Friday, April 21, 2017

पॉँव जलते हैं हमारे "




शाख के पत्ते हरे कुछ
हो गए पीले किनारे
नित पिघलती धूप में,ये
पॉँव जलते हैं हमारे ।

मिट रहे इन जंगलों में
ठूँठ जैसी बस्तियाँ हैं
ईंट पत्थर और गारा
भेदती खामोशियाँ है

होंठ पपड़ाये  धरा के
और पंछी बेसहारे
नित पिघलती धूप में,ये
पॉँव जलते हैं हमारे ।


चमचमाती डामरों की
बिछ गयी चादर शहर में
लपलपाती सी हवा भी
मारती  सोंटे  पहर में

पेड़ बौने से घरों में,
धूप के ढूंढें सहारे
नित पिघलती धूप में,ये
पॉँव जलते हैं हमारे ।

गॉँव उजड़े, शहर रचते

महक सौंधी खो गयी है
पंछियों के गीत मधुरम
धार जैसे सो गयी है.

रेत से खिरने लगे है

आज तिनके भी हमारे
नित पिघलती धूप में,ये
 पॉँव जलते है हमारे

    ------ शशि पुरवार

पर्यावरण संरक्षण हेतु चयनित हुआ नवगीत।  पर्यावरण संगठन का आभार। 


11 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (23-04-2017) को
    "सूरज अनल बरसा रहा" (चर्चा अंक-2622)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  2. आज के युग में प्रकृति की विद्रूपता देख कर पाँव के साथ-साथ मन भी तो जलने लगता है |सुंदर रचना हेतु बधाई |
    पुष्पा मेहरा

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  3. बहुत सुन्दर

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  4. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 23 अप्रैल 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  5. प्रकृति का संतुलन सभी प्राणियों एवं पेड़ -पौथों से बना है ,सभी महत्वपूर्ण हैं। सुन्दर रचना ,आभार

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  6. आप सभी माननीय सुधीजनों का हृदय से आभार, आपने अपना अनमोल समय देकर हमें कृतार्ध किया , हृदय से आभार स्नेह बना रहें

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  7. पर्यावरण पर हमारी फैशनेबल सोच ने निर्मित कर दिया है आज का विकृत ,उबाऊ परिवेश। चिपको आंदोलन के बाद पर्यावरण जागरूकता की कोई पहल अब तक हमारा ध्यान आकृष्ट नहीं कर पाई है वजह है हमारा भौतिकता को ज़रूरत से ज़्यादा तरज़ीह देना।
    आपकी रचना में समाया दर्द और सन्देश पूरी स्पष्टता के साथ मुखर हो उठा है। बधाई।

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  8. पर्यावरण पर हमारी फैशनेबल सोच ने निर्मित कर दिया है आज का विकृत ,उबाऊ परिवेश। चिपको आंदोलन के बाद पर्यावरण जागरूकता की कोई पहल अब तक हमारा ध्यान आकृष्ट नहीं कर पाई है वजह है हमारा भौतिकता को ज़रूरत से ज़्यादा तरज़ीह देना।
    आपकी रचना में समाया दर्द और सन्देश पूरी स्पष्टता के साथ मुखर हो उठा है। बधाई।

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  9. मार्मिक विषय,,, अति उत्तम

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  10. इसीलिये जीवन की सहज-सरसता समाप्त होती जा रही है.

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आपकी प्रतिक्रिया हमारे लिए अनमोल है। हमें अपने विचारों से अवगत कराएं। सविनय निवेदन है --शशि पुरवार

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