कोरोना
- संक्रमण
का कहर
कोरोना
संक्रमण की बढ़ती संख्या से
लोगों के मन में डर पैदा होना
स्वाभाविक है.
जिस
बात का हमें
डर
था वही सामने
आ रही
है .
आंकड़े
लगातार
बढ़
रहे हैं.
देश
को विषम परिस्थिति से बचाने
के लिए सरकार
द्वारा ऐतिहातिक
प्रयास किए जा रहे हैं.
लेकिन
कुछ संप्रदायिक
दलों की लापरवाही का परिणाम
पूरे देश को भुगतना पड़ रहा
है.
कहते
हैं ना कि
एक हाथ से ताली नहीं बजती है,
सरकार
प्रयास कर रही है और उसके
प्रयासों में योगदान देना
हमारी नैतिक जिम्मेदारी बनती
है.
अब
आप कहेंगे सरकार क्या कर रही
है?
हमारे
यहां संसाधनों की कमी है .जितने
लोग उतनी बातें..
वगैरह
..
वगैरह़.
सरकार
द्वारा संभवत:
हर
प्रयास
किए जा रहे हैं इतनी बड़ी आबादी
को अनुशासित रखना
कोई खेल नहीं है। सरकार के सिर
पर शिकायतों का ठिकरा
फोड़ने से बेहतर है कि हम
अनुशासन का पालन करें। हमारे
यहां अनुशासन की कमी है जिसके
कारण अनगिनत परेशानियां
उत्पन्न होती रहती है .
ऐसे
समय अंधविश्वास,
टोने
-
टोटके
भी बहुत शिद्दत से कुछ
लोगों द्वारा प्रसार में हैं।
कोई भी धर्म हमें यह नहीं सिखाता
है कि इंसान की जान ले लो,
इंसानियत
का धर्म हर धर्म से ऊपर होता
है,
लेकिन
कुछ विरोधी तत्व इंसानियत
को
तार-तार
कर रहे हैं.
यह
महामारी किसी धर्म को देखकर
नहीं आती है। अमीर-
गरीब,
हिंदू
-
मुस्लिम,
सिख
-ईसाई
,पक्ष-विपक्ष
कोई भी धर्म हो कोरोना तो सभी
पर बराबरी से प्रहार करेगा।
लॉक
डाउन के कारण दिहाड़ी मजदूर
सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ
है। लॉक डाउन होने के बाद लगभग
हर प्रांत से उनका पलायन शुरू
हो गया था.
हाथ
में पैसा नहीं और खाने को भोजन
नहीं,
गरीबी
का यह मंजर जितना
हमें सालता है उतना ही
उन्हें मार रहा था। बेहद ह्रदय
विदारक दृश्य है.
जब
गर्भवती महिला,
बुजुर्ग
व बच्चे लंबी दूरी पैदल ही तय
करके
गाँव लौट रहे
थे.
मजदूरों
की इस बेहाल
दशा की जानकारी देने के लिए
मीडिया सामने आया,
लेकिन
धर्म के ठेकेदारों की लापरवाही
की खबर सामने आते ही
अगले
दिन उसने भी मजदूरों के पलायन
को भुला दिया?
सब
अपना फायदा ही देख रहे थे .
मन
में बहुत बड़ा प्रश्न था कि
बड़ी संख्या में राज्य की
सीमाओं तक पहुंचे मजदूर आखिर
कहां गए?
उनके
साथ क्या हो रहा है क्या उनकी
खबर दिखाना मिडिया की जिम्मेदारी
नहीं है?
तब
एक
समाचार चैनल पर मजदूरों की
खबर पुन:
कुछ
मिनिट दिखाई
गई जिसमें राज्य की सीमा पर
मजदूर ट्रकों के ऊपर खचाखच
भर कर बैठे थे और प्रशासन ने
उन्हें आगे जाने से रोक दिया
था
.
ट्रक
से उतरने की
भी मनाही थी .
जो
जहां है वह वही बैठा रहेगा के
आदेश थे.
खाने
के पैकेट नीचे से उछाल कर ऊपर
दिए जा रहे थे.
लेकिन
यहाँ उन्हें सोशल डिस्टेंसिंग
की जानकारी नहीं दी गई .
ट्रक
के ऊपर जमा लोगों में सोशल
डिस्टेंसिंग कैसे हो सकती
है?
मजदूर
वर्ग सीमा पर सामूहिक रूप से
रुका हुआ था। केंद्र व राज्य
सरकारों के निवेदन पर जो मजदूर
घरों
में रुक
गए थे,
कहीं-कहीं
उन्हें मकान मालिकों
द्वारा भी निकाला गया या कुछ
भोजन के अभाव में स्वयं ही
बाहर निकल आए या उन तक सरकार
द्वारा दी
जाने वाली मदद
के हाथ नहीं पहुंचे। कोरोना
संक्रमण का भय और पेट की मार
दोनों ही उनपर हावी है। आखिर
उनकी रक्षा करना
बेहद
जरूरी है.
हमारे
देश में आबादी का एक बड़ा हिस्सा
झोपड़पट्टी में रहता
है,
जहां
छोटी सी खोली में सटकर रहना
उनकी मजबूरी है.
