समय की दरकार
बेबसी में जल रहे हैं पांव तो कहीं भूख से बिलख रहे हैं गांव, हर तरफ फैली हुई त्रासदी है. मौत का हाहाकार और जिंदगी में उदासी है . यह समय इतिहास के पन्नों पर स्याह दिवस की कालिख मल रहा है. हर तरफ लाशें बिछ रही है. कहीं कोरोना जिम्मेदार है तो कहीं भूख बेबसी और लाचारी बनी हथियार है .
औरंगाबाद में हुए रेलवे ट्रैक पर मजदूरों के साथ जो हादसा हुआ है वह झकझोर देने वाला है . पलायन सतत शुरू है . कोरोना महामारी और लाचारी है तो कहीं रोटी की भूख जिंदगी पर भारी है . आज हर वर्ग, हर उम्र के लोग इस जीवन से सीख ले रहे हैं. सबके अपने-अपने अनुभव है . छोटे-छोटे बच्चे घरों में बंद हैं . बाहर क्यों नहीं जाना है जैसे प्रश्नों पर मासूमियत दंग है. जवाब आता है, कोरोना बाहर है इसीलिए हम घरों में बंद हैं. वृद्ध चेहरे उदास हैं ,लाक डाउन की परेशानियां चहुँ ओर से घिर रही हैं. हर तरफ एक ही बात नजर आती है. कहीं न कहीं किसी भी कारन से जिंदगी हार रही है . लाशों का ढेर है . समस्या विकराल होती जा रही है . धीरे-धीरे लोगों को इसकी आदत पड़ने लगी है . संकट परेशानी सभी को आ रही है . छोटी-छोटी समस्या से हम सभी दो-चार हो रहे हैं. कल क्या होगा जैसे प्रश्न सबके जहन में कौधतें हैं . जीवन की परी पथरीली जमीन हमें मजबूत बना रही हैं. इस पथरीली जमीन का सामना मैंने भी बहुत किया है, शायद यही वजह है कि हर संकट में मन और ज्यादा सकारात्मक व मजबूत हो जाता है .
अर्थव्यवस्था से उबरने के लिए सरकार ने शराब की दुकान है क्या खोली, मय के प्याले छलकने के लिए बेकरार हो उठे. मय का नशा ऐसा सिर पर चढ़ा कि कोरोना मन से उतर गया. हर वर्ग के लोग लाइन में मौजूद थे. जिस घर में खाने के लिए दो वक्त का भोजन नहीं था वहां बर्तन व घर का सामान बेचकर मय के प्याले भरने के लिए कुछ लोग बेकरार हो उठे . तो कुछ लोग कहने लगे कि कितने कष्ट भरे दिन थे 40 दिन से हम सोए नहीं . तो क्या मयखाना जिंदगी को मौत का आगोश में जाने के बचा सकता है . शराब के लिये लोगों ने सारे नियम कायदे ताक पर रख दिए . यह उन लोगों के प्रति भी असंवेदनशीलता है जो कोरोना की जंग जीतने के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं. चाहे वह कोरोना कैरियर हो या कोरोना रक्षक. साथ ही वह लोग जो पूरे नियम कायदे से लाक डाउन का पालन करके घरों में बंद है. जिन्होंने इतने लंबे समय से एक कदम भी घर के बाहर नही निकाला है . जो बाहर के संकट के साथ घर में आए संकट से भी जूझ रहे हैं. कोरोना आ गया तो क्या अन्य बीमारियां समाप्त हो गई है ? घरों की अर्थव्यवस्था देश की अर्थव्यवस्था सभी बिगड़ रही है . इसे पटरी पर लाने की बहुत आवश्यकता है जीवन सुचारु रुप से चले इसके लिए सभी को नियम कायदे के साथ चलने का प्रयत्न करना होगा . अपना योगदान देना होगा . भूख कभी लॉक नहीं होती है .पेट की आग बुझाने के लिए रोजगार आवश्यक है लोग फंसे पड़े हैं. बुजुर्ग बीमार हैं बच्चे बेहाल हैं.
अभी हमें अनिश्चितकाल तक भयावह मंजर से जूझना होगा. ऐसे में स्वयं को मजबूत बनाना ही होगा . सकारात्मक भाव से ही हम कोरोना से पूर्णत: जीत सकते हैं
शशि पुरवार
बेबसी में जल रहे हैं पांव तो कहीं भूख से बिलख रहे हैं गांव, हर तरफ फैली हुई त्रासदी है. मौत का हाहाकार और जिंदगी में उदासी है . यह समय इतिहास के पन्नों पर स्याह दिवस की कालिख मल रहा है. हर तरफ लाशें बिछ रही है. कहीं कोरोना जिम्मेदार है तो कहीं भूख बेबसी और लाचारी बनी हथियार है .
