जीवन जैसे हॉलीवुड फिल्मों की तरह होने लगा
कोरोना से पहले व कोरोना के बाद का जीवन कुछ अलग रूख ले रहा है. लॉक होने के बाद से ही जिंदगी ने करवट बदलनी शुरू कर दी थी .एक तरफ कोरोना पहाड़ जैसा खड़ा है तो दूसरी तरफ घेरती प्राकृतिक आपदाएं , टिड्डिओं की मार, भय का आतंक या फिर बारिश अपने, तबाही के निशान छोड़ने पर आमादा है। उस पर पड़ोसी देशों के नापाक इरादे मानवता का मजाक उडा रहे हैं. विश्व महामारी लड़ रहा है वहीं इनके दिमाग का फितूर विस्फोट करने पर आतुर है। सब मिलकर जैसे दुनिया को तबाह करने में लगे हुए हैं .
दुनिया रहस्यमई लगने लगी है . जहां भी नजर घुमाओ हाहाकार मचा हुआ है . हॉलीवुड फिल्मों की तरह जीवन कीडे मकोडे सा रेंगता नजर आता है. हर तरफ चलता फिरता इंसान जैसे कोरोना नजर आता है. मौत स्वंाग रचकर कब आपके दरवाजे पर दस्तक दे, कब अपने आगोश में ले, पता नही चलेगा . खाने के सामान हो या सब्जीयां, हर वस्तु शक के दायरे में है. पहले शक जीवन को बर्बाद करता था. अब शक ही जीवन को अाबाद का जरिया बनेगा. हर सामान व इंसान कोरोना शक के घेरे में है. आज अपने ही घर में हवा भी शक के दायरे मे आ गयी है. हर सामान को हाथ लगाने से पहले उसे धोते रहो, जिदंगी पानी व साबुन के बीच सिमट गई है.
लॉक से लेकर अनलॉक तक जिंदगी हर कदम पर करवट बदल रही है व दिन पर दिन हालात बिगड रहे है. अाज बाजारों में दुकाने खुली है तो ग्राहक नदारद हैं . मॉल खुले हैं तो उनकी दुकानें बंद हैं . रोजमर्रा के सामान सब्जी मंडी , किराना व खाने की दुकाने जहाँ भीड़ उमड़ रही है पर सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जिया भी उड रही है . यह जगह कोरोना विस्फोटक सेंटर नजर आने लगा है .
किसान मजदूरों की तरह बाहर निकलकर टिड्डिओं को भगाने में लगे हैं. होटल खुले हैं लेकिन वहां के नजारे तो देखिए कि सोशल डिस्टेंसिंग , हाथ में ग्लोब्स व मुंह पर मास्क है जैसे हम किसी सर्जिकल कार्य के लिए जा रहे हो. तो कही ठेले पर एेसी भीड उमडी जैसे भूखे के सामने व्यंजन रख दिये हो. कोरोना हमें खाए या हम ही इसे खा ले.
मास्क जीवन बचाने की आज पहली जरुरत है। जगह जगह कोविड सेंटर तैयार की जा रहे हैं लेकिन बढता संक्रमण व बेड का हाउसफुल होना हमारी लचर व्यवस्था को उजागर कर रहा है।
अंदर की तस्वीर कुछ और ही बयां करती है. एक बार जो कोविड सेंटर के अंदर चला गया उसका बाहरी दुनिया से नाता ही टूट जाता है . बाहर क्या हो रहा है और अंदर क्या हो रहा है . रहस्य की तरह है. अंदर किसी बात की जानकारी नही मिलती. रोज लाशे दखने के बाद अस्पताल भी अभ्यस्त हो गये है. वे कम सुविधा में किसे बचायेगे, लाखों का पैसा भी जीवन बचाने में असफल है . जो सलामत बाहर आ गया वह जंग जीत गया .तालियां और फूल उसका स्वागत करते हैं , अगर नहीं तो बिना किसी क्रिया के सीधे शव गृह में जला दिया जाता है . मेरे करीबी मित्र के यहां कोरोना संक्रमण हुआ तो पूरा परिवार बिखर गया . परिवार में 4 लोग चारों कोरोंनटाइन हुये. एक दूसरे से मिलना तो दूर से बात तक नही हो सकी . एक – दूसरे की उन्हें कुछ खबर ही नहीं थी। कुछ दिनों बाद सूचना मिली कि एक सदस्य जीवन ही हार गया और उसके शव को अन्य रिश्तेदार को दूर से दिखाकर जला दिया . शेष अपने जीवन से लड रहे है.
