Monday, September 28, 2015

डिजिटल इंडिया



हमारे सपनों का शहर, हमारे सपनों का देश,  आज जैसे सारे स्वप्न साकार होने की ड्योढ़ी पर खड़े हैं. यह सोच कर ही सुखद प्रतीत होता है कि भारत को डिजिटल रूप देने के कयास और फिर प्रयास शुरू हो गयें हैं. प्रधानमंत्री योजना के अनुसार पेपर लेस कार्य करना कितना अच्छा होगा, देश में कागजों की रद्दी कम हो जाएगी। यहाँ वहां फ़ाइल के ढेर फिर नजर नहीं आयेंगे, हमारे इर्द गिर्द की दुनियाँ,  जादुई  दुनियाँ  बन जाएगी. सरकारी टेबलों पर एक कागज नहीं होगा, फाइलों के पीछे काम के बोझ का मारा बाबू भी नजर नहीं आयेगा. अप टू डेट सरकारी अफसर डिजिटल कार्य में आँखे गडाए नजर आयेंगे. इधर फॉर्म भरो उधर  दो  मिनिट में फॉर्म जमा हो जायेगा, दुनिया किसी फेंटेसी से कम नहीं होगी.   दो मिनिट वाली मैगी  तो आउट हो गयी है किन्तु  दो मिनिट वाला यह कार्य सिर चढ़ कर बोलेगा.

   योजना अति सुन्दर है, किन्तु करोड़ो की आबादी वाले देश में यह सपना सार्थक कैसे होगा, भारत का गॉँव  हो या शहर बिजली की असीम कृपा बनी रहती है.  तीन चार  घंटे की लोड शेडिंग कम नहीं होती है, कभी तेज बरसात हुई या तेज हवाएँ चली, सबसे पहले बिजली के  तार ही  टूटते हैं.  सिर्फ मेट्रो शहर को छोड़ दीजिये बाकी देश का कमोवेश यही हाल चाल है. हाय हाय के नारे लगाने के बाद भी बिजली की समस्या कायम हैं, उस पर डिजिटल कार्य, अब ईश्वर ही जाने, कैसे संभव होगा, बढती आबादी, कम सुविधायें, हमारे देश में रेंग रेंग कर आगे बढ़ने की प्रवृति आज भी कायम है. अजी बिजली छोडिये, गॉँव  में शोचालय भी नहीं है, करीब  पिचयान्वे  करोड़ की आबादी वाले देश में मोबाइल उपभोक्ता करीब इक्कीस  करोड़ के आस पास हैं, आज जनता मोबाइल नेट वर्क के नाम से परेशान है, गॉँव  में चले जाओ तो नेटवर्क मिलना दूभर हो जाता है पर  बेचारे मोबाइल धारक की भाग दौड़ उसे वजन घटाने में जरुर सहायक होती है, भले नेटवर्क नहीं मिला किन्तु  कुछ वजन तो कम हुआ. पहले लोग घर की चार दीवारी में बैठकर दूरभाष से वार्ता किया करते थे और आज छोटा सा मोबाइल हाथों में लेकर, घर क्या सड़कों पर भी जोर जोर से बोलते नजर आ जातें है, कभी कभी समझ ही नहीं आता कि सामने वाला कानों में स्पीकर लगाकर बात कर रहा है या पागल है, जो अकेले अकेले  बड़बड़ाते  हुए चल रहा है. सामने वाले तक भले ही बात न पहुँची हो किन्तु अडोस पड़ोस की चलती फिरती काया व दीवारें  जरुर सब सुन लेती हैं. फेसबुक और ट्विटर पर न बैठ पाने के दुःख में कई लोगों की सांसे जैसे रुक जाती है, लोग पूनम के चाँद की तरह नेटवर्क के जुड़ने के लिए साँसे रोककर  उसके तार जुड़ने की राह देखतें है, जैसे बिना नेटवर्क के उनका  खाना- पीना बहाल हो गया था, ऐसे में डिजिटल तकनीक कैसे कार्य करेगी हमारे छोटे से दिमाग में जैसे दही जमना प्रारंभ हो गया है.

