Tuesday, August 15, 2017

नेता जी का भाषण





गाँव के नवोदित नेता ललिया प्रसाद अपनी जीत के जश्न में सराबोर कुर्सी का बहुत ही आनंद ले रहे थे। कभी सोचा न था सरकारी कुर्सी पर ऐसे बैठेंगे। पाँव पर पाँव धरे पचपन इंच सीना चौड़ा करके (छप्पन इंच कहने की हिम्मत कहाँ?), मुख पर ३२ इंच की जोशीली मुस्कान के साथ नेता जी कुर्सी में ऐसे धँसे हुए बैठे थे मानो उससे चिपक ही गए हों। साम दाम दंड भेद की नीति से कुर्सी मिल ही गयीभगवान् जाने फिर यह मौका मिले या न मिलेपूरा आनंद ले लो। कुर्सी मिलते ही चमचे बरसाती पानी जैसे जमा होने लगे। जैसे गुड़ पर मक्खी भिनभिनाती है वैसे ही हमारे नेताजी के चमचे जमा होकर भन भन कर रहे थे।

तभी नेताजी का खास चमचा रामखेलावन खबर लेकर आया कि १५ अगस्त पर उन्हें तहसील के प्रांगण में झंडा वंदन करना है। अब तो जोश जैसे और दुगना हो गयानेता जी दिन में जागते हुए स्वप्न देखने लगे। लोगों के हुजूमतालियों की गडगडाहट के बीच बड़े स्वाभिमान से झंडे की डोरी खींचकर झटपट झंडा लहरा दिया। तभी धडाम की आवाज के साथ नेता जी उछलकर कुर्सी से गिर पड़े। दिवास्वप्न टूट गयादेखा तो दरवाजे का पर्दा उनके ऊपर पड़ा था और वे जमीन की धूल चाट रहे थे। यह देख रामखेलावन समेत सारे चमचे जोर जोर से बत्तीसी दिखाने लगे। नेताजी खिसियानी बिल्ली की तरह बरामदे का खम्भा नोचने लगे और उनकी खतरनाक मुख मुद्रा देखकर सारे चमचे ऐसे गायब हुए जैसे गधे के सिर से सींग।
नेता जी बड़बड़ाने लगेहम पर हँसते होकभी खुद ई सब किये होते तो पता चलता रस्सी खेंचना का होवत है। भक भक... अब तुम काहे दाँत दिखा रहे होकछु काम के न काज केचले आये परेशान करने... अब झंडावंदन करे का है तो सफ़ेद झक्क कुरता पायजामा और टोपी ख़रीदे की हैका है कि अब फोटो सोटो भी लिया जायेगा।

रामखेलावन-वह तो ठीक है प्रभुस्टैज पर कछु बोलना पड़ेगा। अब भाषन का देना है। वह भी तो सोचिये...

नेताजीअर्ररर... जे हम तो भूल ही गए। सारी ख़ुशी ऐसी हवा हुई कि नेताजी का मुँह एकदम पिचके हुए आम की तरह पोपला हो गया। चौड़ा सीना ऐसे पिचका जैसे गुब्बारे में छेद हो गया। पेशानी पर गुजली मुजली सलवटें ऐसे आयीं कि चिंता के मारे खुद के बाल ही नोचने लगे।
यह सब देख चमचा भी उसी रंग में रँगने लगा। इधर नेताजी की चहल कदमी बढती जा रही थी । उधर राम खेलावन पीछे पीछे टहलता हुआ अपनी वफ़ादारी दिखा रहा था।

