तन इक मायाजाल है, जीवन का परिधान
मन सुन्दर अमृत कलशा,तन माटी प्रतिमान1
ढोंगी ने चोला पहन, खूब करे पाखंड
भगवा वस्त्रों को मिला, कलुषित मन का दंड2
सरपट दौड़ी रेलगाड़ी , छोड़ समय की डोर
मन ने भरी उड़ान फिर , शब्द हुए सिरमौर 3
कर्म ज्योति बनकर जले, फल का नहीं प्रसंग
राहों में मिलने लगे, सुरभित कोमल रंग4
मन में बैचेनी बढ़ी, साँस हुई हलकान
दिल भी बैठा जा रहा, फीकी सी मुस्कान5
मौलिकता खोने लगी , स्वार्थ हुआ आबाद
पत्थर दिल में ढूँढ़ते, प्रेम नगर अपवाद 6
दो पल की है जिंदगी, आगा पीछा छोड़
हँसकर जी ले तू जरा, मन के बंधन तोड़7
शशि पुरवार


