Sunday, April 5, 2020

कोरोना - संक्रमण का कहर


कोरोना - संक्रमण का कहर

कोरोना संक्रमण की बढ़ती संख्या से लोगों के मन में डर पैदा होना स्वाभाविक है. जिस बात का हमें डर था वही सामने आ रह है . आंकड़े लगातार बढ़ रहे हैं. देश को विषम परिस्थिति से बचाने के लिए सरकार द्वारा ऐतिहातिक प्रयास किए जा रहे हैं. लेकिन कुछ संप्रदायिक दलों की लापरवाही का परिणाम पूरे देश को भुगतना पड़ रहा है.

कहते हैं ना कि एक हाथ से ताली नहीं बजती है, सरकार प्रयास कर रही है और उसके प्रयासों में योगदान देना हमारी नैतिक जिम्मेदारी बनती है. अब आप कहेंगे सरकार क्या कर रही है? हमारे यहां संसाधनों की कमी है .जितने लोग उतनी बातें.. वगैरह .. वगैरह़.

सरकार द्वारा संभवत: हर प्रयास किए जा रहे हैं इतनी बड़ी आबादी को अनुशासित रखना कोई खेल नहीं है। सरकार के सिर पर शिकायतों का ठिकरा फोड़ने से बेहतर है कि हम अनुशासन का पालन करें। हमारे यहां अनुशासन की कमी है जिसके कारण अनगिनत परेशानियां उत्पन्न होती रहती है .

ऐसे समय अंधविश्वास, टोने - टोटके भी बहुत शिद्दत से कुछ लोगों द्वारा प्रसार में हैं। कोई भी धर्म हमें यह नहीं सिखाता है कि इंसान की जान ले लो, इंसानियत का धर्म हर धर्म से ऊपर होता है, लेकिन कुछ विरोधी तत्व इंसानियत को तार-तार कर रहे हैं. यह महामारी किसी धर्म को देखकर नहीं आती है। अमीर- गरीब, हिंदू - मुस्लिम, सिख -ईसाई ,पक्ष-विपक्ष कोई भी धर्म हो कोरोना तो सभी पर बराबरी से प्रहार करेगा।
लॉक डाउन के कारण दिहाड़ी मजदूर सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। लॉक डाउन होने के बाद लगभग हर प्रांत से उनका पलायन शुरू हो गया था. हाथ में पैसा नहीं और खाने को भोजन नहीं, गरीबी का यह मंजर जितना हमें सालता है उतना ही उन्हें मार रहा था। बेहद ह्रदय विदारक दृश्य है. जब गर्भवती महिला, बुजुर्ग व बच्चे लंबी दूरी पैदल ही तय करके गाँव लौट रहे थे. मजदूरों की इस बेहाल दशा की जानकारी देने के लिए मीडिया सामने आया, लेकिन धर्म के ठेकेदारों की लापरवाही की खबर सामने आते हअगले दिन उसने भी मजदूरों के पलायन को भुला दिया? सब अपना फायदा ही देख रहे थे . मन में बहुत बड़ा प्रश्न था कि बड़ी संख्या में राज्य की सीमाओं तक पहुंचे मजदूर आखिर कहां गए? उनके साथ क्या हो रहा है क्या उनकी खबर दिखाना मिडिया की जिम्मेदारी नहीं है?

तब एक समाचार चैनल पर मजदूरों की खबर पुन: कुछ मिनिट दिखाई गई जिसमें राज्य की सीमा पर मजदूर ट्रकों के ऊपर खचाखच भर कर बैठे थे और प्रशासन ने उन्हें आगे जाने से रोक दिया था . ट्रक से उतरने की भी मनाही थी . जो जहां है वह वही बैठा रहेगा के आदेश थे. खाने के पैकेट नीचे से उछाल कर ऊपर दिए जा रहे थे. लेकिन यहाँ उन्हें सोशल डिस्टेंसिंग की जानकारी नहीं दी गई . ट्रक के ऊपर जमा लोगों में सोशल डिस्टेंसिंग कैसे हो सकती है?

