घुमड़ घुमड़ कर आये बदरा
मनभावन, बनी तसवीर.
मनभावन, बनी तसवीर.
घन घन घन, घनघोर घटाएँ
गाएँ मेघ - राग मल्हार
झूमे पादप, सर्द हवाएँ
खुशियों का करें इजहार।
गाएँ मेघ - राग मल्हार
झूमे पादप, सर्द हवाएँ
खुशियों का करें इजहार।
चंचल बूँदों में भीगा, सुधियों
से खेले मन - अबीर
घुमड़ घुमड़ कर आये बदरा ..!
से खेले मन - अबीर
घुमड़ घुमड़ कर आये बदरा ..!
अटे-पटे से वृक्ष घनेरे
पात-पात ढुलके पानी
दबी आग फिर लगी सुलगने
ज्यूँ महकीं याद पुरानी
पात-पात ढुलके पानी
दबी आग फिर लगी सुलगने
ज्यूँ महकीं याद पुरानी
शतदल के फूलों से गिरतें
जल- कण, दिखतें हैं अधीर.
घुमड़ घुमड़ कर आये बदरा ..!
जल- कण, दिखतें हैं अधीर.
घुमड़ घुमड़ कर आये बदरा ..!
विकल ह्रदय से, प्रिय दिन बीता
याद तुम्हारी गरमाई
दादुर, झींगुर गान सुनाएँ
रात अँधेरी गहराई.
याद तुम्हारी गरमाई
दादुर, झींगुर गान सुनाएँ
रात अँधेरी गहराई.
मंद रौशनी में इक साया
गुने शब्द-शब्द तहरीर.
घुमड़ घुमड़ कर आये बदरा ..!
गुने शब्द-शब्द तहरीर.
घुमड़ घुमड़ कर आये बदरा ..!
------- शशि पुरवार
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 11 अगस्त 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर तालमेल आपकी कोमल भावनाओं का प्रकृति के साथ आभार ,"एकलव्य"
ReplyDeleteआकाश से झरता अमृत
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (12-08-2017) को "'धान खेत में लहराते" " (चर्चा अंक 2694) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वर्षा ऋतु की सुन्दर छटा बिखेरती रचना।
ReplyDeleteवर्षा ऋतु की सुन्दर छटा बिखेरती रचना।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteवर्षाकाल की विभिन्न छटाएँ बिखेरती सुंदर रचना !
ReplyDeleteसावन बरखा और प्राकृति के अनुपम रूप से प्रेम के भाव स्वतः ही जागृत हो उठते हैं ... अनुपम रचना ...
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