ऐसी
जगह सोशल डिस्टेंसिंग कैसे
होगी ?
यदि
ऐसी जगह संक्रमण फैलेगा तो
कितनी बड़ी तबाही मचेगी?
क्या
उन्हें भी सावधानियां बताई
गई?
कुछ
उपाय सोचे गये ?
हकीकत
यह
है कि कोरोना वायरस लाने वाला
मानव ही है,
आज
मानव पर प्रकृति की ऐसी मार
पड़ी है कि वह बेहाल हो गया
है.
यदि
इस समय हम इस प्राकृतिक अापदा
से नहीं
संभलेंगे तो आगे आने वाले संकट
से कैसे लडेंगे .
आज
अर्थव्यवस्था चारों खाने
चित्त
पड़ी है.
हम
कोरोना महामारी की तबाही से
तो किसी तरह निपट लेंगे,
लेकिन
उसके बाद जो मंदी की मार पड़ने
वाली है उससे होने वाली तबाही
से कैसे निपटेंगे?
मजदूर
वर्ग,
छोटे
व्यापारी,
मध्यमवर्गीय
सभी संकट से जूझ रहे हैं। लॉक
डाउन के कारण कामकाज ठप्प है
जिससे
अर्थव्यवस्था
अौंधे मुंह गिर
पड़ी
है.
अर्थव्यवस्था
की बदहाली के नकारात्मक
दानव
प्रश्न बनकर सामने खड़े हैं.
2007 और
2008
में
जब मंदी आई थी जिसके कारण
अमेरिका व उससे जुडे
व्यवसायिक देशों पर भी उसका
असर हुआ था.
शेयर
मार्केट गिर गया था.
लेकिन
उस मंदी का भारत पर ज्यादा
प्रभाव नहीं पड़ा था .
पुराने
समय में घरों में बचत करने की
आदत से
हम आर्थिक मंदी से उबर गए थे।
लेकिन समय के साथ होने
वाली नोटबंदी,
कैशलेस
व्यवहार,
कुछ
बैंकों का दिवालिया होना,
भ्रष्ट
निवेशकों का पलायन करना भारी
संकट लेकर आया है। आने वाला
समय हम सब पर भारी
होगा।
लेकिन उससे पहले हमें इस संकट
से निकलना होगा।
घरों
में बंद
होने के कारण लोगों में हताशा
व निराशा के भाव जन्म ले रहे
हैं .
नकारात्मकता
को सकारात्मकता में बदलने के
प्रयास हमें करने चाहिए। ना
कि हम धर्म की आढ मे इस संक्रमण
को फैलाने के सहभागी बने .भारत
की घनी आबादी वाले देश में
जनता का एक बड़ा भाग या तो अनपढ़
है या अनपढ़ों की तरह है ,
क्योंकि
धर्म और अंधविश्वास में
कई
लोगों की आंखें बंद होती है
.
लेकिन
संक्रमण को रोकने के लिए टोना
टोटका
नही सावधानियां
बेहद जरूरी है।
एकजुट
होकर देश को इस तबाही और संक्रमण
के मंजर से बाहर निकालना होगा।
कितना
दुख:
होता
है जब
हमने देखते
है कि
देश की सेवा कर रहे स्वास्थ्य
कर्मियों पर कुछ लोगों ने
पथराव किये एंव असहयोग भावना
रखी,
दुर्व्यवहार
किया,
यह
उचित नहीं है.
हम
जिस देश के नागरिक है,
संकट
की घडी में साथ खडे होना हमारा
पहला धर्म व
कर्तव्य होता
है।
रास्ता भले
मुश्किलों भरा है लेकिन असंभव
नही है.
माननीय
प्रधानमंत्री जी ने 5
अप्रैल
रात 9:00
बजे
9
महीने
तक लाइट बंद रखकर दिया जलाने
या मोबाइल की लाइट शुरु करने
का निवेदन किया है। इसके
पीछे उनका कुछ तो लाजिक होगा.
इसके
पीछे लोगों के अलग-अलग
धारणाएं
सामने
आ
रही
हैं। भारत में ज्योतिष ,
तंत्र
विज्ञान और न्यूमरोलोजी,
अंधविश्वास
आदि
काल से फैला
हुआ है.
लोग
इसमें अपना -अलग
मत रखतें है.
कुछ
इसे धर्म से जोडने लगे
लेकिन
मेरी
नजर में हमारे देश की अनेकता
में एकता की ताकत को जानने व
दिखाने का
अच्छा
प्रयास है.
मैं
तो यही निवेदन करना चाहूंगी
कि हमें जाति धर्म को भूलकर
एकता
से नागरिक
धर्म निभाना चाहिए।
हम
जिस थाली में खाते है उसमें
छेद करना हमारी नियत पर संदेह
पैदा करता है.
हम
जिस देश के नागरिक हैं उसकी
रक्षा करना हमारा धर्म है।
अपनी
सुरक्षा,
अपनों
की सुरक्षा ही देश की सुरक्षा
है.
हमें
पहले
मानव
धर्म निभाना है और कोरोना को
हराना है।
शशि
पुरवार