Saturday, April 11, 2020

जीवन बचाने के लिए चिंतन जरूरी





मनुष्य व प्रकृति को बचाने के लिए चिंतन करना आज जीवन की महत्वपूर्ण वजह बन गई हैअपराधी सिर्फ वह लोग नहीं हैं जो खूंखार कृत्यों को अंजाम देते हैं अपितु प्रकृति के अपराधी आप और हम भी हैंजो प्रकृति पर किए गए अन्याय में जाने -अनजाने सहभागी बने हैं.

मौसम के बदलते मिजाज प्रकृति के जीवन चक्र में हस्तक्षेप करने का नतीजा है. 21 दिन के लाक डाउन के बाद भी कोरोना के बढ़ते कदम विनाश की तरफ जा सकते हैंजिसे रोकना बेहद जरूरी है.

मानव ने चाँद पर कदम रखकर फतेह हासिल की व आज भी अन्य ग्रहों पर जाकर फतेह करने का जज्बा कायम है लेकिन क्या प्रकृति पर काबू पाया जा सकता है प्रकृति जितनी सुंदर है वहीं उसे बंजर बनाने में मानव का बहुत बडा हाथ हैधरती को रासायनिक उर्वरों व संसाधनों द्वारा बंजर व शुष्क बनाकर मानवआग में घी डालने का काम कर रहा हैक्योंकि प्रकृति जहरीली गैसों से भरा बवंडर भी हैहम मानव निर्मित संसाधनों द्वारा प्रकृति से खिलवाड़ करके अपनी ही सांसों को रोकने का प्रबंध कर रहे हैंआज हम विश्व स्तर पर प्रकृति से युद्ध लड़ रहें हैंजिसमें उसका हथियार एक अदृश्य सूक्ष्म जीव है जिसने अाज जगत में कहर मचा रखा हैप्रकृति ने समय-समय पर अपनी ताकत का एहसास मनुष्य जाति को कराया हैलेकिन मानव फिर भी नहीं सँभला विकास को विनाश में परिवर्तित करने वाली स्मृतियां इतिहास में आज भी सुरक्षित हैं.

हम सबने प्रकृति का विध्वंस स्वरूप भी देखा हैकटते वनपर्यावरण प्रदूषणरासायनिक संसाधनों का दुरुपयोगप्लासटिककचरा ...इत्यादि के कारण बदलते मानसूनभूकंपबादल फटनामहामारीसूखप्रलय ...अादि प्रकृति के जीवन चक्र में हस्तक्षेप करने का दुष्परिणाम हैपहले भी कई महामारी आईधरा का संतुलन बिगडाउसके बाद जीवन को पुनपटरी पर लाने के लिए बहुत जद्दोजहद करनी पडी हैहम सबने सुना है कि जब जब धरती पर बोझ बढता है वह विस्फोट करती हैप्रकृति अपने अस्तित्व को बचाने के लिए मूक वार करके अपना विरोध जाहिर कर देती है लेकिन दंभ में डूबा यह मानव मन कहाँ कुछ समझना चाहता है?

मानव की मृगतृष्णा,अंहकार की पिपासा के कारण ही संपूर्ण विश्व पर संकट मंडरा रहा है कुछ देशों द्वारा स्वयं को शक्तिशाली घोषित करने के लिए किसी भी हद तक जाना शर्मनाक कृत्य हैइन विषम परिस्थिति में सीमा पर गोलीबारी होना सीजफायर तोड़नाकिसी आतंकवादी होने से कम नहीं है .यह उनके कुंसगत मन का घोतक हैक्या एेसे तत्व मानवता के प्रतीक हैं चीन द्वारा जैविक हथियार बनाना उसी की दूषित करनी का फल हैयह कैसी लालसा है जिसमें उसने करोडो जीवन दांव पर लगा दियेउसकी लोभ पिपासा महामारी बनकर जीवन को लील रही हैजिसका खामियाजा संपूर्ण विश्व भुगत रहा हैमानव जाति का अस्तित्व खतरेें में है .स्वयं को शक्तिशाली घोषित करने के लिए विश्व की शक्तियां किसी भी स्तर तक गिर सकती है जहां से सिर्फ पतन ही होगा .  लेकिन अभी इन बातों से इतर जीवन को बचाना महत्वपूर्ण है.

