आजकल व्यंग विधा
अच्छा खासी प्रचलित हो गयी है. व्यंगकारों ने अपने व्यंग का ऐसा रायता फैलाया
है, कि बड़े बड़े व्यंगकार हक्के बक्के रह गए, अचानक इतने सारे व्यंगकारों का जन्म
कैसे हुआ, आपके इस रहस्य की गुत्थी हम सुलझाते है, इसका जन्मदाता फेसबुक है. जिसने
अनगिनत व्यंगकारों को अपनी गोदी में खिलाया, लिखना पढना सिखाया और उन्हें आसमान पर
बीठा दिया.अजी भेड़ चाल सब जगह कायम है तो फेसबुक पीछे कैसे रह सकता है.
यहाँ भी
हमारे देखते देखते नए व्यंगकारों की अच्छी खासी जमात खड़ी हो गयी है. जिसे देखों
मुर्गे की एक टांग लिए हर किसी की चिकोटी काट रहा है, कोई कविता को लेकर फिरके कस
रहा है कोई किसी के फैशन की धज्जियाँ उड़ा
है. कोई महिलाओं की तस्वीरें देखकर गिरा पड़ा हुआ है तो कोई पुरुष अपनी हर
अदा दिखाने के लिए रोज तस्वीरें ऐसे बदलतें हैं जैसे विश्व सुंदरी अपने अलग अलग पोज
दुनियाँ को दिखाना चाहती है, हमारे यहाँ
के चम्मच मोटे थुलथुले शरीर में भी सौन्दर्य की सुंदरी वाली परिकाष्ठा अपनी बैचेन
नजरों से देखतें हैं. ऐसे फीता काटने वालों की कोई कमी नहीं है.
हाल ही मै भारत
वर्ल्ड कप में हार गया तो सारा ठीकरा अनुष्का शर्मा के सर पर फोड़ा गया, आखिर यह
गुत्थी सुलझी ही नहीं कि बालकनी में बैठी हुई अनुष्का मैच कैसे हरा सकती है या फिर
हमारे क्रिकेटरों का ध्यान मैच से ज्यादा विराट कोहली और अनुष्का शर्मा पर लगा हुआ
था. वैसे भी जनता यदि इंसान को भगवान
बनाएगी तो यही हाल होगा. एक किस्सा और जहन में ध्यान आ रहा है, कुछ पुरुष ऐसे भी
है जिनकी उम्र अपने अंतिम पड़ाव पर है और
वह नजरें सेकने से लेकर महिलाओं पर
कुदृष्टि डालने से बाज नहीं आतें हैं, नाम नहीं लेना चाहूंगी, बुजुर्ग हस्तियाँ इस
तरह के कार्य करके युवा पीडी को क्या सन्देश दे रहीं है, जहाँ भरोसा कायम होना
चाहिए वहां ऐसी बचकानी हरकतें , आखिर पूजने वाला उन्हें क्या दर्जा प्रदान करेगा.
ऐसी हरकतों पर धज्जिया उडाना कोई हमारे कुएँ के मेढकों से सीखे.
यही हाल कमोवेश
लगभग फेसबुक पर भी मौजूद है. घर से दुनीया को जोड़ने वाली खिड़की पर सभी की नजर है,
यहाँ भी रायता फ़ैलाने वालों की कमी नहीं है. कौन किससे चोंच लड़ा रहा है, कौन किसका
अच्छा मित्र शुभचिंतक है, खोजी नजरें अपना कार्य करके आग लगाने का कार्य बखूबी
पूर्ण शिद्दत से निभातीं है, आखिर व्यंग और कटाक्ष में हमारे जैसा सिस्टम मिलना
मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हैं.