मजदूर वर्ग सीमा पर सामूहिक रूप से रुका हुआ था। केंद्र व राज्य सरकारों के निवेदन पर जो मजदूर घरों में रुक गए थे, कहीं-कहीं उन्हें मकान मालिको द्वारा भी निकाला गया या कुछ भोजन के अभाव में स्वयं ही बाहर निकल आए या उन तक सरकार द्वारा दी जाने वाली मदद के हाथ नहीं पहुंचे। कोरोना संक्रमण का भय और पेट की मार दोनों ही उनपर हावी है। आखिर उनकी रक्षा करना बेहद जरूरी है.

हमारे देश में आबादी का एक बड़ा हिस्सा झोपड़पट्टी में रहता है, जहां छोटी सी खोली में सटकर रहना उनकी मजबूरी है. ऐसी जगह सोशल डिस्टेंसिंग कैसे होगी ? यदि ऐसी जगह संक्रमण फैलेगा तो कितनी बड़ी तबाही मचेगी? क्या उन्हें भी सावधानियां बताई गई? कुछ उपाय सोचे गये ?

हकीकत यह है कि कोरोना वायरस लाने वाला मानव ही है, आज मानव पर प्रकृति की ऐसी मार पड़ी है कि वह बेहाल हो गया है. यदि इस समय हम इस प्राकृतिक अापदा से नहीं संभलेंगे तो आगे आने वाले संकट से कैसे लडेंगे . आज अर्थव्यवस्था चारों खाने चित्त पड़ी है. हम कोरोना महामारी की तबाही से तो किसी तरह निपट लेंगे, लेकिन उसके बाद जो मंदी की मार पड़ने वाली है उससे होने वाली तबाही से कैसे निपटेंगे?

मजदूर वर्ग, छोटे व्यापारी, मध्यमवर्गीय सभी संकट से जूझ रहे हैं। लॉक डाउन के कारण कामकाज ठप्प है जिससे अर्थव्यवस्था अौंधे मुंह गिर पड़ी है. अर्थव्यवस्था की बदहाली के नकारात्मक दानव प्रश्न बनकर सामने खड़े हैं. 2007 और 2008 में जब मंदी आई थी जिसके कारण अमेरिका व उससे जुडे व्यवसायिक देशों पर भी उसका असर हुआ था. शेयर मार्केट गिर गया था. लेकिन उस मंदी का भारत पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा था . पुराने समय में घरों में बचत करने की आदत से हम आर्थिक मंदी से उबर गए थे। लेकिन समय के साथ होने वाली नोटबंदी, कैशलेस व्यवहार, कुछ बैंकों का दिवालिया होना, भ्रष्ट निवेशकों का पलायन करना भारी संकट लेकर आया है। आने वाला समय हम सब पर भारी होगा। लेकिन उससे पहले हमें इस संकट से निकलना होगा।

घरों में बंद होने के कारण लोगों में हताशा व निराशा के भाव जन्म ले रहे हैं . नकारात्मकता को सकारात्मकता में बदलने के प्रयास हमें करने चाहिए। ना कि हम धर्म की आढ मे इस संक्रमण को फैलाने के सहभागी बने .भारत की घनी आबादी वाले देश में जनता का एक बड़ा भाग या तो अनपढ़ है या अनपढ़ों की तरह है , क्योंकि धर्म और अंधविश्वास में कई लोगों की आंखें बंद होती है . लेकिन संक्रमण को रोकने के लिए टोन टोटक नही सावधानियां बेहद जरूरी है।


एकजुट होकर देश को इस तबाही और संक्रमण के मंजर से बाहर निकालना होगा। कितना दुख: होता है जब हमने देखते है कि देश की सेवा कर रहे स्वास्थ्य कर्मियों पर कुछ लोगों ने पथराव किये एंव असहयोग भावना रखी, दुर्व्यवहार किया, यह उचित नहीं है. हम जिस देश के नागरिक है, संकट की घडी में साथ खडे होना हमारा पहला धर्म व कर्तव्य होता है। रास्ता भले मुश्किलों भरा है लेकिन असंभव नही है.
माननीय प्रधानमंत्री जी ने 5 अप्रैल रात 9:00 बजे 9 महीने तक लाइट बंद रखकर दिया जलाने या मोबाइल की लाइट शुरु करने का निवेदन किया है। इसके पीछे उनका कुछ तो लाजिक होगा.

