Saturday, April 6, 2013
सिमटती जाये गंगा .........
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
समीक्षा -- है न -
शशि पुरवार Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह जिसमें प्रेम के विविध रं...
https://sapne-shashi.blogspot.com/
-
मेहंदी लगे हाथ कर रहें हैं पिया का इंतजार सात फेरो संग माँगा है उम्र भर का साथ. यूँ मिलें फिर दो अजनबी जैसे नदी के दो किनारो का...
-
हास्य - व्यंग्य लेखन में महिला व्यंग्यकार और पुरुष व्यंग्यकार का अंतर्विरोध - कमाल है ! जहां विरोध ही नही होना चाहिए वहां अ...
-
साल नूतन आ गया है नव उमंगों को सजाने आस के उम्मीद के फिर बन रहें हैं नव ठिकाने भोर की पहली किरण भी आस मन में है जगाती एक कतरा धूप भी, ...
linkwith
http://sapne-shashi.blogspot.com
सटीक ... आज सारी ही नदियों का हाल यही है ।
ReplyDeleteवाह !!! बहुत बेहतरीन सटीक दोहे और कुण्डलियाँ, !!!
ReplyDeleteRECENT POST: जुल्म
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (07-04-2013) के “जुल्म” (चर्चा मंच-1207) पर भी होगी!
सूचनार्थ.. सादर!
आज की ब्लॉग बुलेटिन बिना संघर्ष कोई महान नहीं होता - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteजाने कब सुध ली जाएगी जीवनदायिनी नदियों की..... सार्थक रचना
ReplyDeleteगंगा नदी हरिद्वार से मैदानों में प्रवेश करती है वहीँ से कुछ विदेशी कंपनिओं और भारतीय लोगों ने इसमें गंदगी मिलाने का जेसे बेड़ा उठा रखा हो। इन लोगों को सबक सिखाना चाहिए और संसद में इनके खिलाफ कड़े कानून की व्यवस्था हो।
ReplyDeleteबहुत अच्छी सोच।
मेरे ब्लॉग पर भी आइये ..अच्छा लगे तो ज्वाइन भी कीजिये
पधारिये आजादी रो दीवानों: सागरमल गोपा (राजस्थानी कविता)
सार्थक प्रस्तुति ।।
ReplyDeleteगंगा जमुना भारती ,सर्व गुणों की खान
ReplyDeleteमैला करते नीर को ,ये पापी इंसान
सच्चाई तो यही है. संवेदनशील प्रस्तुति.
अति सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteजाने कब समझेंगे लोग?
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सार्थक प्रस्तुति !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया दोहे और कुण्डलियाँ -सटीक रचना
LATEST POSTसपना और तुम
बहुत ही बेहतरीन सुन्दर दोहे,आपका आभार.कभी हमारे ब्लोग्स के भी मार्गदर्शन करें.
ReplyDelete"ब्लॉग कलश"
भूली-बिसरी यादें
"स्वस्थ जीवन: Healthy life"
वेब मीडिया
दोनों ही छंद सुंदर और सारगर्भित......
ReplyDeleteसुंदर एवं भावपूर्ण रचना...
ReplyDeleteआप की ये रचना 12-04-2013 यानी आने वाले शुकरवार की नई पुरानी हलचल
पर लिंक की जा रही है। सूचनार्थ।
आप भी इस हलचल में शामिल होकर इस की शोभा बढ़ाना।
मिलते हैं फिर शुकरवार को आप की इस रचना के साथ।
jaise-jaise aadmi ka lobh badhta ja raha hai ganga simatti ja rahi hai .....
ReplyDeleteसुन्दर....गंगा की हालत वाकई चिंताजनक है.
ReplyDelete