अस्पतालों में सुविधआ की खस्ता हालत मरीजों की बढ़ती संख्या जिसे संभावना मुश्किल है। प्रतीत होता है कि अस्पताल उस गुफा के समान हो गए हैं जहाँ जाने के बाद अाप दुनिया से क्या जीवन से कट रहे है. वहाँ जाना ही कोरोना को साथ लाना है. कोरोना की बढ़ती रफ़्तार कोरोना का कम्युनिटी स्प्रेड है लेकिन सरकार मानने के लिए तैयार ही नहीं है . हमारी लचर व्यवस्था से लोगो की जान पर बन आयी है। सबने अपने हाथ खड़े किए हुए हैं . लेकिन राजनिति में नेता दल बदल करने में लगे है. चहुँ अोर मौत अपने स्वांग रचकर अा रही है. पिक्चर अभी बाकी है.
कोरोना फिल्म का दी एंड तो किसी को नहीं पता , लेकिन लोगों में जन्में मानसिक विकार व ऐसे समय भी सरहदों पर चल रही गर्मा गर्मी मानसिक विकृति का ताजा उदाहरण है . जहां संवेदनाएं पूर्णतः मर गई है. फिलीपींस जैसे देशों में भूख के कारण बदहाल होती जिंदगी को बचाने के लिए लोगों ने अपने बच्चों का उपयोग करना शुरू कर दिया . उनके पोर्न वीडियो बनाकर 1000 में बेचने लगे है। छोटे-छोटे बच्चों के साथ मानसिक और शारीरिक अत्याचार होने लगा है। भूख कहीं लोगो को आदिम ना बना दें. स्वार्थ की लालसा में आज जीवन नये चौराहे पर है. बहलाने के लिए बाते बहुत है, विकास के साधन बहुत है, लेकिन जमीनी हकीकत अपने निशान छोडने लगी है.
हाशिये पर खड़ी जिंदगी जैसे एक कोरोना विस्फोट के बाद तबाही की नयी तस्वीर लिखेगी . तबाही का मंजर आंखों के सामने होगा . लाशों में हम क्या व किसे ढूंढेगे बेहतर होगा जिंदगी को बचाने के तरीके ढूंढें. छोटी सी लापरवाही पल भर में जिंदगी की तस्वीर बदल सकती है।
शशि पुरवार .
कोरोना से पहले व कोरोना के बाद का जीवन कुछ अलग रूख ले रहा है. लॉक होने के बाद से ही जिंदगी ने करवट बदलनी शुरू कर दी थी .एक तरफ कोरोना पहाड़ जैसा खड़ा है तो दूसरी तरफ घेरती प्राकृतिक आपदाएं , टिड्डिओं की मार, भय का आतंक या फिर बारिश अपने, तबाही के निशान छोड़ने पर आमादा है। उस पर पड़ोसी देशों के नापाक इरादे मानवता का मजाक उडा रहे हैं. विश्व महामारी लड़ रहा है वहीं इनके दिमाग का फितूर विस्फोट करने पर आतुर है। सब मिलकर जैसे दुनिया को तबाह करने में लगे हुए हैं .
दुनिया रहस्यमई लगने लगी है . जहां भी नजर घुमाओ हाहाकार मचा हुआ है . हॉलीवुड फिल्मों की तरह जीवन कीडे मकोडे सा रेंगता नजर आता है. हर तरफ चलता फिरता इंसान जैसे कोरोना नजर आता है. मौत स्वंाग रचकर कब आपके दरवाजे पर दस्तक दे, कब अपने आगोश में ले, पता नही चलेगा . खाने के सामान हो या सब्जीयां, हर वस्तु शक के दायरे में है. पहले शक जीवन को बर्बाद करता था. अब शक ही जीवन को अाबाद का जरिया बनेगा. हर सामान व इंसान कोरोना शक के घेरे में है. आज अपने ही घर में हवा भी शक के दायरे मे आ गयी है. हर सामान को हाथ लगाने से पहले उसे धोते रहो, जिदंगी पानी व साबुन के बीच सिमट गई है.
लॉक से लेकर अनलॉक तक जिंदगी हर कदम पर करवट बदल रही है व दिन पर दिन हालात बिगड रहे है. अाज बाजारों में दुकाने खुली है तो ग्राहक नदारद हैं . मॉल खुले हैं तो उनकी दुकानें बंद हैं . रोजमर्रा के सामान सब्जी मंडी , किराना व खाने की दुकाने जहाँ भीड़ उमड़ रही है पर सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जिया भी उड रही है . यह जगह कोरोना विस्फोटक सेंटर नजर आने लगा है .