कोविड-19 के कहर से संपूर्ण विश्व ग्रस्त है वैश्विक संकट गहराता जा रहा है तेजी से बढ़ता संक्रमण चिंता का विषय हैलेकिन साथ में कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा अमानवीय व्यवहार करनाहमारी प्राचीन संस्कृति व सभ्यता पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं.

यह कैसी प्रगति है क्या हमारे कदम आगे बढ़े हैंया हमें दो कदम पीछे जाकर चिंतन करने की आवश्यकता हैक्या मानवीय संवेदनाअों की मृत्यु हो गई हैया संवेदनाएं ठहरने लगी हैहिंसा का यह दौर किस पृष्ठभूमि से जन्मा हैकिताबी ज्ञानसाहित्यसमाज व मनन चिंतन के अतिरिक्त हमें अपनी प्राचीन सभ्यता और संस्कृति के गलियारों में घूमने की आवश्यकता हैपीडा से ग्रस्त जीवन घरों में कैद हैकहीं वह विकृति को जन्म दे रहा है तो कहीं शारीरिक व मानसिक हिंसा द्वारा जीवन के मूल्यों का हृास हो रहा है.

संकट के इस दौर में असामाजिक तत्वों द्वारा हिंसा के समाचार मानवीय पतन का परिचायक हैसेवा कर्मचारीडाक्टरकुछ लोगकई संस्थाएं अपनी जान जोखिम में डालकर निस्वार्थ भाव से सेवा कर रहीं हैं इनके साथ दुर्व्यवहार करने की खबरें मन को आहत करती हैकोविड-19 को हिंसा द्वारा नहीं संयम द्वारा ही जीता जा सकता है आज इस संयम की संपूर्ण विश्व में आवश्यकता है.

जीवन महत्वपूर्ण हैजान है तो जहान हैमानव ही मानव को बचाने का माध्यम बना है एक दूसरे की मदद करनासोशल डिस्टसिंग एवं स्वयं के संक्रमित होने की सही जानकारी सरकार को प्रदान करना जिससे एक नहीं हजारों लाखों जीवन को बचाया जा सकता हैजिसमें सामर्थ है वह मदद करें जिससे गरीबों की परेशानियों का हल भी निकल सकता है.कोरोना की चैन को तोड़ना आवश्यक है वरना यह नरसंहार विश्व में तबाही का बहुत बड़ा कारण बनेगा.

राज्य सरकारी धीरे-धीरे लॉक डाउन बढ़ा रही  है जीवन को गति देने के लिए नियमों का पालन करना बेहद जरूरी है किंतु अभी मैं बहुत से लोग नियमों का पालन नहीं कर रहे हैंऐसा करके वह स्वयं की जिंदगी को भी खतरे में डाल रहे हैंशांत रहेंनियमों का पालन करते हुए काम करें असंयमितअस्त व्यस्त हुए जीवन को आज संयमचिंतन व अनुशासन द्वारा ही बचाया जा सकता हैंजिससे हम सबी को कोरोना के भय से निजात मिले.
शशि पुरवार


Sunday, April 5, 2020

कोरोना - संक्रमण का कहर


कोरोना - संक्रमण का कहर

कोरोना संक्रमण की बढ़ती संख्या से लोगों के मन में डर पैदा होना स्वाभाविक है. जिस बात का हमें डर था वही सामने आ रह है . आंकड़े लगातार बढ़ रहे हैं. देश को विषम परिस्थिति से बचाने के लिए सरकार द्वारा ऐतिहातिक प्रयास किए जा रहे हैं. लेकिन कुछ संप्रदायिक दलों की लापरवाही का परिणाम पूरे देश को भुगतना पड़ रहा है.

कहते हैं ना कि एक हाथ से ताली नहीं बजती है, सरकार प्रयास कर रही है और उसके प्रयासों में योगदान देना हमारी नैतिक जिम्मेदारी बनती है. अब आप कहेंगे सरकार क्या कर रही है? हमारे यहां संसाधनों की कमी है .जितने लोग उतनी बातें.. वगैरह .. वगैरह़.

