँ लोगों
की प्यारी -
दुलारी
बन जातीं हैं। यह किसी त्यौहार
से कम नहीं है।
अहा
!१
अप्रैल जैसे अपने अरमान पूरे
करने का दिन। इस दिन का इन्तजार
हर छोटे-बड़ों
को रहता है। एक ही तो दिन होता
है जब जो चाहे वह करो। यानि
किसी को भी मूर्ख बनाओ कोई कुछ
नहीं कहेगा। यह मूर्ख बनाने
का लाइसेंस जो प्राप्त हो गया
है। हाँ मूर्ख बनने वाला
जरुर झेंप जाता है कि लोगों
को ज्ञात हो गया वह भी बेवकूफ
है। इसके एवज में कोई क्रोध
में लाल पीला होता है। तो
कोई खिसियानी बिल्ली की तरह
खम्बा नोचते नजर आता है।
हंसने-हँसाने
यह दिन यानि १ अप्रैल। जिसे
दुनियाँ मूर्ख दिवस के नाम
से जानती है।
एक
अप्रैल का दिन सभी के लिए खासम
- खास
है। भाई दिमाग की कितनी मस्सकत
करनी पड़ती है। मजाल है एक
दॉंव छूटा तो दूसरा तैयार
!
किसे
कैसे बेवकूफ बनाया जाये कहीं
यह ना हो कि दॉंव ही उल्टा पड़
जाये और हम खुद ही अपने खोदे
हुए गड्ढे में गिर जायें।
कैसे कहें
कि यदि लोगों को मूर्ख
नहीं बनाया तो खुद के पेट में
दर्द होने लगेगा। आखिर मूर्ख
बनना और बनाना हमारा जन्मसिद्ध
अधिकार है। मूर्ख बनाने का
लाइसेंस,
यह
बात पल्ले नहीं पड़ी कि मूर्ख
दिवस मनाने की ऐसी क्या जरुरत
आन पड़ी है। क्या मूर्खो को
देश में कोई स्थान दिलाना है
या उनका आरक्षण करवाना है।
कोई कानून पास करना है या मूर्खो
की सरकार बनाना है। वैसे भी
सभी,
कहीं
ना कहीं मूर्खता पूर्ण कार्य
जरुर करतें हैं। तो यह कहना
उचित होगा कि सभी के अन्दर एक
मूर्ख विद्यमान होता है।
किसी के मन में भी यह ख्याल
क्यूँ नहीं आया कि मूर्खो
को भी आरक्षण दिलाना चाहिए।
आखिर वह भी इसके हकदार है।
मन
का उत्साह हिलोरे मार मार कर
तन को रोमांचित कर रहा था।
हम भी सोच रहें है इस बार कुछ
अलग किया जाये। क्यों ना
मिडिया के बादशाह फेसबुक या
ट्विटर पर कुछ लिखकर लोगों
में हल्ला बोल कराया जाए।
मोदी राज है। सभी को पूरी
आजादी है। जनता भी हाईटेक बनने
वाली है। गॉंव गॉंव में
इंटरनेट और मोबाइल हर आदमी
को शहर से जोड़ देंगे। फिर
कहाँ गॉंव,
कहाँ
शहर। सब एक ही डोर से बंधे हुए
रस्सी खीचेंगे। कभी कभी ख्याल
आता है कि एक मूर्ख सम्मलेन
की तैयारी की जाय। मूर्खों
का यह सम्मलेन रोमंचकारी
अनुभव होगा। यह सम्मलेन पहले
दूरदर्शन पर और हर शहर में
मनाया जाता था। हमरे गॉंव
में भी होता है जो विजेता
बना उसे जूते -
चप्पल
की माला पहना कर सम्मानित
किया। शहरी हाईटेक संस्कृति
को यह सब नहीं भायेगा। आखिर
वक़्त बदल गया है। इसीलिए
कुछ अलग करना चाहिए। दिमाग
के घोड़े दौड़ाकर तय किया। कुछ
मिर्च मसाला लिखकर दुनिया को
ही मूर्ख बनायें। जितने
ज्यादा लाइक और कमेंट्स आएंगे
उतना ही हमारा खून बढ़ जायेगा
और हम मूर्खों के बादशाह
कहलायेंगे।
मुर्ख
दिवस हमारी संस्कृति की देन
नहीं है। इस दिवस को लेकर
कई अवधारणाएं प्रचलित हैं।
रोम के लोग १ अप्रैल को नव
वर्ष के रूप में मनाते थे।
किसी ने उस दिन का केलेंडर
स्वीकार किया तो किसी ने उस
केलेंडर को अस्वीकार कर दिया।
कहा जाता है कि लोगों को
बेवकूफ बनाने के लिए राजा
– रानी ने अपनी शादी की तारीख
३२ मार्च करने की घोषणा की थी।
तभी से इस दिन को मूर्ख दिवस
के रूप में मनाया जाता है।
यह
भी मजेदार है किसी मूर्ख
को कह दो कि तुम मूर्ख हो। तो
बेचारा आँखे फाड़ फाड़ कर ऐसे
देखेगा जैंसे हमरे दिमाग का
स्क्रू ही ढीला हो गया हो।
वैसे ही जैसे,
किसी
कुत्ते को कुत्ता कहना
कुत्ते अपमान है। ऐसा महसूस
होता है जैसे हम गाली दे
रहें है। भले ही बेचारे
कुत्ते को भी पता नहीं होगा
कि कुत्ता कहना गाली होती
है। बेचारा कुत्ता भी ना
जाने किस बात की सजा भुगत रहा
है। अच्छा भले आदमी की
वफादारी करता है और इनाम
स्वरुप बेचारे कुत्ते का
नाम ख़राब कर दिया।
मसखरी
करने का यह दिन सभी खुले मन से
स्वीकारतें हैं। १ अप्रैल है
तो बुरा भी नहीं लगेगा। जैसे
बुरा ना मानो होली है। वैसे
ही बुरा न मानो मूर्ख दिवस
है। हँसी -
ठिठोली,
मौज
मस्ती का भरपूर आनंद। किसी
की शर्ट पर लिखा है। हिट मी
– तो बेचारे को जाकर मार
दिया।
चॉकलेट
के रेपर में पत्थर रख दिया तो
अप्रैल फूल। आनंद उठाने के
लिए रसगुल्ले और मिठाई में
लाल मिर्ची भर दी। फिर लाल
पीले होने का आनंद । रात हमने
सड़क पर १०० रूपए के नोट को काले
धागे से बांधकर सड़क पर रख
दिया। जो बेचारा लालच का मारा
नोट उठाने का प्रयत्न
करता,
तो
धागा खींचकर बेचारे
के सामने प्रगट होकर हँसी का
फव्वारा छोड़ दिया। बेचारा
मिस्टर एक्स ने खुद की नजर
बचाकर दुम दबा ली। थोडा
झूठ बोला। थोड़ा परेशान
किया और कह दिया अप्रैल फूल.
! चलो कोई
तो फूल खिला है। लाल-
पीले-
नीले
-
गुलाब
नहीं गोभी के फूल नहीं यह
तो अप्रैल के फूल है जो भरी
जेठ में भी गुदगुदाने का आनंद
प्रदान करतें हैं।
शशि
पुरवार