इसके पीछे लोगों के अलग-अलग धारणाएं सामने
आ रही हैं। भारत में ज्योतिष , तंत्र विज्ञान और न्यूमरोलोजी, अंधविश्वास आदि काल से फैला हुआ है. लोग इसमें अपना -अलग मत रखतें है. कुछ इसे धर्म से जोडने लगे

लेकिन मेरी नजर में हमारे देश की अनेकता में एकता की ताकत को जानने व दिखाने का अच्छा प्रयास है. मैं तो यही निवेदन करना चाहूंगी कि हमें जाति धर्म को भूलकर एकता से नागरिक धर्म निभाना चाहिए। हम जिस थाली में खाते है उसमें छेद करना हमारी नियत पर संदेह पैदा करता है. हम जिस देश के नागरिक हैं उसकी रक्षा करना हमारा धर्म है। अपनी सुरक्षा, अपनों की सुरक्षा ही देश की सुरक्षा है. हमें पहले मानव धर्म निभाना है और कोरोना को हराना है।
शशि पुरवार



Saturday, April 4, 2020

जनता कर्फ्यू - स्वयं के संयम की परीक्षा


जनता कर्फ्यू - स्वयं के संयम की परीक्षा

देश विदेश में फैला हुअा कोरोना वायरस लाखों लोगों को काल बनकर निल गया है, देश में बढ़ते वायरस महामारी के संक्रमण से उत्पन्न होने वाली जटिल समस्या से निपटने के लिए सरकार के जनता कर्फ्यू के फैसले का स्वागत है.

साधार: मारी यह मानसिकता है कि स्वेच्छा से हम कुछ नहीं करेंगे और यदि जबरदस्ती किया जाय, तो सरकार को कोसने लगेंगे. पहले सँभलते नहीं है लेकिन जब परेशानी होती है तो सरकार को गालियां देना शुरू कर देंगे . करोड़ों की आबादी वाल भारत देश में शासन पूर्णत: तभी सफल होगा, जब जनता उसमें सहयोग करेंग.
यह कर्फ्यू नही है अपितु आपकी इस घड़ी में स्वयं पर संयम रखकर अपने लिए, अपनों के लिए व समाज हित के लिए सुरक्षा है. यदि हम स्वयं की रक्षा करेगें तो समाज सुरक्षित रहेगा. हम देश के जागरूक नागरिक है व नागरिक देश की इकाई होता है, संक्रमण को रोकने में हम महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकतें है.
कोरोना वायरस महामारी का कहर अन्य देशों में तीसरे व चौथे सप्ताह में तबाही मचा चुका है . महामारी धीरे-धीरे अपने पैर पसार रही है . भारत में आज 300 के करीब लोग संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं, 4 – 5 मौतें हो चुकी है .
चूंकि अब तीसरा सप्ताह शुरू होने वाला है इसीलिए जरूरी है कि आप अपना व अपने परिवार का ख्याल रखें. क्योंकि भारत देश में करोड़ों की आबादी में संक्रमण का तेजी से फैलना तबाही मचा सकता है. इसीलिए यह महामारी अपना भयानक रूप उससे पहले उसे रोकना अत्यंत आवश्यक है . देश के लगभग हर राज्य में धीरे धीरे लोक डाउन किया जा रहा है. लेकिन इस बात की गंभीरता को कितने लोग समझ रहे हैं ?. कितने लोग कोरोना वायरस को गंभीर समस्या के रूप में ले रहे हैं ? अभी भी लोग बिना मास्क बाहर निकल रहें है. मैंने कई लोगों से इस संदर्भ में भी बात की और उन्हें इस समस्या के बचने की सलाह दी, तो उन्होंने समस्या को ही धता बता कर गंभीरता का मखौल उड़ा दिया.