किसान मजदूरों की तरह बाहर निकलकर टिड्डिओं को भगाने में लगे हैं. होटल खुले हैं लेकिन वहां के नजारे तो देखिए कि सोशल डिस्टेंसिंग , हाथ में ग्लोब्स व मुंह पर मास्क है जैसे हम किसी सर्जिकल कार्य के लिए जा रहे हो. तो कही ठेले पर एेसी भीड उमडी जैसे भूखे के सामने व्यंजन रख दिये हो. कोरोना हमें खाए या हम ही इसे खा ले.
मास्क जीवन बचाने की आज पहली जरुरत है। जगह जगह कोविड सेंटर तैयार की जा रहे हैं लेकिन बढता संक्रमण व बेड का हाउसफुल होना हमारी लचर व्यवस्था को उजागर कर रहा है।
अंदर की तस्वीर कुछ और ही बयां करती है. एक बार जो कोविड सेंटर के अंदर चला गया उसका बाहरी दुनिया से नाता ही टूट जाता है . बाहर क्या हो रहा है और अंदर क्या हो रहा है . रहस्य की तरह है. अंदर किसी बात की जानकारी नही मिलती. रोज लाशे दखने के बाद अस्पताल भी अभ्यस्त हो गये है. वे कम सुविधा में किसे बचायेगे, लाखों का पैसा भी जीवन बचाने में असफल है . जो सलामत बाहर आ गया वह जंग जीत गया .तालियां और फूल उसका स्वागत करते हैं , अगर नहीं तो बिना किसी क्रिया के सीधे शव गृह में जला दिया जाता है . मेरे करीबी मित्र के यहां कोरोना संक्रमण हुआ तो पूरा परिवार बिखर गया . परिवार में 4 लोग चारों कोरोंनटाइन हुये. एक दूसरे से मिलना तो दूर से बात तक नही हो सकी . एक – दूसरे की उन्हें कुछ खबर ही नहीं थी। कुछ दिनों बाद सूचना मिली कि एक सदस्य जीवन ही हार गया और उसके शव को अन्य रिश्तेदार को दूर से दिखाकर जला दिया . शेष अपने जीवन से लड रहे है.
अस्पतालों में सुविधआ की खस्ता हालत मरीजों की बढ़ती संख्या जिसे संभावना मुश्किल है। प्रतीत होता है कि अस्पताल उस गुफा के समान हो गए हैं जहाँ जाने के बाद अाप दुनिया से क्या जीवन से कट रहे है. वहाँ जाना ही कोरोना को साथ लाना है. कोरोना की बढ़ती रफ़्तार कोरोना का कम्युनिटी स्प्रेड है लेकिन सरकार मानने के लिए तैयार ही नहीं है . हमारी लचर व्यवस्था से लोगो की जान पर बन आयी है। सबने अपने हाथ खड़े किए हुए हैं . लेकिन राजनिति में नेता दल बदल करने में लगे है. चहुँ अोर मौत अपने स्वांग रचकर अा रही है. पिक्चर अभी बाकी है.
कोरोना फिल्म का दी एंड तो किसी को नहीं पता , लेकिन लोगों में जन्में मानसिक विकार व ऐसे समय भी सरहदों पर चल रही गर्मा गर्मी मानसिक विकृति का ताजा उदाहरण है . जहां संवेदनाएं पूर्णतः मर गई है. फिलीपींस जैसे देशों में भूख के कारण बदहाल होती जिंदगी को बचाने के लिए लोगों ने अपने बच्चों का उपयोग करना शुरू कर दिया . उनके पोर्न वीडियो बनाकर 1000 में बेचने लगे है। छोटे-छोटे बच्चों के साथ मानसिक और शारीरिक अत्याचार होने लगा है। भूख कहीं लोगो को आदिम ना बना दें. स्वार्थ की लालसा में आज जीवन नये चौराहे पर है. बहलाने के लिए बाते बहुत है, विकास के साधन बहुत है, लेकिन जमीनी हकीकत अपने निशान छोडने लगी है.
हाशिये पर खड़ी जिंदगी जैसे एक कोरोना विस्फोट के बाद तबाही की नयी तस्वीर लिखेगी . तबाही का मंजर आंखों के सामने होगा . लाशों में हम क्या व किसे ढूंढेगे बेहतर होगा जिंदगी को बचाने के तरीके ढूंढें. छोटी सी लापरवाही पल भर में जिंदगी की तस्वीर बदल सकती है।
शशि पुरवार .
ReplyDeleteजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
12/07/2020 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
सार्थक आलेख।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लेख
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