परछाईयों से है,
नाता पुराना
साथ चलती,
परछाईयाँ
दिखाती हैं ,
क़दमों के निशां .
चांदनी रात में
छुपती - छुपाती
परछाईयाँ,
उजागर करती है
अतीत के पन्नों को .
चंचल हिरनी सी
चपल , लजाती ,
अपने अस्तित्व का ,
अहसास कराती .
सुख - दुःख का मेरा
सच्चा साथी ,
मेरी हर तस्वीर का
आइना है , ये
परछाईयाँ .
बचपन में " चंचल "
जवानी में " अल्हड "
बुढ़ापे में " तठस्थ "
हर पल रूप ,
बदलती " परछाईयाँ".
कभी नजदीक है आती
कभी दूर हो जाती ,
ढूँढो , इनको ,तो
खुद का ही ,
प्रतिबिम्ब दिखाती .
पलभर में गुम
पलभर में पास ,
ख़ामोशी से कहती
सदा एक ही बात ,
हम तो जीवन भर
साथ निभाती .
हमकदम , हमनशीं
हमसफ़र , मेरे
अन्तःस का
आइना
" परछाईयाँ "
:- शशि पुरवार
डायरी के पन्नों से -
डायरी के पन्नों से -
परछाईयों का सुन्दर वर्णन!
ReplyDeleteवाह ...बहुत ही बढि़या लिखा है .. ।
ReplyDeleteपरछाइयां यादों के खजाने की तरह बडती घटती रहती हैं पर खत्म नहीं होती ... खाय्तं तो जीवन के साथ ही होती हैं ...
ReplyDeleteशशि जी,आपने बड़ी खूबशुरती से परछाइयों का बखान किया,सुंदर पोस्ट
ReplyDeleteमेरे मुख्य ब्लॉग काव्यांजली में नई पोस्ट "वजूद" पर स्वागत है...
इन परछाइयों से ही ज़िन्दगी झांकती है ... अलग अलग मायने लिए
ReplyDeleteपरछाईयों से है,
ReplyDeleteनाता पुराना
साथ चलती,
परछाईयां
दिखाती हैं ,
क़दमों के निशां
laakh koshish karo peechhaa nahee chhodtee hein parchhaayeeaan
बहुत खूब मैम।
ReplyDeleteसादर
बहुत खूब...परछाइयाँ ही जीवन भर साथ निभाती हैं, विभिन्न रूपों में..बहुत सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteek parchaaiyan hi to hain jo kabhi saath nahi chodti.
ReplyDeleteराहुल जी , सदा जी , दिगम्बर जी , धीरेन्द्र जी , रश्मि जी , राजेंद्र जी , यशवंत जी , कैलाश जी , राजेश कुमारी जी ......आप सभी का ह्रदय से शुक्रिया .आपको लेखनी पसंद आई ,आपकी सब समीक्षा मेरे लिए अनमोल है , धन्यवाद .
ReplyDeleteपरछाइयों का सही वर्गीकरण बहुत अच्छा लगा
ReplyDeleteपरछाईयाँ साथ चलती हैं सदा...
ReplyDeleteपरछाईयों का विम्ब सुन्दरता से गढ़ती हुई रचना!
Shadows are always with us...Sometimes they play hide and seek...Beautiful poem...
ReplyDeleteपरछाईं तो दुख-सुख का साथी होती है।
ReplyDeleteसुंदर भाव।
बहुत सुंदर
ReplyDeleteक्या कहने
छोटी छोटी बंदिशों में जीवन की बड़ी-बड़ी बात अभिव्यक्त की गई है.
ReplyDeleteBEHATER POST
ReplyDeleteपरछाईयों का सुंदर विम्ब गढ़ती हुई रचना ..
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति.
सुन्दर रचना , सुन्दर भावाभिव्यक्ति.
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें, अपनी प्रतिक्रया दें.
जीवन के हर पडाव में परछाईयों के विविध रूप को बेहतर तरीके से प्रस्तुत किया आपने।
ReplyDeleteसच में हर पल साथ होती हैं परछाईयां......
आभार.....
नमस्कार शशि जी...बहुत ही सुंदर रचना...लाजवाब।
ReplyDelete
ReplyDelete♥
हमकदम , हमनशीं
हमसफ़र… … …
आदरणीया शशि पुरवार जी
सस्नेहाभिवादन !
छुपती - छुपाती ......परछाइयां पसंद आईं…
कभी नजदीक है आती
कभी दूर हो जाती ,
ढूँढो , इनको ,तो
खुद का ही ,
प्रतिबिम्ब दिखाती .
सचमुच एक साथी ही तो है … … …
शुभकामनाओं-मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
चंचल हिरनी सी
ReplyDeleteचपल , लजाती ,
अपने अस्तित्व का ,
अहसास कराती .
सुख - दुःख का मेरा
सच्चा साथी ,
मेरी हर तस्वीर का
आइना है , ये
परछाईयां .
शशि जी बहुत ही खूबसूरत कविता है बधाई और शुभकामनाएँ
bahut khub ji
ReplyDeleteभावपूर्ण ... शुभकामना
ReplyDeleteshshi ji namaskaar, sundar rchanaa.
ReplyDeleteपरछाइयाँ ..जो हमें कभी तनहा नहीं होने देती.. अच्छी लगी रचना..
ReplyDeleteदिखे ना दिखें..परछाइयाँ हमेशा साथ होती हैं , कभी साथ नहीं छोडतीं.
ReplyDeleteसुन्दर रचना.
very expressive n meaningfui.thanks.
ReplyDelete
ReplyDelete♥
आदरणीया शशि जी
क्या बात है … अभी तक पोस्ट नहीं बदली ?
आशा है , सपरिवार स्वस्थ-सानंद हैं …
मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
जवानी में " अल्हड "
ReplyDeleteबुढ़ापे में " तठस्थ "
हर पल रूप ,
बदलती " परछाईयां ".
bahut sundar kalpana ... badhai
bahut hi sundar aur gehrai se bhari phanktiya..
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ReplyDeleteबहुत सुंदर
हूँ अँधेरे में या उजाले में, ये एहसास कराती परछाईयां
ReplyDeleteबहुत बहुत ही खुबसूरत लिखा है आपने..