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रंगीन मिजाज
अनिरुद्ध एक सॉफ्टवेयर इंजीनयर था। वह अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ हंसी ख़ुशी जीवन कर रहा था। वह अक्सर काम के सिलसिले में शहर से बाहर जाता था . इस बार जब वह वापिस आया तो देखा उसकी नेहा की तबियत ठीक नहीं है। बुखार बार बार आ रहा था व वह थोड़ी कमजोर दिख रही थी . अनिरुद्ध चिंतित हो गया और उसने नेहा से पूछा --
"नेहा क्या हुआ, डाक्टर को दिखाया ...?"
" कुछ नहीं, ठीक हूँ , बुखार के कारण कमजोरी आ गयी है , आजकल वायरल भी बहुत फैला है "
" हाँ यह तो है , परन्तु अपना ध्यान रखो ....... "
इधर आजकल कुछ दिनों से बेटे की तबियत भी बिगड़ने लगी। चेहरे और शरीर पर दाने निकलने लगे और बुखार भी बार बार आ रहा था। उधर निशा का स्वास्थ भी धीरे -धीरे बिगड़ता जा रहा था। एक दिन तो वह काम करते करते गिर गयी, अनिरुद्ध दोनों को अस्पताल लेकर गया तो वहां नेहा एवं बेटे को एडमिट कर लिया गया, दवाईयां असर नहीं कर रही थी। फिर उनकी सभी प्रकार की जांच शुरू हो गयी. शाम को डाक्टर ने अनिरुद्ध से कहा कि --
" आप धीरज रखें , आपको अपनी पत्नी को भी हिम्मत देना है। और एक बार आप अपना व अपनी बेटी का ब्लड टेस्ट करवा लें। "
" क्यों डाक्टर ! मेरी नेहा को क्या हुआ है और हम सभी की जाँच क्या कोई चिंता की बात है ?" अनिरुद्ध की आवाज में चिंता झलक रही थी।
" मै एतिहात के तौर पर सभी की एच . आई वी टेस्ट करवा रहा हूँ, आपकी पत्नी और बेटे की रिपोर्ट पॉजिटिव आई है और hiv संक्रमण आखिरी स्टेज पर पहुँच चुका है "
" यह सुनते ही अनिरुद्ध जड़ हो गया, उसके मन मस्तिष्क ने जैसे काम करना ही बंद कर दिया हो !"
परिवार के सभी सदस्य की जांच हुई तो पता चला कि सभी इस बीमारी से ग्रसित है, वह ग्लानी से भर गया कि उसके रंगीन मिजाज स्वाभाव व असंयम के कारण आज पूरा परिवार काल के द्वार पर खड़ा था। नेहा की निगाहे उससे खामोश सवाल कर रही थी, जिससे वह नजर उठाने में असमर्थ था। शादी से पहले से ही उसने इन रंगीन गलियों की आदत जो डाल रखी थी।
-----शशि पुरवार .
२ असावधानी
सुलोचना स्वयं को होशियार समझती थी. वह हमेशा पैसे बचाने के चक्कर में रहती थी. एक बार उसकी तबीयत नासाज थी. वह पास में ही डाक्टर को दिखाने गई. डाक्टर ने उसे दवा दी और इंजेक्शन लेने के लिए कहा। साधारण दवाखाना था किन्तु बहुत चलता था। वह कम्पाउंडर के पास इंजेक्शन के लिए गयी तो देखा वहां बहुत से लोग लाइन में बैठे है। कम्पाउंडर सभी को एक एक करके इंजेक्शन लगा रहा था. वहां एक बर्तन में गर्म पानी रखा था, हर बार सुई लगाने के बाद उसमे डाल देता और दूसरी को निकालकर लोगों को इंजेक्शन लगाता .सुलोचना ने सोचा गर्म पानी में सभी कीटाणु मर जाते है तो नयी डिस्पोजेबल सुई में के लिए फालतू में पैसे खर्च क्यों करूँ।
जब सुलोचना की बारी आई तो कम्पाउंडर ने कहा --
" आपका परचा ?"
" हाँ यह लीजिये। यह इंजेक्शन लगाना है "
" ठीक है "
फिर वह गर्वित भाव से यह सोचते सोचते घर आ गयी कि - "डिस्पोजल के पैसे तो बचे।कुछ नहीं होता है, आजकल मेडिकल वालों ने भी लोगों को ठगने का धंधा बना लिया है. पहले भी तो लोग ऐसा करते थे। "
बीमारी तो ठीक हो गयी, परन्तु जो हुआ उसकी कल्पना से परे था। 2-3 महीने बाद जब सुलोचना थकी थकी सी रहने लगी तो घर वालो को चिंता हुई,
बाद में सभी जांच हुई तो पता चला कि खून संक्रमित हो गया है. एच . आई .वी . के कीटाणु खून में पाए गए। यह जानकर सभी सदमे में आ गए.