हाइ सोसाइटी में बुद्धिजीवी लोग अपना नियमित सैर सपाटा, जमावड़ा पार्टी को जारी रखे हुए है . उनके लिए यह समस्या नहीं अपितु घुमक्कड़ी का समय बना हुआ है . यह तो वही बात है कि स्वयं को बुद्धिजीवी घोषित करके हम स्वयं को मूर्ख बना रहे हैं . क्या आपने सोचा है यह महामारी जब विकराल रूप लेगी तो कितने अपनों की जान लेगी ? क्या हम ,अपनों को खोने के बाद चेतेगें ? इस समय देश संकट से गुजर रहा है. हमारे देश की आर्थिक अर्थव्यवस्था पर भी बुरा असर पड़ा है, समस्या गंभीर है .हमें गंभीरता से समस्या को बढ़ने से पहले उसका दमन कना होगा.

हमें समझना होगा कि जब अापके लिए जरूरी सेवाएं बहाल है तो अनावश्यक बाहर न जाएं. सामान भर कर स्वार्थी ना बनें. दिहाडी मजदूृर इस संकट में सबसे ज्यादा झूझ रहे हैं. हमसे ज्यादा उनके घरों मे समस्या है, वह महामारी के साथ अपनी भूख से भी झूझेंगे. अपने कदम उनकी मदद के लिए बढानें होगें, अपने घर में काम करने वाले लोगों हेल्परों की सहायता करनी होगी.

स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी, सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर, स्वास्थ्यकर्मी और बड़ी संख्या में स्वच्छताकर्मी इस मिशन में अपनी जान जोखिम में डालकर जुटे हुए हैं। 130 करोड़ वाले जनसंख्या के देश में कोविड-19 के संक्रमण से जनता को बचाने के लिए केंद्र सरकार और सारी राज्य सरकारें अपनी पुरजोर कोशिश कर रही हैं। हमें उसमे अपना योगदान देना होगा. नही तो जब यह संक्रमण अपना विकराल रूप धारण कर लेगा, उस भयावह स्थिति को संभालना मुश्किल होगा हमारे देश की जितनी जनसंख्या के मुकाबले स्वास्थ सेंवाए कम पडेगी.

जनता कर्फ्यू माननीय प्रधानमंत्री जी ने अापके लिए, आपके नाम किया है, हम स्वयं के लिए अपनों के लिए इतना कर सकते हैं. सोशल दूरी बनाकर अपनों के करीब आएं. खुद को घर में कैद मत समझें , परिजनों के साथ पलों को जिए. घबराएं नहीं . थोडी सी सावधानी खुशियों भरी जिंदगी बन सकती है.

हम लोग भी तीसरे स्टेज पर पहुंचने वाले हैं इसीलिए जरूरी है कि आप अपना व अपने परिवार का ख्याल रखें. क्योंकि भारत देश में करोड़ों की आबादी में संक्रमण का तेजी से फैलना तबाही मचा सकता है क्योंकि स्वास्थ्य संबंधी सेवाएं इतनी बहाल नहीं है जितनी आवश्यकता होगी . एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते कुछ बातों का धायन रखें , आपसे विनम्र निवेदन है कि

1 माननीय प्रधानमंत्री जी ने कई उपाय बताए हैं जिनका पालन करके छोटा सा सहयोग दे सकते हैं
2 सामान की जमाखोरी न करें है . अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम न होने दें।

3 कारण बाहर ना निकलें. स्वास्थ संबधी परेशानी या कोरोना के लक्षण दिखने पर घबराने की जगह सरकार द्वारा दिये गये हेल्प लाइन नंबर से मदद लें

4 कोविड-19 को हल्के में न लें। इसकी गंभीरता को समझें। व्हाट्सएप पर आने वाले अवैज्ञानिक और भ्रामक उपचारों का प्रचार-प्रसार न करें।

5 स्वच्छता का ध्यान रखें, सतर्कता बरतें, सरकार का साथ दें. बच्चों के हाथ भी साबुन/सैनिटाइजर से धुलवाते रहें.

जनता कर्फ्यू हमारे ही संयम की परीक्षा है, जनता का जनता के लिए स्वंय पर लगाया गया ‌कर्फ्यू समाज हित के लिए होगा. इस जंग को जीत जाना है हमें कोरोना को हराना है.
शि पुरवार



समीक्षा -- है न -

  शशि पुरवार  Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा  है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह  जिसमें प्रेम के विविध रं...

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