       पेपर लेस वर्क की बातें करने के साथ ही सरकारी मजमों को फरमान सुनाया गया कि अब से सारा कार्य कंप्यूटर पर होगा, अब सरकारी नौकरशाही का आदेश तो सरकारी दफ्तरों  में लागू होना लाजमी था, एक किस्सा याद आ रहा है, कचहरी में  भी क़ानूनी दस्तावेज कंप्यूटर की निधि बन चुके हैं, एक महत्वपूर्ण केस पर जज साहब फैसला सुना रहे थे, जजमेंट कंप्यूटर पर अपनी तेज गति के साथ टाइप किया जा रहा था कि अचानक बिजली विभाग की मेहरबानी हुई और बत्ती गुल, अजी गुल हुई तो हुई, सारा जजमेंट भी गायब हो गया, हमारे यहाँ तकनिकी सामान की कोई गारंटी नहीं होती है और ऊपर से सरकारी,सामान, तौबा तौबा... अब जज साहब को काटो तो खून नहीं, एक तरफ कार्य की भरमार, दूसरी तरफ तकनीकी  मार, अगर कमोवेश यही हाल रहा तो काहे का डिजिटल इंडिया, डिजिट ही गायब हो जायेंगे.  
   
               वक़्त की बर्बादी  से देश तरक्की करेगा या पिछ्डेगा यह तो वक़्त की बताएगा।  देश में स्पेक्ट्रम की भी कमी है, बेरोजगारी भी है, जो लोग अंतरजाल और डिजिटल तकनीक से दूर हैं उन्हें कैसे जोड़ेंगे,  भारत आधी से ज्यादा आबादी पीली रेखा के नीचे आती है, जहाँ दो जून खाना सुलभ नहीं है वहां यह तकनीक कैसे कार्य करेगी, डिजिटल तकनीक के माध्यम से चोरी, कालाबाजारी बढ़ने की सम्भावना है, गरीब तबका बैंक में अपना पैसा जमा कराता है, जब सभी कार्य डिजिटल होंगे तो बैंक में भी शुरू ओ जायेगा. हाल ही में एक वायका हुआ, एटीएम से पैसा निकालना सभी को नहीं आता है, गॉंव के एक व्यक्ति ने एटीएम से पैसा निकालने में वहीँ के गार्ड्स से मदद ली, हर बार उसी की सहायता से पैसा निकालता था, बाद में उसी गार्ड ने उसका एटीएम खाली कर दिया, जिन लोगों के पास नेट या डिजिटल सुविधाएँ नहीं है उन्हें दूसरों को पैसा देकर यह कार्य करवाना पड़ता है. हमारे यहाँ कम उपभोक्ता नेट का इस्तेमाल करतें है जो उपभोक्त्ता  नेट उपयोग करतें है वह स्पीड की समस्या से ग्रस्त हैं. परेशानियां काल के मुँह की तरह मुह बाये खड़ी है, निदान क्या होगा  यह नीति तय करेगी।  पूरे भारत को पहले साक्षर होना  आवश्यक है , तीसरी दुनियां की तरह धनवान भी होना जरुरी है, घर के पैसे को घर में रखना और तरक्की करना किसी बनिया से सीखा जाये तो सफलता के पैमाने बढ़  जायेंगे। खैर हम अड़ंगा नहीं लगा रहे है , डिजिटल इंडिया बन गया तो आधी समस्या कम हो जाये यही कामना हृदय में है 
   जय भारत। --  
 शशि पुरवार 

10 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (29-09-2015) को "डिजिटल इंडिया की दीवानगी मुबारक" (चर्चा अंक-2113) (चर्चा अंक-2109) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, युवाओं की धार को मिले विचारों की सान - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    ReplyDelete
  3. कभी न कभी तो कुछ बदलाव आएगा.

    ReplyDelete
    Replies
    1. बदलाव की उम्मीद सदैव प्रज्वलित होनी चाहिए

      Delete
  4. सुंदर सार्थक और सामयिक आलेख बधाई शशि जी आपको

    ReplyDelete
  5. बस आदमी डिजिटल होना बाकी है । सुंदर आलेख ।

    ReplyDelete

आपकी प्रतिक्रिया हमारे लिए अनमोल है। हमें अपने विचारों से अवगत कराएं। सविनय निवेदन है --शशि पुरवार

आपके ब्लॉग तक आने के लिए कृपया अपने ब्लॉग का लिंक भी साथ में पोस्ट करें
.



समीक्षा -- है न -

  शशि पुरवार  Shashipurwar@gmail.com समीक्षा है न - मुकेश कुमार सिन्हा  है ना “ मुकेश कुमार सिन्हा का काव्य संग्रह  जिसमें प्रेम के विविध रं...

https://sapne-shashi.blogspot.com/

linkwith

http://sapne-shashi.blogspot.com