सरकार द्वारा संभवत: हर प्रयास किए जा रहे हैं इतनी बड़ी आबादी को अनुशासित रखना कोई खेल नहीं है। सरकार के सिर पर शिकायतों का ठिकरा फोड़ने से बेहतर है कि हम अनुशासन का पालन करें। हमारे यहां अनुशासन की कमी है जिसके कारण अनगिनत परेशानियां उत्पन्न होती रहती है .

ऐसे समय अंधविश्वास, टोने - टोटके भी बहुत शिद्दत से कुछ लोगों द्वारा प्रसार में हैं। कोई भी धर्म हमें यह नहीं सिखाता है कि इंसान की जान ले लो, इंसानियत का धर्म हर धर्म से ऊपर होता है, लेकिन कुछ विरोधी तत्व इंसानियत को तार-तार कर रहे हैं. यह महामारी किसी धर्म को देखकर नहीं आती है। अमीर- गरीब, हिंदू - मुस्लिम, सिख -ईसाई ,पक्ष-विपक्ष कोई भी धर्म हो कोरोना तो सभी पर बराबरी से प्रहार करेगा।
लॉक डाउन के कारण दिहाड़ी मजदूर सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। लॉक डाउन होने के बाद लगभग हर प्रांत से उनका पलायन शुरू हो गया था. हाथ में पैसा नहीं और खाने को भोजन नहीं, गरीबी का यह मंजर जितना हमें सालता है उतना ही उन्हें मार रहा था। बेहद ह्रदय विदारक दृश्य है. जब गर्भवती महिला, बुजुर्ग व बच्चे लंबी दूरी पैदल ही तय करके गाँव लौट रहे थे. मजदूरों की इस बेहाल दशा की जानकारी देने के लिए मीडिया सामने आया, लेकिन धर्म के ठेकेदारों की लापरवाही की खबर सामने आते हअगले दिन उसने भी मजदूरों के पलायन को भुला दिया? सब अपना फायदा ही देख रहे थे . मन में बहुत बड़ा प्रश्न था कि बड़ी संख्या में राज्य की सीमाओं तक पहुंचे मजदूर आखिर कहां गए? उनके साथ क्या हो रहा है क्या उनकी खबर दिखाना मिडिया की जिम्मेदारी नहीं है?

तब एक समाचार चैनल पर मजदूरों की खबर पुन: कुछ मिनिट दिखाई गई जिसमें राज्य की सीमा पर मजदूर ट्रकों के ऊपर खचाखच भर कर बैठे थे और प्रशासन ने उन्हें आगे जाने से रोक दिया था . ट्रक से उतरने की भी मनाही थी . जो जहां है वह वही बैठा रहेगा के आदेश थे. खाने के पैकेट नीचे से उछाल कर ऊपर दिए जा रहे थे. लेकिन यहाँ उन्हें सोशल डिस्टेंसिंग की जानकारी नहीं दी गई . ट्रक के ऊपर जमा लोगों में सोशल डिस्टेंसिंग कैसे हो सकती है?

मजदूर वर्ग सीमा पर सामूहिक रूप से रुका हुआ था। केंद्र व राज्य सरकारों के निवेदन पर जो मजदूर घरों में रुक गए थे, कहीं-कहीं उन्हें मकान मालिको द्वारा भी निकाला गया या कुछ भोजन के अभाव में स्वयं ही बाहर निकल आए या उन तक सरकार द्वारा दी जाने वाली मदद के हाथ नहीं पहुंचे। कोरोना संक्रमण का भय और पेट की मार दोनों ही उनपर हावी है। आखिर उनकी रक्षा करना बेहद जरूरी है.

हमारे देश में आबादी का एक बड़ा हिस्सा झोपड़पट्टी में रहता है, जहां छोटी सी खोली में सटकर रहना उनकी मजबूरी है. ऐसी जगह सोशल डिस्टेंसिंग कैसे होगी ? यदि ऐसी जगह संक्रमण फैलेगा तो कितनी बड़ी तबाही मचेगी? क्या उन्हें भी सावधानियां बताई गई? कुछ उपाय सोचे गये ?

