नव पीढी ने रच दिया, यह कैसा इतिहास
बूढी सॉंसें काटती, घर में ही वनवास १
बूढी सॉंसें काटती, घर में ही वनवास १
दौलत का उन्माद है, मदहोशी में चूर
रिशते आँखों में चुभे, ममता चकनाचूर २
रिशते आँखों में चुभे, ममता चकनाचूर २
शहरों में खोने लगा, अपनेपन का भाव
जो अपना मीठा लगे, देता मन पर घाव ३
जो अपना मीठा लगे, देता मन पर घाव ३
बंद हृदय में खिल रहे, संवेदन के फूल
छंद रचे मन बाबरा, शब्द शब्द माकूल ४
छंद रचे मन बाबरा, शब्द शब्द माकूल ४
एक अजनबी से लगे,अंतर्मन जज्बात
यादों की झप्पी मिली, मन, झरते परिजात ५
ऐसे पल भर में उड़े, मेरे होशहवास
बदहवास सा दिन खड़ा, बेकल रातें पास ६
यादों की झप्पी मिली, मन, झरते परिजात ५
ऐसे पल भर में उड़े, मेरे होशहवास
बदहवास सा दिन खड़ा, बेकल रातें पास ६
- शशि पुरवार