मनुष्य व प्रकृति को बचाने के लिए चिंतन करना आज जीवन की महत्वपूर्ण वजह बन गई है. अपराधी सिर्फ वह लोग नहीं हैं जो खूंखार कृत्यों को अंजाम देते हैं अपितु प्रकृति के अपराधी आप और हम भी हैं, जो प्रकृति पर किए गए अन्याय में जाने -अनजाने सहभागी बने हैं.
मौसम
के बदलते मिजाज प्रकृति के जीवन
चक्र में हस्तक्षेप करने का
नतीजा है.
21 दिन
के लाक डाउन के बाद भी कोरोना
के बढ़ते कदम विनाश की तरफ जा
सकते हैं, जिसे
रोकना बेहद जरूरी है.
मानव ने चाँद पर कदम रखकर फतेह
हासिल की व आज भी अन्य
ग्रहों पर जाकर फतेह करने का
जज्बा कायम है . लेकिन क्या
प्रकृति पर काबू पाया जा सकता
है ? प्रकृति जितनी
सुंदर है वहीं उसे बंजर बनाने
में मानव का बहुत बडा हाथ
है. धरती
को रासायनिक उर्वरों व संसाधनों
द्वारा बंजर व शुष्क बनाकर
मानव, आग
में घी डालने का काम कर रहा
है. क्योंकि प्रकृति जहरीली
गैसों से भरा बवंडर भी है. हम मानव
निर्मित संसाधनों द्वारा
प्रकृति से खिलवाड़ करके अपनी
ही सांसों को रोकने का प्रबंध
कर रहे हैं. आज हम विश्व
स्तर पर प्रकृति से युद्ध
लड़ रहें हैं. जिसमें उसका
हथियार एक अदृश्य
सूक्ष्म जीव है . जिसने
अाज जगत में कहर
मचा रखा है. प्रकृति
ने समय-समय
पर अपनी ताकत का एहसास मनुष्य
जाति को कराया है. लेकिन
मानव फिर भी नहीं सँभला . विकास
को विनाश में परिवर्तित करने
वाली स्मृतियां इतिहास में
आज भी सुरक्षित हैं.
हम सबने प्रकृति
का विध्वंस स्वरूप भी देखा
है. कटते
वन, पर्यावरण
प्रदूषण, रासायनिक
संसाधनों का दुरुपयोग, प्लासटिक, कचरा ...इत्यादि
के कारण बदलते मानसून, भूकंप, बादल
फटना, महामारी, सूख, प्रलय ...अादि प्रकृति
के जीवन चक्र में हस्तक्षेप
करने का दुष्परिणाम है. पहले
भी कई महामारी आई, धरा
का संतुलन बिगडा, उसके
बाद जीवन को पुन: पटरी
पर लाने के लिए बहुत जद्दोजहद
करनी पडी है. हम
सबने सुना है कि
जब जब धरती पर बोझ बढता है
वह विस्फोट करती है. प्रकृति
अपने अस्तित्व को बचाने के
लिए मूक वार करके अपना
विरोध जाहिर कर देती है . लेकिन
दंभ में डूबा यह मानव मन कहाँ
कुछ समझना चाहता है?
मानव
की मृगतृष्णा,अंहकार
की पिपासा के कारण ही संपूर्ण
विश्व पर संकट मंडरा रहा
है . कुछ
देशों द्वारा स्वयं को शक्तिशाली
घोषित करने के लिए किसी भी हद
तक जाना शर्मनाक कृत्य है. इन विषम
परिस्थिति में सीमा पर गोलीबारी
होना , सीजफायर
तोड़ना, किसी आतंकवादी
होने से कम नहीं है .यह उनके कुंसगत मन का
घोतक है. क्या
एेसे तत्व मानवता के प्रतीक
हैं ? चीन
द्वारा जैविक हथियार बनाना
उसी की दूषित करनी का फल
है. यह
कैसी लालसा है जिसमें उसने
करोडो जीवन दांव पर लगा दिये. उसकी
लोभ पिपासा महामारी बनकर जीवन
को लील रही है. जिसका
खामियाजा संपूर्ण विश्व भुगत
रहा है. मानव
जाति का अस्तित्व खतरेें में
है .स्वयं
को शक्तिशाली घोषित करने के
लिए विश्व की शक्तियां
किसी भी स्तर तक गिर सकती
है , जहां
से सिर्फ पतन ही होगा . लेकिन अभी इन
बातों से इतर जीवन को
बचाना महत्वपूर्ण है.