हकीकत यह है कि कोरोना वायरस लाने वाला मानव ही है, आज मानव पर प्रकृति की ऐसी मार पड़ी है कि वह बेहाल हो गया है. यदि इस समय हम इस प्राकृतिक अापदा से नहीं संभलेंगे तो आगे आने वाले संकट से कैसे लडेंगे . आज अर्थव्यवस्था चारों खाने चित्त पड़ी है. हम कोरोना महामारी की तबाही से तो किसी तरह निपट लेंगे, लेकिन उसके बाद जो मंदी की मार पड़ने वाली है उससे होने वाली तबाही से कैसे निपटेंगे?

मजदूर वर्ग, छोटे व्यापारी, मध्यमवर्गीय सभी संकट से जूझ रहे हैं। लॉक डाउन के कारण कामकाज ठप्प है जिससे अर्थव्यवस्था अौंधे मुंह गिर पड़ी है. अर्थव्यवस्था की बदहाली के नकारात्मक दानव प्रश्न बनकर सामने खड़े हैं. 2007 और 2008 में जब मंदी आई थी जिसके कारण अमेरिका व उससे जुडे व्यवसायिक देशों पर भी उसका असर हुआ था. शेयर मार्केट गिर गया था. लेकिन उस मंदी का भारत पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा था . पुराने समय में घरों में बचत करने की आदत से हम आर्थिक मंदी से उबर गए थे। लेकिन समय के साथ होने वाली नोटबंदी, कैशलेस व्यवहार, कुछ बैंकों का दिवालिया होना, भ्रष्ट निवेशकों का पलायन करना भारी संकट लेकर आया है। आने वाला समय हम सब पर भारी होगा। लेकिन उससे पहले हमें इस संकट से निकलना होगा।

घरों में बंद होने के कारण लोगों में हताशा व निराशा के भाव जन्म ले रहे हैं . नकारात्मकता को सकारात्मकता में बदलने के प्रयास हमें करने चाहिए। ना कि हम धर्म की आढ मे इस संक्रमण को फैलाने के सहभागी बने .भारत की घनी आबादी वाले देश में जनता का एक बड़ा भाग या तो अनपढ़ है या अनपढ़ों की तरह है , क्योंकि धर्म और अंधविश्वास में कई लोगों की आंखें बंद होती है . लेकिन संक्रमण को रोकने के लिए टोन टोटक नही सावधानियां बेहद जरूरी है।


एकजुट होकर देश को इस तबाही और संक्रमण के मंजर से बाहर निकालना होगा। कितना दुख: होता है जब हमने देखते है कि देश की सेवा कर रहे स्वास्थ्य कर्मियों पर कुछ लोगों ने पथराव किये एंव असहयोग भावना रखी, दुर्व्यवहार किया, यह उचित नहीं है. हम जिस देश के नागरिक है, संकट की घडी में साथ खडे होना हमारा पहला धर्म व कर्तव्य होता है। रास्ता भले मुश्किलों भरा है लेकिन असंभव नही है.
माननीय प्रधानमंत्री जी ने 5 अप्रैल रात 9:00 बजे 9 महीने तक लाइट बंद रखकर दिया जलाने या मोबाइल की लाइट शुरु करने का निवेदन किया है। इसके पीछे उनका कुछ तो लाजिक होगा.

इसके पीछे लोगों के अलग-अलग धारणाएं सामने
आ रही हैं। भारत में ज्योतिष , तंत्र विज्ञान और न्यूमरोलोजी, अंधविश्वास आदि काल से फैला हुआ है. लोग इसमें अपना -अलग मत रखतें है. कुछ इसे धर्म से जोडने लगे

लेकिन मेरी नजर में हमारे देश की अनेकता में एकता की ताकत को जानने व दिखाने का अच्छा प्रयास है. मैं तो यही निवेदन करना चाहूंगी कि हमें जाति धर्म को भूलकर एकता से नागरिक धर्म निभाना चाहिए। हम जिस थाली में खाते है उसमें छेद करना हमारी नियत पर संदेह पैदा करता है. हम जिस देश के नागरिक हैं उसकी रक्षा करना हमारा धर्म है। अपनी सुरक्षा, अपनों की सुरक्षा ही देश की सुरक्षा है. हमें पहले मानव धर्म निभाना है और कोरोना को हराना है।
शशि पुरवार



समीक्षा -- है न -

  शशि पुरवार  Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा  है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह  जिसमें प्रेम के विविध रं...

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