औरंगाबाद में हुए रेलवे ट्रैक पर मजदूरों के साथ जो हादसा हुआ है वह झकझोर देने वाला है . पलायन सतत शुरू है . कोरोना महामारी और लाचारी है तो कहीं रोटी की भूख जिंदगी पर भारी है . आज हर वर्ग, हर उम्र के लोग इस जीवन से सीख ले रहे हैं. सबके अपने-अपने अनुभव है . छोटे-छोटे बच्चे घरों में बंद हैं . बाहर क्यों नहीं जाना है जैसे प्रश्नों पर मासूमियत दंग है. जवाब आता है, कोरोना बाहर है इसीलिए हम घरों में बंद हैं. वृद्ध चेहरे उदास हैं ,लाक डाउन की परेशानियां चहुँ ओर से घिर रही हैं. हर तरफ एक ही बात नजर आती है. कहीं न कहीं किसी भी कारन से जिंदगी हार रही है . लाशों का ढेर है . समस्या विकराल होती जा रही है . धीरे-धीरे लोगों को इसकी आदत पड़ने लगी है . संकट परेशानी सभी को आ रही है . छोटी-छोटी समस्या से हम सभी दो-चार हो रहे हैं. कल क्या होगा जैसे प्रश्न सबके जहन में कौधतें हैं . जीवन की परी पथरीली जमीन हमें मजबूत बना रही हैं. इस पथरीली जमीन का सामना मैंने भी बहुत किया है, शायद यही वजह है कि हर संकट में मन और ज्यादा सकारात्मक व मजबूत हो जाता है .
अर्थव्यवस्था से उबरने के लिए सरकार ने शराब की दुकान है क्या खोली, मय के प्याले छलकने के लिए बेकरार हो उठे. मय का नशा ऐसा सिर पर चढ़ा कि कोरोना मन से उतर गया. हर वर्ग के लोग लाइन में मौजूद थे. जिस घर में खाने के लिए दो वक्त का भोजन नहीं था वहां बर्तन व घर का सामान बेचकर मय के प्याले भरने के लिए कुछ लोग बेकरार हो उठे . तो कुछ लोग कहने लगे कि कितने कष्ट भरे दिन थे 40 दिन से हम सोए नहीं . तो क्या मयखाना जिंदगी को मौत का आगोश में जाने के बचा सकता है . शराब के लिये लोगों ने सारे नियम कायदे ताक पर रख दिए . यह उन लोगों के प्रति भी असंवेदनशीलता है जो कोरोना की जंग जीतने के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं. चाहे वह कोरोना कैरियर हो या कोरोना रक्षक. साथ ही वह लोग जो पूरे नियम कायदे से लाक डाउन का पालन करके घरों में बंद है. जिन्होंने इतने लंबे समय से एक कदम भी घर के बाहर नही निकाला है . जो बाहर के संकट के साथ घर में आए संकट से भी जूझ रहे हैं. कोरोना आ गया तो क्या अन्य बीमारियां समाप्त हो गई है ? घरों की अर्थव्यवस्था देश की अर्थव्यवस्था सभी बिगड़ रही है . इसे पटरी पर लाने की बहुत आवश्यकता है जीवन सुचारु रुप से चले इसके लिए सभी को नियम कायदे के साथ चलने का प्रयत्न करना होगा . अपना योगदान देना होगा . भूख कभी लॉक नहीं होती है .पेट की आग बुझाने के लिए रोजगार आवश्यक है लोग फंसे पड़े हैं. बुजुर्ग बीमार हैं बच्चे बेहाल हैं.
अभी हमें अनिश्चितकाल तक भयावह मंजर से जूझना होगा. ऐसे में स्वयं को मजबूत बनाना ही होगा . सकारात्मक भाव से ही हम कोरोना से पूर्णत: जीत सकते हैं
शशि पुरवार
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (15-07-2020) को "बदलेगा परिवेश" (चर्चा अंक-3763) पर भी होगी।
ReplyDelete--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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आभार आपका
Deleteवर्तमान परिस्थिति को उजागर करता लेख
ReplyDeleteसटीक और सामयिक लेख
ReplyDeleteसामायिक सार्थक लेख।
ReplyDeleteआप सभी का हार्दिक धन्यवाद
ReplyDeleteइस बेहतरीन लिखावट के लिए हृदय से आभार Appsguruji(जाने हिंदी में ढेरो mobile apps और internet से जुडी जानकारी )
ReplyDeleteउम्दा लिखावट ऐसी लाइने बहुत कम पढने के लिए मिलती है धन्यवाद् Aadharseloan (आप सभी के लिए बेहतरीन आर्टिकल संग्रह जिसकी मदद से ले सकते है आप घर बैठे लोन) Aadharseloan
ReplyDeleteNice Post :-👉 Beauty Khan Whatsapp Number
ReplyDeleteHappy by reading this..
ReplyDeleteGood Neighbor
bahut sundar blog aur post
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