कोविड-19 के
कहर से संपूर्ण विश्व ग्रस्त
है . वैश्विक
संकट गहराता जा रहा है . तेजी
से बढ़ता संक्रमण
चिंता का विषय है, लेकिन
साथ में कुछ असामाजिक तत्वों
द्वारा अमानवीय व्यवहार
करना, हमारी
प्राचीन संस्कृति व सभ्यता
पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं.
यह
कैसी प्रगति है क्या हमारे
कदम आगे बढ़े हैं? या हमें
दो कदम पीछे जाकर चिंतन करने
की आवश्यकता है? क्या
मानवीय संवेदनाअों की मृत्यु
हो गई है? या
संवेदनाएं ठहरने लगी है. हिंसा
का यह दौर किस पृष्ठभूमि से
जन्मा है? किताबी
ज्ञान, साहित्य, समाज
व मनन चिंतन के अतिरिक्त
हमें अपनी प्राचीन सभ्यता और
संस्कृति के गलियारों में
घूमने की आवश्यकता है. पीडा
से ग्रस्त
जीवन घरों में कैद है, कहीं वह विकृति
को जन्म दे रहा है तो कहीं शारीरिक
व मानसिक हिंसा द्वारा जीवन
के मूल्यों का हृास हो
रहा है.
संकट
के इस दौर में असामाजिक तत्वों
द्वारा हिंसा के समाचार
मानवीय पतन
का परिचायक है. सेवा
कर्मचारी, डाक्टर, कुछ लोग, कई
संस्थाएं अपनी जान जोखिम में
डालकर निस्वार्थ भाव से सेवा
कर रहीं हैं . इनके
साथ दुर्व्यवहार करने की
खबरें मन को आहत करती
है. कोविड-19 को
हिंसा द्वारा नहीं संयम द्वारा
ही जीता जा सकता है आज इस संयम
की संपूर्ण विश्व में आवश्यकता
है.
जीवन
महत्वपूर्ण है, जान
है तो जहान है. मानव
ही मानव को बचाने का माध्यम बना
है . एक
दूसरे की मदद करना, सोशल
डिस्टसिंग एवं
स्वयं के संक्रमित होने
की सही जानकारी सरकार
को प्रदान करना जिससे एक
नहीं हजारों - लाखों जीवन को बचाया
जा सकता है. जिसमें
सामर्थ है वह मदद करें जिससे गरीबों
की परेशानियों का हल भी निकल
सकता है.कोरोना
की चैन
को तोड़ना आवश्यक है वरना यह
नरसंहार विश्व में तबाही का
बहुत बड़ा कारण बनेगा.
राज्य
सरकारी धीरे-धीरे
लॉक डाउन बढ़ा रही है . जीवन
को गति देने के लिए नियमों का
पालन करना बेहद जरूरी है किंतु
अभी मैं बहुत से लोग नियमों
का पालन नहीं कर रहे हैं, ऐसा
करके वह स्वयं की जिंदगी को
भी खतरे में डाल रहे हैं. शांत
रहें, नियमों
का पालन करते हुए काम
करें . असंयमित, अस्त
व्यस्त हुए जीवन को
आज संयम, चिंतन व अनुशासन
द्वारा ही बचाया जा सकता हैं. जिससे
हम सबी को कोरोना के भय से निजात
मिले.
शशि
पुरवार
सही चिन्तन
ReplyDeleteआज के समय की अहम जरूरत है आपकी यह प्रस्तुति । बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया।
ReplyDeleteमैंने, कतिपय कारणों से, अपना फेसबुक एकांउट डिलीट कर दिया है। अतः अब मेरी रचनाओं की सूचना, सिर्फ मेरे ब्लॉग
ReplyDeletepurushottamjeevankalash.blogspot.com
या मेरे WhatsApp/ Contact No.9507846018 के STATUS पर ही मिलेगी।
आप मेरे ब्लॉग पर आएं, मुझे खुशी होगी। स्वागत है आपका ।
आप सभी का दिल से आभार
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