एक दिन ऐसे ही अचानक हमारे जादुई बक्से की खिड़की
खुली और सन्देश मिला क्या बात है आप बहुत बहुत सुन्दर हैं, हर तरफ छाई हुई हैं,
जहाँ देखिये छप रहीं है. आखिर इन जनाब का हाजमा किस बात से बिगड़ा, कुछ समझ नहीं
आया, ऐसे लोगों को कोई क्या जबाब दे सकता है. एक और हमारे भलेमानस शुभचिंतक है, जो कहते है
सतर्क रहो आगे बढ़ाने वाले ही आपको पटकनी देंगे, कुछ प्यारे सखा सहेली आगे बढ़ने से
इतना नाराज हो गए कि कमतर दिखाने का कार्य पूर्ण शिद्दत से करने लगे और व्यंग के
सारे रंग हमें लगाने लगे, उन्हें यह समझ ही नहीं आया इससे उनकी ही कलई खुली है
हम तो वहीँ अपनी कछुए वाली निति चले जा रहें हैं. क्यूंकि हमें तो रेस में कोई
रूचि ही नहीं है .
आजकल मानसून के बदमिजाज मौसम की तरह व्यंग बारिश कहीं भी शुरू
हो जाती है. व्यंग विधा में आये नए नए कई रचनाकारों ने बड़े बड़े रचनाकारों के कान
काटना शुरू कर दियें हैं. हरिशंकर परसाई जी के व्यंग नए कदमों को अपनी सिद्धहस्त
कला का ज्ञान प्रदान करतें हैं. किन्तु अचानक फेसबुकी स्टार बने हुए व्यंकारों ने
अपनी स्वयं की विधा को ईजाद कर लिया है, स्वयं को नामचीन व्यंगकार कहने वाले
फेसबूकी व्यंगकारों ने हर किसी को अपने लपेटे में लेना प्रारंभ कर दिया है. वे
वहां सर्वप्रथम संपादक को ढूंढते हैं , उनसे मित्रता बढ़ाते हैं और बार बार निवेदन
करके मित्रता की खातिर खुद को स्थापित करने का प्रयास करतें है, हाल ही में एक
किस्सा हुआ, हमने अभी अभी व्यंग विधा की गलियों में अपने पैर रखे, गाहे बगाहे
पाठकों ने स्वागत किया, तो जनाब सिखने के बहाने हमने अपनी कलम घिसना प्रारंभ कर दी.
हमारे प्रिय संपादकों को लेखन पसंद आया तो उन्होंने हमारी कलम को एक कुर्सी प्रदान
कर सम्मान से नवाज दिया, खैर हमने स्वयं को विधार्थी मान कर कुर्सी को गुरु बनाना
उचित समझा, किन्तु यह क्या फेसबुक के कई नए व्यंगकारों की नजर हमारी कुर्सी पर पड़ी
और उन्होंने चाट में चुपचाप मक्खन लगाना प्रारंभ कर दिया, हमारी रचना को भी छपवा
दीजिये, आप हमारी मित्र है, आपका बहुत नाम है ...आपको हर कोई छापता है वैगेरह वैगेरह ... मित्रता की खातिर हमने
उन्हें संपादकों के संपर्क की जानकारी प्रदान कर की, किन्तु वह सामग्री भेजने के
बाद भी प्रकाशित नहीं हुई . तो उन्ही नामचीन रचनाकारों के बीच हम अमित्र होने लगे
क्यूंकि हमारा यह दोष है कि उनकी रचना प्रकाशित नहीं हुई लो भाई नेकी भी की और कुएं
में धकलने की तैयारी भी हमारी ही की गयी है . हम तो यही कहंगे कर्म करते रहिये फल
की चिंता ना कीजिये . शुक्र है हमें कुर्सी का चस्का नहीं लगा और ना ही मक्खन की
डालियाँ हमें भगवान बना सकीं . हम तो वह पैदल है जो सिर्फचलना जानता है. बाकी के
दौंव पेंच खेलने के लिए अन्य लोग है तो यह कार्य उन्ही के जिम्मे छोड़तें हैं.
आसमान में चमक रहे फेसबूक के हर रंग का आनंद लेतें हैं .
------ शशि पुरवार
------ शशि पुरवार
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (06-05-2015) को बावरे लिखने से पहले कलम पत्थर पर घिसने चले जाते हैं; चर्चा मंच 1967 पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
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जोर का झटका धीरे से दे ही दिया1
ReplyDeletesahi hai :)
ReplyDeleteसुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
ReplyDeleteशुभकामनाएँ।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।