व्यंग्य की घुड़दौड़
नया जमाना, छोड़े पुराना। जी हाँ नित नयी तलाश हमें एक मुकाम पर लेकर जा रही है। नयी ज़माने की हवा, जो आँधी की तरह आती है और बाढ़ बनकर सब कुछ बहाकर ले जाती है। नयी हवा में पुराना अस्तिव कुछ इस तरह बिखरता है जैसे मुट्ठी से फिसलती रेत। आज हर कलमकार को अपडेट रहने की आवश्यकता है। व्यंग्य विधा में रोजमर्रा की उबाऊ बातों को भी व्यंग्य के चटकीले चुटीले परिधान पहना कर प्रस्तुत किया जाता है। व्यंग्य हमारे जीवन में नमक है। जिसके बिना खाने का स्वाद अधूरा होता है। सदियों से प्रचलित व्यंग्य कहीं मीठी छुरी हैं तो कहीं तलवार। हम तो व्यंग्य के क्षेत्र में अपनी वाकपटुता के कारण आ गए थे। लेकिन जैसे - जैसे समय हाथों से फिसलने लगा, हमारे सामने नया रेगिस्तान खड़ा था। जिसकी अंतहीन धरती भ्रम का आभाष करा रही थी। नयी हवा की चौसड़ में हमारा क्या काम है। आजकल व्यंग्य लोगों के सर चढ़कर बोल रहा है। जिसे देखो व्यंगावतार लेकर प्रगट हो रहा है। हवा में व्यंग्य की तलवार बाजी शुरू है।
हम तो परसाई जी को पढ़ते ही रह गए। लेकिन नए बच्चों ने जैसे व्यंग्य के आसमान पर पतंगबाजी करनी शुरू कर दी है। हम भी उस पतंगबाजी के पेंच देखने का आनंद लेने लगे। लोग हमें भले ही उस्ताद कहें लेकिन हम सीखने हेतु तत्पर हैं।
इन्हीं विचारों के साथ नरेश बाबू , मित्र शर्मा जी के साथ गुफ्तगू कर रहे थे। लम्बे समय से व्यंग्य की राहों पर उम्र गुजर गयी। आज की नयी हवा को पढ़ना जरुरी था। इसीलिए नए ज़माने के स्कूल सोशल मीडिया पर, हम अपने लल्लन टॉप मोबाइल के साथ व्यंग्यकारों के नए अवतारों की गणना करने लगे।
सोशल मीडिया पर अवतरित अनगिनत व्यंग्यकारों को देखकर जैसे हमारेपसीने छूटने लगे। शनैः शनैः उनका व्यंग्य वाण हमें नश्तर चुभाने लगा।
शर्मा जी बोले - का हुआ नरेश बाबू ?
नरेश बाबू - कुछ नहीं शर्मा जी, जमाना तेजी से बदल गया। हम परसाई को पढ़ते रह गए, यहाँ कौन सा व्यंग्य लिखा जा रहा है ! जे तो कभी हमने सीखा ही नहीं। जलेबी और रबड़ी भी साथ में खाई है। यह कौन सी मिठाई बाजार में आयी है ?
शर्मा जी - जाने दो नरेश बाबू , हम पुरानी हड्डी हैं। आजकल भोजन नए - नए रूप में परोसा जाता है। अब नयी हवा को बहने दो। वह लीक से हटकर कुछ करती है। जे हमारी पकड़ के बाहर है।
नरेश बाबू - सही कहत हो यार शर्मा, मिठाई खाते खाते पता ही नहीं चला इसके अंदर खिचड़ी भरी है। चलो किसी हीरे तो ढूंढकर तरासा जाय। हमें भी अपनी विरासत नव पीढ़ी को देकर आगे बढ़ानी हैं।
नए चेहरे तलाशते हुए कई तस्वीरों पर नजर ठहर गयी। यह कल के शैतान बच्चे जो अशुद्ध भाषा में कवितायेँ लिखा करते थे आज के सफल व्यंग्यकार बन गए। कल तक जो मसखरी करते थे। आज आसमान का सितारा है। ऐसा कौन सा ज्ञान का सागर मिल गया है। जिसमे डुबकी लगाते ही लोग गगन चुम्बी के सितारे बन जाते हैं।
आभासी दुनिया का व्यंग्य परिसर ऐसा था जिसमे हर जगह व्यंग्य के झंडे फहरा रहे हैं। देश तो १५ अगस्त को आजाद हुआ। साहित्य जगत में सबको अपने विचारों को व्यक्त करने की आजादी है। गणेश जी चूहे की सवारी करते हैं। लेकिन चूहा भी कुतरने में माहिर होता है। हमारी तलाश ऐसे कई चूहों पर जाकर ख़त्म हुई। जिन्होंने शब्दों की कुतरन को अपने नामों के साथ फहरा रखा था। सोशल मीडिया में आजकल व्यंग्य के कीड़े फैले हुए हैं। जिसे देखो व्यंग्य का झंडा हाथों में लिए आजादी का जश्न मना रहा है। देश को आजाद हुए कई वर्ष बीत गए किन्तु जोड़ो और तोड़ो की नीति, अपने नए - नए अवतार में हमारे सामने अवतरित है। लोगों का व्यंग्य पढ़ते- पढ़ते आँखे बोझिल होने लगीं। व्यंग्य तो नहीं मिला लेकिन अलीबाबा और चालीस चोरों के नए अवतार के दर्शन पाकर धन्य हो गए।
चाय का कप हाथों से चिपक गया। मुँह का निवाला न गिटका गया न थूका गया। हर तरफ वाहवाही थी। इक दूजे को पछाड़ने की होड़ व्यंग्य की घुड़दौड़। ऐसी घुड़दौड़ जिसमे व्यंग्य धूल में नहाकर चारों खाने चित्त पड़ा हुआ था। मगरूरता हर जगह व्याप्त थी। ऐसे में अगर परसाई जी होते तो न जाने क्या करते।
चलो यार शर्मा जी, तनिक चाय पकोड़े खाने बाहर चले। हम पुरानी हड्डियों में वह बात कहाँ जो प्रदूषित हवा में साँस ले सके।
हाँ नरेश बाबू , जमाना वाकई बदल गया है। आज की यह घुड़दौड़ न जाने कहाँ जाकर ख़त्म होगी। व्यंग्य के घोड़ों को चिराग लेकर ढूँढना होगा। हरिओम!
शशि पुरवार
शशि पुरवार
जो गले न उतरे वही व्यंग्य है आज
ReplyDeleteबहुत सही
hardik dhnyavad
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (05-12-2017) को दरमाह दे दरबान को जितनी रकम होटल बड़ा; चर्चामंच 2808 पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'