1
माँ बाबा की लाडली, वह जीवन की शान
ममता को होता सदा, बेटी पर अभिमान।
2
बेटी ही करती रही, घर- अँगना गुलजार
मन की शीतल चाँदनी, नैना तकते द्वार।
3
बेटी ही समझे सदा, अपनों की हर पीर
दो कुनबों को जोड़ती, धरें ह्रदय में धीर
4
प्रेम डोर अनमोल हैं, जलें ख़ुशी के दीप
माता के आँचल पली, बेटी बनकर सीप।
-- शशि पुरवार
शशि पुरवार Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह जिसमें प्रेम के विविध रं...
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