नेताजी अब का होगाहमरी इज्जत का मलीदा बन जायेगाअब का भाषण देंगेकभी सुने ही नहीं। सकूल में भी सिर्फ लड्डू खाने जाते थेतीसरी कक्षा के बाद पढ़ने गए ही नहीं। दिन रात गैया को चारा खिलाते रहेगौ माता की किरपा से नेता बन गए। हे ससुरे भाषण वाशन काहे रखत हैं। २ चार लड्डू देई दो खाना खिलवइ दो... हो गया झण्डावंदन... आगे के शब्द खुद ही चबा कर नेताजी खा गए।
यह सब देखकर रामखिलावन समझ गया कि नेताजी की हालत पतली हो रही हैवह हिम्मत बढ़ाते हुए बोला -इसमें चिंता की कोनो बात नहीं है भाषण देखकर पढ़ लियो। अभी समय है थोडा प्रक्टिस कर लो। हमें गाना भी आवत है अभी परोग्राम को समय हैहम सिखा देंगे।
नेता जी-हाँ वही वही परोग्राम। तुम कौन से काले कोट वाले होजो हमरे खातिर भासन लिखोगेजे सब पढ़े लिखे का काम होवत हैवैसे जे बताओ इसे और का कहत हैं। स्वतंत्र दिवस या गणतंत्र दिवस या इन दपेंदंस डे... कहते हुए बाल खुजलाने लगे। गाना वाना तो हमसे होगा नहींटीवी पर देखत रहेसबरे धुरंदर सलूट मार के खड़े रहत हैंकोई गाना वाना नहीं गावत हैजे काम तो सकूली बच्च्वन का है।
चमचाहाँ फिर कहे चिंता करत होबस भाषण याद कर लोतैयार हो जावेगा। हम सिखा देंगे। एक एक गिलास गरम दूध पियोहलक में गरमागरम उतरेगी तो ससुरी जबान खुल जावेगी।
नेता जीपर हमरी तो हालत ख़राब है। इतने लोगन के सामने भासन... भासन कइसन कहेंपर बोलना तो पड़ेगा ही... नहीं हम अपना दिमाग लगाते हैं... अब हम याद कर लेंगे... "नमस्कार गाँव वालों..."
रामखिलावनहे महाराज ऐसे शोले की तरह नहीं कहते। कहिये मेरे प्रिय भाइयों और बहनों...
नेताजी -चल बेवह सबरी तुमरी बहन होगी... आजकल वक्त बदल गयो है।
रामखेलावनओ महाराज भाई बहनों को प्रणामनहीं कहे का हैतो बोलो भाई बंधू...
इधर चमचा कागज कलम के साथ टुन्न हो गयाउधर नेताजी को भी दूध जलेबी चढ़ गयी। दिन में सितारे नजर आने लगे। जोश में होश खो बैठे। स्वप्न में खुद को मंच पर खड़ा हुआ पाया। अपार जन समूह देखकर मुस्कुराने लगे और जैसे ही लोगों के हुजूम ने जयजयकार कीतो हाथ हिलाते हुए माइक तक आ गए। मेज को मंच समझ कर जोश के साथ ऊपर चढ़कर खूब दिमाग लगाया और भाषण शुरू किया --
भाइयों... भाइयों... और सबकी लुगइयों... आज हमरा बहुत बड़ा दिन हैहमरा सपना सच हो गयो है। कबहूँ सोचे न थे नेता बन सकत हैं। हे गाँधी जी कृपा रहीपहले लोग देश की खातिर जान दिए रहेदेश को गुलामी से बचाये रहे। गाँधी जी के वचनों पर चले... बुरा मत देखोबुरा मत कहोबुरा मत सुनो। आज स्थिति बदल गयी हैलोग बुरा ही देखत हैंबुरा ही करत हैं और बुरा ही सोचते हैं। पहले हाथ जोड़कर सबके आगे खड़े रहत थे। बात बात पर लात घूँसे मिलत रहेपर अब समय बदल गयो हैदो चार लात घूँसे मारोथोड़ा गोटी इधर का उधर करोथोड़ा डराओ धमकाओपैसे खिलाओ तो चुनाव का टिकिट भी मिल जावत है। पहले पढ़े लिखे लोग नेता बनत रहेतब भी देश बँटता थाआज कम पढ़े लिखे लोग नेता बने हैंतब भी देश छोटे छोटे राज्यों में बँट गवा है। सबरी पार्टी अपनी सत्ता चाहत है। शांति के सन्देश पहले से देत रहे सो आज भी देत हैं।



आज हर किसी को नेता बने का हैकुर्सी है तो सब कुछ हैआज हर कोई कुर्सी चाहत है। सबहुँ मिलकर घोटाले करोजितने भी पैसा आवत है उसे आपस में मिल बाँट कर खाई लोदेश की जनता बड़ी भोली है। ईमानदार टैक्स देता रहेकिसान मरता रहे। आज जेहि स्थिति बनी हुई है। एक बार कुर्सी मिल गयी फिर सब अपनी जेब में रहत हैं। काहे के संत्री मंत्रीदेश को पहले अंगरेज लूटट रहेअब देश के लोग ही लूटन मा लगे हैं। हर तरफ भ्रष्टाचार फैला हुआ है। कुछ भी हो जाये कुर्सी नहीं छोड़ेंगेघोटाले करके जेल गए तो पत्नी या बच्चों को कुर्सी दिलवा देंगे। जे बच्चे वा खातिर ही पैदा किये हैं। कब काम आवेंगे। प्राण जाए पर कुर्सी ना जाएपहले देश को गुलामी से बचायाअब खुदही देश के तोड़न में लगे हैं। हर किसी की अपनी पार्टी हैसत्ता के खातिर हर कोई अपनी चाल चल रिया हैइसको मारोउसको पीटोदो चार लात घूसे चलाने वाले पहलवान साथ में राख लियोमजाल कोई कुछ करे। सारे साम दाम दंड भेद अपनाई लो पर अपनी जय जयकार कमतर नहीं होनी चाहिए।\