सुलोचना ने विचलित होकर डाक्टर ने कहा --यह कैसे संभव हो सकता है।
" आप चिंता मत करो शुरुआत है, आपका इलाज हो सकता है "
" पर डाक्टर यह कैसे हो गया। हम कितनी सावधानी बरतते है "
" यह संक्रमण का रोग है, किसी भी असावधानी से यह रोग हो सकता है , इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति का संक्रमित खून दिये जाने पर या संक्रमित व्यक्ति को लगाईं हुई सुई का उपयोग करने पर भी यह बीमारी हो जाती है। अनेक ऐसी सावधानियां हमें बरतनी चाहिए। कभी भी डिस्पोजेबल सुई का उपयोग करें , हर बात की बारीकी से बाजार रखें। आप ध्यान कीजिये ऐसा कुछ आपके साथ घटित हुआ है क्या ? "
डाक्टर की बातें सुनकर सुलोचना को अपनी गलती का अहसास हो गया, थोड़ी सी बचत करने के चक्कर में उसने अपनी ही जान जोखिम में डाल दी। बुरा वक़्त कभी भी कह कर नहीं आता , स्वयं सावधानी लेना आवश्यक है .
-----शशि पुरवार
आँखें खोलती हुई कहानी है शशि....
ReplyDeleteजागरूकता बहुत ज़रूरी हैं....
आभार इस लेखन के लिए..
सस्नेह
अनु
BAHUT ACCHI KAHANIYAAN HAIN. MAIN BHI LAGHU KATHAYEN LIKHATA HOON. KRIPAYA PADH KAR RAI DEIN.
ReplyDeletehttp://www.blogger.com/blogger.g?blogID=6802523079696122177#allposts
uff.!! marmik..Word Aids Day pe saarthak pahal..
ReplyDeletebehtareen!!
God Bless Shashi!!
behatreen kahaniyaan...
ReplyDeletewww.pranshuprashu.blogspot.com
http://www.blogger.com/blogger.g?blogID=6802523079696122177#overview/src=dashboard
ReplyDeleteसार्थक लघु कथाएँ ....जागरूकता बहुत आवश्यक है ...!!
ReplyDeleteअच्छी लघुकथा |
ReplyDeleteजागरूक करती हुई दोनों लघुकथाएं ...
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक और संदेशपरक लघुकथाएँ हैं
ReplyDeleteशशि जी बधाई
अच्छी प्रेरक लघुकथा,,,,
ReplyDeleterecent post: बात न करो,
ज्ञानवर्धक ...सादर
ReplyDeleteदोनों ही कहानियाँ, सीख देती हुयी।
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 06-12 -2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete....
सफ़ेद चादर ..... डर मत मन ... आज की नयी पुरानी हलचल में ....संगीता स्वरूप
. .
जागरूक करती लघुकथा
ReplyDeleteअरुन शर्मा
www.arunsblog.in
मर्म स्पर्शी लघु कथा।
ReplyDeleteसादर
Bahut sunder "Laghukatha" BADHAI...
ReplyDeleteबहुत अच्छी लघुकथाएँ हैं शशि, शिक्षाप्रद और भाव पूर्ण। बधाई आपको।
ReplyDeleteगंभीर मुद्दे की तरफ खींचती सार्थक कहानी !!!
ReplyDeleteबढिया
ReplyDeleteबहुत बढिया
दोनों कहानियाँ बेहद भावपूर्ण और शिक्षाप्रद हैं.
ReplyDeleteप्रेरक कथाएं..
ReplyDeleteवाह जी दोनों बढ़िया हैं
ReplyDeleteसोचने को विवश करती कथाएं।
ReplyDeleteजागरूक करती कथाएँ ......
ReplyDeleteशशि जी
दोनों लघुकथाओं में आपने बहुत कुछ कहने का प्रयास किया है
सावधान करती लघुकथाओं के लिए बधाई !
शुभकामनाओं सहित…
कहानिउओं के माध्यम से गहरी बात समझा दी आपने ...
ReplyDeleteसावधानी की जरूरत है ...
dono laghu kahaniya gambhir artho me lipti huyee ek hakiki dastavej hai aur aaj ke paridrishy ki bolti juban,bahut hi sundar prastuti
ReplyDeleteशशि जी, लघुकथाएँ अच्छी लगीं. सर्थक, सोद्देश्य. बधाई.
ReplyDeleteआप ने न०१,न०२ दोनों में उपयोगी सन्देश दिया है। यदि पाठक समझ जायें तो निश्चित उन के लाभकारी होगा।
ReplyDeleteआभार इस लेखन का,
विन्नी