परिवर्तन --
वक़्त के साथ
अंकित मानस पटल पे
जमा अवशेषों का
एक नया परिवर्तन .
झिरी से आती
ठंडी हवा का झोखा
प्रीतकर लागे
पर अनंत बेड़ियों में जकड़ी
आजाद होने को बेकरार
घुटती साँसे
फडफडाते घायल पंछी सी
मांगे सुनहरी किरणों का
एक नया रौशनदान
बड़ा परिवर्तन .
आजादी ने बदला
बाहरी आवरण ,पर
सोने के पिंजरें में
कैद है रूढ़िवादियाँ ,
जैसे एक कुंए का मेंढक ,
न जाने समुन्दर की गहराई
उथले पानी का जीवन
बस सिर्फ सडन
चाहे खुला आसमाँ
इक परिवर्तन .
खंडहर होते महल
लगे कई पैबंद
विशाल दरवाजो में सीलन
जंग लगे ताले के भीतर
खोखला तन
पोपली बातें
थोथले विचार
जर्जर मन का
फलता फूलता
विशाल राज पाट
वक़्त की है पुकार
हो नवीनीकरण
बड़ा गहरा परिवर्तन .
आजाद गगन में
उड़ते पंछी
भागते पल
एक नया जहाँ
नई पीढ़ी थामें हाथ
पुरानी पीढ़ी का कदमताल
कर रहा पीढ़ियों का अंतर कम
सभ्यता , संस्कृति
आधुनिकता का अनूठा संगम
संग ऊंची उडान
खिलखिलाते ,सुनहरे
पलों का अभिवादन
दिनरात का
सकारात्मक परिवर्तन ......!
वक़्त की पुकार ....!
--------शशि पुरवार