shashi purwar writer

Thursday, February 14, 2013

स्नेह बंधन



1 स्नेहिल रिश्ता
ममता का बिछोना
माँ का शिशु से .
2
स्नेह  बंधन
फूलो से महकते
हरसिंगार
3
झलकता है
नजरो से पैमाना
वात्सल्य भरा
4
दिल की बातें
दिल ही तो जाने है
शब्दों से परे .
5
प्रेम कलश 
समर्पण से भरा 
अमर भाव   .
6
खामोश शब्द
नयन करे बातें
नाजुक डोर  .
7
अनुभूति है
प्रेममई संसार
अभिव्यक्ति की .
8
 बंद पन्नो में
ह्रदय के जज्बात
सूखते फूल .
9
दिल की पीर
बहती नयनो से
हुई विदाई .
10
जन्मो जन्मो का
सात फेरो के संग
अटूट नाता .
11
आग का स्त्रोत
विरह का सागर
प्रेम अगन .
12
खामोश साथ
अवनि - अम्बर का
प्रेम मिलन .
----------शशि पुरवार 

Monday, February 11, 2013

सीली सी यादें .....!



सुलग रहे थे ख्वाब
वक़्त की
दहलीज पर
और
लम्हा लम्हा
बीत रहा था पल
काले धुएं के
बादल में।
सीली सी यादें
नदी बन बह गयी ,
छोड़ गयी
दरख्तों को
राह में
निपट अकेला।
फिर
कभी तो चलेगी
पुरवाई
बजेगा
निर्झर संगीत
इसी चाहत में
बीत जाती है सदियाँ
और
रह जाते है निशान
अतीत के पन्नो में।
क्यूँ
सिमटे हुए पल
मचलते है
जीवंत होने की
चाह में।
न कोई  ठोर
न ठिकाना 

न तारतम्य
आने वाले कल से।
फिर भी
दबी है चिंगारी
बुझी हुई राख में।
अंततः
बदल जाते है
आवरण,
पर

नहीं बदलते
कर्मठ ख्वाब,
कभी तो होगा
जीर्ण युग का अंत
और एक
नया आगाज।
------ शशि पुरवार 





“जब मूर्खता को मिला मंच : महामूर्ख सम्मेलन का व्यंग्य”

आज महामूर्ख सम्मलेन अपनी पराकाष्ठा पर था।  सम्मलेन में  मौजूद मूर्खो  की संख्या देखकर हम सम्मेलन के मुरीद हो गए. हमें  एहसास हुआ कि हम  मूर्...

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