अब नेता बन गए तो देश विदेश घूम लोऐसन मौका कबहू न मिले। हम भी अब वही करहियें। अभी बहुत कुछ करे का है। बस फंड चाहिएजो काम करे का है सब काम के लिए फंडफंड में खूब पैसा मिलत हैथोडा बहुत काम करत है बाकी मिल बाँट कर खाई लेंगे। आखिर चोर चोर मौसेरे भाई भाई जो हैं ।
तुम सबरे गॉंव के लोगन ने हमें नेता चुना और हमेशा अइसन ही प्रेम बनाये रखना। आगे भी ऐसे ही हमें वोट डालना। तुम सब यहाँ आये हो हमें बहुत अच्छा लगालो झंडा वंदन कर दिए हैं । बच्चों ने गाना भी गा दिया। आज हम लाडू बहुत बनवाएं हैखूब जी भर के खाओ। हमें याद रखना। हर बार वोट देना फिर ऐसे ही गाड़ियों में भर के शहर घुमाने ले जायेंगे और खाना पैसा भी दिहें...

 
अभी जोर से बोलो जय भारत मैया की

शशि पुरवार 

Thursday, August 10, 2017

विकल हृदय


घुमड़ घुमड़ कर आये बदरा
मनभावन, बनी तसवीर.

घन घन घन, घनघोर घटाएँ
गाएँ मेघ - राग मल्हार
झूमे पादप, सर्द हवाएँ
खुशियों का करें इजहार।

चंचल बूँदों में भीगा, सुधियों  
से खेले मन - अबीर
घुमड़ घुमड़ कर आये बदरा ..!

अटे-पटे  से वृक्ष घनेरे
पात-पात  ढुलके पानी
दबी आग फिर लगी सुलगने
ज्यूँ  महकीं याद पुरानी  

शतदल के फूलों से गिरतें 
जल- कण, दिखतें हैं अधीर.
घुमड़ घुमड़ कर आये बदरा ..!

विकल ह्रदय से, प्रिय दिन बीता
याद तुम्हारी गरमाई
दादुर, झींगुर गान सुनाएँ
रात अँधेरी  गहराई.

मंद रौशनी में इक साया
गुने शब्द-शब्द तहरीर.
घुमड़ घुमड़ कर आये बदरा ..!
------- शशि पुरवार 
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Monday, July 31, 2017

नेह की संयोजना

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हम नदी के दो किनारे 
साथ चल कर मिल न पाएँ 
घेर लेती हैं हजारों 
अनछुई संवेदनाएँ। 

ज्वार सा हिय में उठा, जब 
शब्द उथले हो गए थे 
रेत पर उभरे हुए शब्द 
संग लहर के खो गए थे 

मैं किनारे पर खड़ी थी 
छेड़ती नटखट हवाएँ 
हम नदी के दो किनारे 
साथ चलकर मिल न पाएँ 

स्वप्न भी सोने न देते 
प्रश्न भी हैं कुछ अनुत्तर  
आँख में तिरता रहा जल 
पर नदी सी प्यास भीतर।

रास्ते कंटक बहुत हैं 
बाँचते पत्थर कथाएँ 
हम नदी के दो किनारे 
साथ चल कर मिल न पाएँ 

हिमशिखर, सागर, नदी सी 
नेह की संयोजना है 
देह गंधो से परे, मन, 
आत्मा को खोजना है.

बंद पलकों से झरी, उस   
हर गजल को गुनगुनाएँ 
हम नदी के दो किनारे 
साथ चल कर मिल न पाएँ 
    -- शशि पुरवार 

समीक्षा -- है न -

  शशि पुरवार  Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा  है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह  जिसमें प्रेम के विविध रं...

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