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Saturday, April 6, 2013
Sunday, August 12, 2012
दोहे ........
1 सबसे कहे पुकार कर , यह वसुधा दिन रात
जितनी कम वन सम्पदा , उतनी कम बरसात .
2 इन फूलो के देखिये , भिन्न भिन्न है नाम
रूप रंग से भी परे , खुशबु भी पहचान .
3 समय- शिला पर बैठकर , शहर बनाते चित्र
सूख गई जल की नदी , सिकुड़े जंगल मित्र .
------------------- हाइकु -------------
क्लांत नदिया
वाट जोहे सावन
जलाए भानु .
...
आया सावन
खिलखिलाई धरा
नाचे झरने .
नाचे मयूर
झूम उठा सावन
चंचल बूंदे.
काली घटाए
सूरज को छुपाये
आँख मिचोली .
बैरी बदरा
घुमड़ घुमड़ के
आया सावन .
----- शशि पुरवार
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